कुण्डलीमिलान का अन्धकार पक्ष
“कुण्डलीमिलान—कितना उचित,कितना व्यावहारिक ”
शीर्षक
से एक आलेख पिछले पोस्ट में प्रस्तुत किया था, जिस पर शेयर, लाइक और कमेन्ट की
संख्या साढ़े तीन सौ से ऊपर रही। लोगों ने काफी अभिरूचि दिखायी इस विषय पर यह
जानकर उत्साहित हुआ।
प्रायः पाठक फेशबुकिया आलेख के
विस्तार को नकार देते हैं, किन्तु गम्भीर विषय को कम शब्दों में प्रस्तुत करने में
आलेखक को कठिनाई होती है। अधूरापन झलकता है। उक्त आलेख में मुझे भी कुछ कमियाँ
दिखी, जिसकी चर्चा अब कर रहा हूँ।
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कुण्डलीमिलान
परम्परा के किंचित् अन्धकार पक्ष भी है, जिनपर प्रकाश डालना आवश्यक प्रतीत हो रहा
है। अष्टकूट मिलान करने में हम करते क्या हैं—इसके ज्योतिषीयपक्ष को पिछले पोस्ट
में स्पष्ट कर चुके हैं। अब इसके सामाजिकपक्ष पर जरा गौर करें।
लड़का-लड़की
का सिर्फ जन्मनक्षत्र जानकर ज्योतिषी के पास पहुँच जाते हैं। बहुत हुआ तो बारहघरवा(संक्षिप्त
कुण्डली) खींच लिए। पंचांग में बनी बनायी एक मेलापक सारणी है, जिसका आधार सताईस
नक्षत्र हैं, जिसमें एक ओर लड़का और दूसरी ओर लड़की के नक्षत्र का मिलान करते हुए
पंक्तिवद्ध विधि से सारणी में दिए गए मान तक जाते हैं, जहाँ अधिकतम ३६ और न्यूनतम ५
अंक लिखा मिलता है। १८ से ऊपर के प्राप्तांक को विवाहयोग्य मानते हैं और नीचे को त्याज्य।
सामान्य तिथिसूचक विप्र भी मिनटों
में ये निर्णय सुना देते हैं। पंडितजी ११, ५१, १०१रु. पंचांगपूजा में पाकर गदगद हो
जाते हैं और यजमान भी समझता है कि जरा से काम केलिए बहुत दे दिया । किन्तु कटु
सत्य ये है ये कुछ वैसी ही बात हुई जैसे पेट का ऑपरेशन नाखून काटने वाली नरहन्नी
से कर दिया गया हो। या कहें बिना केस की सुनवाई किए जजसाहव आतंकवादी को क्लीनचिट
दे दें और निर्दोष नागरिक को फाँजी की सजा।
शास्त्रीय और व्यावहारिक सच ये है
कि सरसरी तौर पर कुण्डली देखना और जन्मकुण्डली का सम्यक् विश्लेषण करने में
आसमान-जमीन का अन्तर है। मेरे जैसे अल्पज्ञ के लिए तो ये दिन भर का काम है।
तरीका ये है कि प्रथम दृष्ट्या मेलापक सारणी से
गुण मिलान कर लेंगे। किन्तु गुण-निर्णय के पश्चात् दोषों पर ध्यान देना अति आवश्यक
है। मजे की बात ये है कि दोष-विचार की कोई बनी-बनाई सारणी नहीं होती। अतः वो दो
घंटे का अलग काम है।
चुँकि नक्षत्र या द्वादशभावचक्र
मात्र ही सामने होता है और इतने से आगे का फलादेश असम्भव है। अतः सूक्ष्म विचार
हेतु होरा, द्नेष्काण, नवांश, सप्तांश,
त्रिशांश, द्वादशांश, चलितांक, अष्टकवर्ग, ग्रहबल इत्यादि कई चक्रों और सारणियों
की आवश्यकता होगी। कम्प्यूटर सॉफ्टवेटर की गणना पर शतप्रतिशत भरोसा कर लिया जाए
यदि, तो भी इन सबका गम्भीर विचार चार घंटे का काम है। ध्यातव्य है कि—कम्प्यूटर का
गणना पक्ष (गणित खण्ड) भले ही सही हो, किन्तु फलितपक्ष किसी काम का नहीं है। क्योंकि
वह एक यन्त्र मात्र है। आप इसे ऐसे समझें—सॉफ्टवेयर को सिर्फ ये पता है कि आदमी के
हाथ में पांच अँगुलियाँ होती है। अब यदि उसके सामने छः या चार अंगुलियाँ आएं तो
उसे खारिज़ कर देगा।
आयुसाधन सबसे संवेदनशील कार्य है—इसमें
मेरे तो हाथ कांपने लगते हैं—कहीं गलत निर्णय हो गया तो दण्ड भोगना पड़ेगा। वैसे
भी कोई कितना हूँ सावधान रहे, पौरोहित्य और ज्योतिषीय कार्य में जाने-अनजाने पाप-संचय
तो होते ही रहता है और दण्ड भी लोग पाते ही रहते है, किन्तु ध्यान नहीं देते।
अब दूसरे विन्दु पर आते हैं— मेलापक
विचार तो सिर्फ चन्द्रमा के नक्षत्र के आधार पर निकाल लिया गया। किन्तु चन्द्रमा
का चेष्टादि षडबल, प्रभावादि अभी जानना
बाकी ही है। इसके साथ-साथ शेष आठ ग्रहों के बारे में कौन बतायेगा? जबकि वो
जानना भी उतना ही जरुरी है। मंगल, शनि, राहु यहाँ तक कि सूर्य जैसे ग्रह भी किसी
के जीवन में विस्फोटक स्थिति पैदा कर सकते हैं। गुरु-शुक्र जैसे सौम्य ग्रह भी
दाम्पत्य सुख में आग लगा सकते हैं।
अतः अष्टकूट गुण विचार और दशदोष
विचार-परिहार के पश्चात् लड़का-लड़की की आयु, सन्तान, धन-धान्य, भूमि-भवन के
साथ-साथ रोग-शत्रु, धर्म-कर्म आदि भावों पर भी गहन विचार करना अति आवश्यक है।
दरअसल विवाह करे ना करे—कितना
महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील निर्णय है— इसे हम समझ ही नहीं पाते। समझते-परखते भी
हैं , तो सिर्फ अन्य पक्ष को। चुँकि इस मामले में गम्भीर नहीं होते—न यजमान और न
ज्योतिषी, इस कारण कुण्डलीमिलान का एक कोरम पूरा कर लेते हैं। आधुनिक फास्टलाइफ
में सबको जल्दबाजी है। धन जल्दी चाहिए, निर्णय भी जल्दी ही चाहिए।
अब तीसरे विन्दु पर ध्यान दें— उक्त
बातों से स्पष्ट है कि सूक्ष्म परख वाले ज्योतिषी का पारिश्रमिक यथेष्ठ होना
चाहिए। किन्तु विडम्बना ये है कि यथेष्ठ पारिश्रमिक की माँग सामाजिक रूप से बिलकुल
अव्यावहारिक लगेगा। समुचित दक्षिणा कोई
देगा ही नहीं। ऊपर से आडम्बरी या फरेबी का खिताब मुफ्त में मिल जायेगा। विवाह में
दस-बीस हजार का आतिशबाजी फूँकने वाला भी कुण्डलीमिलान के लिए और विधिवत विवाह
कराने के लिए समुचित दक्षिणा देने में कोताही बरतता है। वैवाहिक कार्यक्रमों में
भागीदार समाज के सभी वर्ग (बैंड-बाजा, सजावट, क्रॉकरी, खानशामा, बैरा, बटलर....)
में सबसे दयनीय स्थिति ब्राह्मण की ही होती है। सबसे कम मूल्यांकन उसी का होता है।
उचित ये है कि समय और योग्यता के
हिसाब से सही मूल्यांकन हो ब्राह्मण का और
ब्राह्मण को भी चाहिए कि ज्योतिष-कर्मकाण्डादि विषय का सम्यक् अध्ययन-मनन करके, तदनुसार
कार्य करें। झूठ, दिखावे और आडम्बर से
परहेज करें और अपना स्तर कदापि गिरने न दें।
अब चौथी बात— कुछ अपवादों को
छोड़कर, समाज में ज्यादातर लोग विवाह प्रस्ताव लेकर लड़के वाले के यहाँ जाते हैं। अब
से कुछ दशक पूर्वतक ये परम्परा थी कि अगुआ-बतुहार के नाम पर लड़की वाले का
आदर-सत्कार होता था। एक रात तो वहाँ जरुर बिताते थे। जमकर बातें होती थी। लड़के की
कुण्डली लेकर घर आते थे। विचार-विमर्श करके आगे का निर्णय लेते थे। शनैःशनैः कुछ
चतुर सुजान इसमें घालमेल करना शुरु कर दिए। घर-वर जँच गया तो असली कुण्डली को
दरकिनार कर, नकली कुण्डली पर विवाह तय कर दिए।
भावी
दुष्परिणाम से अज्ञात, दक्षिणा के लोभ में नकली कुण्डली तो कोई जानकार पंडित ही
बनायेंगे न ?
अब लड़के वाले भी चतुराई करने लगे।
लड़की की कुण्डली, फोटो और बॉयोडाटा जमा करने का चलन हो गया। जैसे किसी नौकरी के
लिए आवेदन किया गया हो, जिसका निर्णय नियोजक के हाथ में है। और इस विधि में वही
काम अब लड़के वाले करने लगे, जो पुरानी विधि में लड़की वाले करते थे। सालों साल
कोर्ट की तारीख की तरह टहलाते रहते हैं लड़ृकी वाले को और खुद बेहतर की तलाश में
जुटे रहते हैं—मोटी रकम और सुराहीदार गर्दन की खोज में वर “वरनाठ” हो जाते
हैं। इस प्रकार सम्बन्ध नकारने का साधन बन गया कुण्डली ।
हम भूल जाते हैं कि वैवाहिक सम्बन्ध दो दिलों का
ही नहीं, बल्कि दो कुटुम्बियों का सम्मिलन है। इसका श्रीगणेश सौहार्द और विश्वास
से शुरु होना चाहिए, न कि छल और विश्वासघात से। ऐसा क्यों नहीं करते कि दोनों पक्ष किसी
ज्योतिषी के पास जाए, या दोनों एक दूसरे को कुण्डली का आदान-प्रदान एक साथ करें और
अपने-अपने ढंग से कुण्डली की जाँच करायें।
यदि कुण्डलीमिलान सिद्धान्त को
मानते हैं तो पूरी आस्था और ईमानदारी से स्वीकारें। समुचित दक्षिणा देकर, योग्य
ज्योतिषी से निर्णय लें । और यदि नहीं मानते तो कुण्डली को ढाल की तरह प्रयोग न करें। इससे पूरे समाज का अहित
हो रहा है। अस्तु।
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