पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-149

गतांश से आगे...अध्याय 23 भाग 23


यज्ञान्त आरतीमंगलः- एक थाली में घृतदीप,एवं कपूर जलाकर पुष्पाक्षत डाल कर सभी देवों की आरती करें।आरती को पूरे भवन में दिखलाने के बाद स्वयं आरती लें,अन्य लोगों को भी लेने को कहें।ध्यान रहे कि आरती लेने के बाद कुछ दक्षिणाद्रव्य भी अवश्य दिया जाय।
  
विसर्जनः-  ध्यातव्य है कि वास्तुमूर्ति को गर्तकर्मविधान से स्थापित किया जा चुका है;किन्तु शेष आवाहित देवीदेवता अभी उपस्थित हैं,अतः उनका विसर्जन भी आवश्यक है।यथा-   यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्। इष्टकामसमृद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च।।          ॐ गच्छगच्छ सुरश्रेष्ठ ! स्वस्थाने परमेश्वर ! यत्र ब्रह्मादयो देवास्तत्र गच्छ हुताशन ! —इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए, सभी देवों पर तथा हवनवेदी पर अक्षतपुष्प छिड़क कर विसर्जन करें।
मौलीबन्धन एवं आशीषग्रहणः-   स्मरण हो कि पूजन के प्रारम्भ में मौली की एक लच्छी गौरीगणेश के सामने रखा गया था।आचार्य इसे लेकर यजमान पतिपत्नीपुत्रादि को आशीर्वाद स्वरुप(पुरुष की दाहिनी और स्त्री की बायीं कलाई पर) बांध दें,और आशीर्वादमन्त्रोच्चारण करें— मन्त्रार्थाः सफलाः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।। ॐ लक्ष्मीस्ते पङ्कजाक्षी निवसतु भवने भारती कण्ठदेशे, वर्धन्तां बन्धुवर्गाः सकलरिपुगणा यान्तु पातालमूलम्।। देशे देशे कीर्तिः प्रभवतु भवतां कुन्दपूर्णेन्दुशुभ्रा,जीव त्वं पुत्रपौत्रैः सकलगुणयुतैर्भोक्षसे राजलक्ष्मीः।। शुभमस्तु,कल्याणमस्तु।।

ब्राह्मण एवं भिक्षु-भोजन- इस प्रकार समस्त पूजन कर्म समाप्ति के पश्चात् यथाशक्ति ब्राह्मणों और भिक्षुओं को भोजन करावे। इन दोनों को भोजन दक्षिणा भी अवश्य दें। तदुपरान्त इष्टमित्रादि सहित स्वयं भी भोजन करें।

           ---)इति गृहप्रवेशवास्तुशान्तिपूजनम्(--

क्रमशः....

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