गतांश से आगे...अध्याय अठारह भाग सोलह
7.सिनेमाघर,स्टूडियो,थियेटर,नृत्यशाला,मदिरालय
आदि- इन सभी प्रकार के व्यावसायिक भवनों की
प्रकृति(ग्रहदृष्टि से) काफी हद तक समान है-शुक्र सर्वत्र हैं;राहु,चन्द्रमा,बुध
आदि का मिला-जुला योगदान है।किन्तु आन्तरिक संरचना में काफी अन्तर है।इन सबके लिए
बड़े आकार के भूखण्ड की आवश्यकता होती है। मदिरालय को छोड़कर शेष के लिए,मुख्य भवन
के साथ-साथ परिसर भी अनिवार्य होता है।मदिरा-शराब सम्बन्धी कुछ आवश्यक निर्देश
होटलों की चर्चा में भी आ चुका है।स्वतन्त्र रुप से मदिरालय बनाने के लिए उन्हीं
आधारभूत नियमों में थोड़ा और विचार मात्र आवश्यक है(इसे वहीं देखें)।आम तौर पर
शराब की दुकानें दोतरह की होती हैं-एक,जो सिर्फ दुकान होती हैं,जहाँ बैठकर पीने की
व्यवस्था नहीं होती;और दूसरा वह,जहाँ बैठने और पीने की व्यवस्था होती है।यहाँ इनसे
सम्बन्धित कतिपय विशेष वास्तु-नियमों की चर्चा की जा रही है-
·
शराब की दुकान पूरब या
उत्तरमुखी नहीं होना चाहिए।नैऋत्य,दक्षिण, आग्नेय आदि दिशायें अनुकूल हैं।
·
आम दुकानों की तरह यहाँ
लक्ष्मी-गणेश की स्थापित मूर्ति न रखी जाय।
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समय-समय पर नवग्रह-होम
मात्र ही पर्याप्त है।
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स्कूल,अस्पताल,मन्दिर आदि
धार्मिक स्थलों से काफी दूर हट कर बनायें
उचित है।
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परिसर रखने की सुविधा हो
तो पीछे की ओर रखा जाय।दक्षिण-पश्चिम का खुलापन मदिरालय आदि के लिए निषिद्ध नहीं
है,क्यों कि यह तो मुख्यतः तमोगुणी स्थान है।
·
नृत्यशाला,थियेटर,बड़े
स्तर के स्टूडियो आदि(शुक्र के साथ-साथ जहाँ चन्द्रमा और बुध की प्रधानता
है)दक्षिण मुखी न बनाये जायें।उत्तर,वायु कोण आदि अनुकूल दिशा है।
·
मुख्य प्रवेश दक्षिण को
छोड़कर,किसी भी दिशा में हो सकता है।
·
आगे-पीछे पर्याप्त परिसर
की सुविधा होनी चाहिए।परिसर पूरब-उत्तर की तुलना में पश्चिम-दक्षिण में कम रखना
चाहिए,जैसा कि सामान्य वास्तु नियम है।
·
इन सब स्थानों में एक बड़ा
सा हॉल अनिवार्य रुप से होता ही है,अतः आकाश तत्व का संतुलन स्वतः हो जाता है।शेष
तत्वों के यथासम्भव संतुलन का ध्यान रखना चाहिए।बोरिंग ईशान से पूरब पर्यन्त कहीं
भी हो सकता है।
·
टिकट-काउण्टर,रिसेप्सन,पार्किंग
आदि सुविधानुसार पूर्ब-उत्तर-पश्चिम दिशा में बनाये जायें।
·
ऐसे भवनों में कई दरवाजे
होने चाहिए- प्रायः चारो दिशाओं में हों तो अधिक अच्छा है।
आन्तरिक साज-सज्जा का विशेष ध्यान
रखना चाहिए।इनकी प्रकृति के अनुकूल रंगों(दूधिया-सफेद चमकीला,हरा,हल्का पीला
आदि)का चयन उत्तम है।गहरे लाल,काले रंगों का कम से कम प्रयोग किया जाय। लालकाले का
मिश्रण कत्थई(मेरुन) रंग भी ग्राह्य है।
---++---क्रमशः....
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