जांगम द्रव्य 2.गोरोचन
जांगम द्रव्यों में गोरोचन आज के जमाने
में एक दुर्लभ वस्तु हो गया है।वैसे नकली गोरोचन पूजा-पाठ की दुकानों में भरे पड़े
हैं।छोटी-छोटी प्लास्टिक की शीशियों में उपलब्ध होने वाले पीले से पदार्थ को
गोरोचन से दूर का भी सम्बन्ध नहीं है।
गोरोचन मरी हुयी गाय के शरीर से प्राप्त
होता है।कुछ विद्वान का मत है कि यह गाय के मस्तक में पाया जाता है,किन्तु वस्तुतः
इसका नाम "गोपित्त" है,यानी कि गाय का पित्त। शरीर में सर्वव्यापी पित्त
का मूल स्थान पित्ताशय(Gallbladar) होता है।पित्ताशय की पथरी आजकल की आम
बीमारी जैसी है।मनुष्यों में इसे शल्यक्रिया द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।गाय
की इसी बीमारी से गोरोचन प्राप्त होता है।वैसे स्वस्थ गाय में भी किंचित मात्रा
में पित्त तो होगा ही- उसके पित्ताशय में,जिसे आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। मस्तक
के एक खास भाग पर भी यह पदार्थ- गोल,चपटे,तिकोने,लम्बे,चौकोर- विभिन्न आकारों में
एकत्र हो जाता है,जिसे चीर कर निकाला जा सकता है।हल्की लालिमायुक्त पीले रंग का यह
एक अति सुगन्धित पदार्थ है,जो मोम की तरह जमा हुआ सा होता है।ताजी अवस्था में लस्सेदार,और
सूख जाने पर कड़ा- कंकड़ जैसा हो जाता है।
गोपित्त,शिवा,मंगला,मेध्या,भूत-निवारिणी,वन्द्य
आदि इसके अनेक नाम हैं,किन्तु सर्वाधिक प्रचलित नाम गोरोचन ही है।शेष नाम
साहित्यिक रुप से गुणों पर आधारित हैं।गाय का पित्त- गोपित्त।शिवा-
कल्याणकारी।मंगला- मंगलकारी।मेध्या- मेधाशक्ति बढ़ाने वाला।भूत-निवारिणी- भूत से
त्राण दिलाने वाला।वन्द्य- पूजादि अति वन्द्य- आदरणीय।
आयुर्वेद और तन्त्र शास्त्र में इसका विशद
प्रयोग-वर्णन है।अनेक औषधियों में इसका प्रयोग होता है। यन्त्र-लेखन,तन्त्र-साधना,तथा
सामान्य पूजा में भी अष्टगन्ध-चन्दन-निर्माण में गोरोचन की अहम् भूमिका है। हालाकि
विभिन्न देवताओं के लिए अलग-अलग प्रकार के अष्टगन्ध होते हैं,किन्तु गोरोचन का
प्रयोग लगभग प्रत्येक अष्टगन्ध में विहित है।
गोरोचन को रविपुष्य योग में साधित करना
चाहिए।सुविधानुसार कभी भी प्राप्त हो जाय,किन्तु साधना हेतु शुद्ध योग की
अनिवार्यता है।साधना अति सरल है- विहित योग में सोने या चांदी,अभाव में तांबे के
ताबीज में शुद्ध गोरोचन को भर कर यथोपलब्ध पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन करें।तदुपरान्त
अपने इष्टदेव का सहस्र जप करें,साथ ही शिव / शिवा के मंत्रो का भी एक-एक हजार जप
अवश्य कर लें।इस प्रकार साधित गोरोचन युक्त ताबीज को धारण करने मात्र से ही सभी
मनोरथ पूरे होते है- षटकर्म-दशकर्म आदि सहज ही सम्पन्न होते हैं।गोरोचन में अद्भुत
कार्य क्षमता है।सामान्य मसी-लिखित यन्त्र की तुलना में असली गोरोचन द्वारा तैयार
की गयी मसी से कोई भी यन्त्र-लेखन का आनन्द ही कुछ और है।ध्यातव्य है कि कर्म
शुद्धि,भाव शुद्धि को साथ द्रव्य शुद्धि भी अनिवार्य है।
गोरोचन के कतिपय तान्त्रिक प्रयोग-
Ø साधित गोरोचन युक्त ताबीज को घर के किसी
पवित्र स्थान में रख दें,और नियमित रुप से,देव-प्रतिमा की तरह उसकी पूजा-अर्चना
करते रहें।इससे समस्त वास्तु दोषों का निवारण होकर घर में सुख-शान्ति-समृद्धि आती
है।
Ø नवग्रहों की कृपा और प्रकोप से सभी अवगत
हैं।इनक प्रसन्नता हेतु जप-होमादि उपचार किये जाते हैं। किन्तु गोरोचन के प्रयोग
से भी इन्हें प्रसन्न किया जा सकता है।साधित गोरोचन को ताबीज रुप में धारण करने,
और गोरोचन का नियमित तिलक लगाने से समस्त ग्रहदोष नष्ट होते हैं।
Ø प्रेतवाधा युक्त व्यक्ति को गुरुपुष्य योग
में साधित गोरोचन से भोजपत्र पर सप्तशती का "द्वितीय बीज" लिख कर ताबीज
की तरह धारण करा देने से विकट से विकट प्रेतवाधा का भी निवारण हो जाता है।
Ø मृगी,हिस्टीरिया आदि मानस व्याधियों में
गोरोचन(रविपुष्य योग साधित) मिश्रित अष्टगन्ध से नवार्ण मंत्र लिख कर धारण कर देने
से काफी लाभ होता है।
Ø उक्त बीमारियों में गोरोचन को गुलाबजल में
थोड़ा घिसकर तीन दिनों तक लागातार तीन-तीन बार पिलाने से अद्भुत लाभ होता है।यह
कार्य किसी रवि या मंगलवार से ही प्रारम्भ करना चाहिए।
Ø षटकर्म के सभी कर्मों में तत् तत् यंत्रों
का लेखन गोरोचन मिश्रित मसी से करने से चमत्कारी लाभ होता है।
Ø धनागम की कामना से गुरुपुष्य योग में
विधिवत साधित गोरोचन का चांदी या सोने के कवच में आवेष्ठित कर नित्य पूजा-अर्चना
करने से अक्षय लक्ष्मी का वास होता है।
Ø विभिन्न सौदर्य प्रसाधनों में भी गोरोचन
का प्रयोग अति लाभकारी है।हल्दी,मलयागिरी चन्दन,केसर, कपूर,मंजीठ और थोड़ी मात्रा में
गोरोचन मिलाकर गुलाबजल में पीसकर तैयार किया गया लेप सौन्दर्य कान्ति में अद्भुत
विकास लाता है।इस लेप को चेहरे पर लगाने के बाद घंटे भर अवश्य छोड़ दिया जाय ताकि
शरीर की उष्मा से स्वतः सूखे।
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