दहेजुआ भैंस की जन्मपत्री शब्दजाल में ज्यादा न उलझना पड़े, इसलिए पहले ही अगाह कर दूँ कि ‘ दहेज ’ माँगनेवाले के मुँह के आकार और देनेवाले की हैसियत, औकात, ललक के मुताबिक दास-दासी, दौलत, जोत-जमीन, चल-अचल कुछ भी दहेजुआ हो सकता है यदि, तो भैंस क्यों नहीं ! दूसरी बात ये कि जन्मपत्री कालखण्ड विशेष पर आधारित, भावी परिणाम का सूचना-पत्र मात्र है। तदनुसार आदमी की कुण्डली यदि बनायी जा सकती है, तो भैंस की क्यों नहीं ! सोढ़नदासजी के पिताजी अपने इलाके के जाने-माने ज्योतिषी थे और भिषगाचार्यजी अपने इलाके ही नहीं, दूर-दूर के इलाकों तक अपना घोड़ा दौड़ाते रहते थे। उन्हें साक्षात् धन्वन्तरी का अवतार माना जाता था आसपास के रजवाड़ों में, जिनके स्पर्श और आशीष से मुर्दा भी उठ खड़ा हो जाए। दरअसल उन दिनों बाहर से लकदक, भीतर से खोखले ‘ खूनचूसू ’ नर्सिंगहोमों का चलन नहीं हुआ था। आज की तरह नोट की गड्डियों की तो बात ही नहीं थी, मूली-गाजर, आलू-शक्करकन्द की झोली से भी जान बच जाती थी गरीब-गुरबों की। ज्योतिषाचार्यजी ने अपने इकलौते सुपुत्र के लिए कुछ भी दहेज माँगा नहीं और भिषगाचार्यजी के चम...
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