मृत्यु-सूचक चिह्न-चर्चा


मृत्यु-सूचक चिह्न-चर्चा

श्रीस्कन्दपुराण,काशीखण्ड(पूर्वार्द्ध)में महर्षि अगस्त ने शिवपुत्र भगवान षडानन कार्तिकेयजी से जिज्ञासा की है कि आसन्न मृत्यु-सूचक लक्षण को मनुष्य कैसे जाने । अमरत्त्व की कामना लिए मनुष्य की ये सहज जिज्ञासा है । क्यों कि वह भयभीत है सदा । इस भय ने ही उसकी सुखानुभूतियों पर पानी फेर रखा है । जो सामने है,जो उपलब्ध है,उसकी चिन्ता से कहीं अधिक चिन्ता अदृष्ट और भविष्य की खाये जाती है । इस चिन्ता में सहज-स्वाभाविक,नित्य-नैमित्तिक कर्मों में भी प्रायः व्यवधान वा अलस्य होने लगता है ।

करुणासागर कार्तिकेयजी ने मुनि की लोकोपयोगी जिज्ञासा का शमन करते हुए विशद वर्णन किया है । उन्होंने बतलाया कि जिस मनुष्य की दाहिनी नासिका में एक अहोरात्र(रात-दिन)(एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय पूर्व तक)श्वांस अखण्ड रुप चलती रह जाये तो समझे कि उसकी आयु अब मात्र तीन वर्ष शेष है । ज्ञातव्य है कि प्राणवायु (श्वास-प्रश्वास)का संचरण प्रति घटी(पैंतालिस मिनट करीब)पर परिवर्तित होते रहता है । यही क्रिया यदि दो अहोरात्र पर्यन्त जारी रहे तो मृत्यु एक वर्ष पश्चात होने की आशंका रहेगी ।

 यदि दोनों नासिका छिद्र दस दिन तक निरन्तर ऊर्ध्वश्वास के साथ चलते रहें तो मनुष्य मात्र तीन दिवस का मेहमान जाने स्वयं को । प्राणवायु नासिका के दोनों छिद्रों के वजाय सीधे मुंह से आवागमन करने लगे तो दो दिन में यमलोक प्रयाण कर जाये ।

ज्ञातव्य है कि मृत्युदेवी की बिलकुल आसन्न स्थिति में प्राणी विविध भयकारक दृश्य  का अवलोकन करने लग जाता है ।

ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि सूर्य जन्मराशि से सप्तम राशि पर और चन्द्रमा सीधे जन्म नक्षत्र पर आ गए हों तब यदि दाहिनी नासिका से श्वास चलने लगे तो उस समय सूर्याधिष्ठित काल जाने । ऐसे काल में विशेष सावधान रहते हुए प्रभु चिन्तन करे ।

यदि अकस्मात किसी काले-पीले पुरुष का दृश्य स्पष्ट हो और तत्काल ही अदृश्य भी हो जाये तो दो वर्ष का जीवन शेष जाने । जिस मनुष्य का मल-मूल,वीर्य वा मल-मूत्र व छींक एक साथ प्रकट हो तो मात्र एक वर्ष ही जीवन शेष जाने । नीलमणि के तुल्य नागों के झुंड को आकाश में तैरता हुआ यदि देखे तो द्रष्टा की आयु मात्र छः माह शेष जाने ।

जिसकी मृत्यु अति निकट हो उसे सप्तर्षि मंडल में महर्षि वशिष्ठ की सहधर्मिणी अरुन्धती का तारा एवं ध्रुवतारा दिखायी नहीं पड़ता । ध्यातव्य है कि यहां आँखों की सामान्य रौशनी की स्थिति में बात कही जा रही है ।  जो मनुष्य अकस्मात नीले-पीले रंगों को या खट्टे-मीठे रसों को विपरीत क्रम में अनुभव करने लगे तो उसकी मृत्य छः माह के भीतर जाने । यही अवधि उस मनुष्य की भी होगी जिसके वीर्य,नख और आँखों का कोना नीले या काले पड़ जायें ।

भलीभांति स्नान करने के बाद जिनका हृदयस्थल और हाथ-पैर अन्य अंगों की अपेक्षा जल्दी सूख जाये तो उसकी मृत्यु तीन मास के अन्दर होना निश्चित समझे ।

जो मनुष्य जल,घी आदि तरल पदार्थ तथा दर्पण में अपने सिरोभाग को स्पष्ट न देख पाये वो अपना जीवन एक मास शेष जाने । अपनी छाया में सिरो भाग का न दीखना भी सद्यः मृत्यु-सूचक है । जिसकी बुद्धि अचानक भ्रष्ट हो जाये(पूर्व से विपरीत),वाणी अस्पष्ट हो जाये,रात में इन्द्रधनुष दिखायी पड़े,दो-दो सूर्य वा चन्द्रमा दीख पड़ें,तो इसे सद्यः मृत्यु की सूचना समझे ।

अंगुलियों से कान बन्द करने पर एक विशेष प्रकार की ध्वनि सुनायी पड़ती है । ये ध्वनि सुनायी पड़ना यदि बन्द हो जाये तो मास पर्यन्त जीवन शेष जाने । यही अवधि उस मनुष्य की भी होगी जो अचानक मोटे से दुबला या दुबले से मोटा हो जाये- विना किसी विशेष रोग-व्याधि के । स्वभाव में अचानक परिवर्तन भी आसन्न मृत्यु का लक्षण है । जैसे कृपण का अचानक उदार वा उदार का कृपण हो जाना ।

स्वप्न में निरन्तर कुत्ते, कौए, गधे, सूअर, गीध, सियार, असुर, राक्षस, भूत, पिशाच आदि दीखें तो एक वर्ष के भीतर मृत्यु जाने । यदि मनुष्य स्वप्न में स्वयं को गन्ध,पुष्प,लाल वस्त्रादि से अलंकृत देखे तो आठ महीने बाद मृत्यु जाने । स्वप्न में धूल या दीमक की बॉबी पर स्वयं को चलता देखे तो छः माह बाद मृत्यु जाने । स्वप्न में तेल लगाता हुआ स्वयं को देखे,गधे वा घोड़े पर सवारी करता हुआ,दक्षिण दिशा की यात्रा करता हुआ,अपने पूर्वजों का लागातार दर्शन करता हुआ पाये तो छः मास की आयु शेष समझे । यदि स्वप्न में अपने शरीर पर घास या सूखी लकड़ियां रखा देखे तो छः मास की आयु शेष समझे ।

स्वप्न में लौह दंडधारी, काले वस्त्रधारी पुरुष का दर्शन हो तो तीन मास की आयु शेष समझे । श्यामवर्णा स्त्री का स्वप्न में आलिंगन महीने भर के भीतर ही यमपुरी की यात्रा करा देता है ।

स्वप्न में वानर की सवारी करता हुआ,पूर्व दिशा की ओर स्वयं को जाता देखे तो महीने भर के अन्दर मृत्युपाश में बांधा जाये । यहां ध्यान देने की बात है कि घोड़े की सवारी करते हुए दक्षिण दिशा की यात्रा और वानर की सवारी करते हुए पूर्व दिशा की यात्रा अनिष्ट सूचक है । 

इसी भांति और भी अनेक लक्षण विविध पुराणों में कहे गए हैं । सद्बुद्धि वाले मनुष्य को चाहिए कि ऐसे अशुभ लक्षणों के उदित होने पर योगसाधना,धर्मसाधना का अवलम्बन करे वा काशीवास करे ।

दुःस्वप्न के निवारण के लिए भी शास्त्रों में उपाय सुझाये गए हैं । यथा- जगने के बाद नित्यकृत्य से निवृत्त होकर आदित्यहृदय स्तोत्र, दुर्गाकवच, नारायण कवच,शिवमहिम्नस्तोत्र,शिवपंचाक्षर मन्त्र,नवार्ण मन्त्र आदि जो भी साधित हो जिसका उसका जप-पाठादि सम्पन्न करे- विधिवत संकल्प पूर्वक । कुछ ना कर सके तो कम से कम निरन्तर भगवन्नाम चिन्तन तो कर ही सकता है ।। हरिऊँतत्सत् ।।

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