श्री राधाकृष्णाभ्याम नमः
गुरूदेव श्री देवेन्द्र नाथ शर्मा(पटना वि.वि.)
श्रीमती गौरा पंत(शिवानी)लखनऊ
श्री नन्दजी द्विवेदी(वीरकुँवरसिंह वि.वि.)
श्री गोपी नाथ पाठक(मगध वि.वि.)
श्री वासुदेव नन्दन ( मगध वि.वि.)
श्री केसरी कुमार (पटना वि.वि.)
निरामय की प्रेरणा,मेरी सहधर्मिणी, मेरी प्रत्येक रचनाओं की प्रथम पाठिका, एवं समालोचिका,
जिसने मेरी
नीरस रचनाओं में सौंदर्य, माधुर्य और सुवास भरने का
स्तुत्य प्रयास किया.....
‘मीरामय ....वस्तुतः प्रारम्भ
में तो मीनामय की स्थिति थी,मगर अन्त हुआ मीरामय
पर....यह विकल्प क्यों ? विकल्प को प्रश्रय मिला ही
यदि तो इन दो पाटों के बीच शक्ति का
सोता कहाँ सूख गया
? वास्तविक
उदधि तो वही थी,और उसके साथ ही ऐसी अन्यायोचित
व्यवहार ! सच में लेखक भी
बड़े अजीब होते
हैं......ये उपालम्भ हैं---इस प्रथम पाठिका के।
लेखक के दो रुप- (ऊपर)निरामय लिखने से आठ साल पहले,
(नीचे)निरामय लिखते समय
(नीचे)निरामय लिखते समय
निरामय कोई काल्पनिक कथा नहीं,कथ्य का विश्लेषणमात्र है
----000----
स्तुत्य प्रयास।
ReplyDeleteईन्तजार है पूरे उपन्यास का।