वर्धापन-वर्षगाँठ-जन्मोत्सव
शताब्दी ही नहीं,लगभग सहस्राब्दी पर्यन्त परतन्त्रता की परवशता ने हमें अपनी सनातनी व्यवस्थाओं और
प्रथाओं से विमुख कर दिया है। हमारी बहुत सी रीतियाँ लुप्त हो गयी हैं और कुरीतियों
ने उनका स्थान ग्रहण कर लिया है। सुरीतियों के लुप्त-विस्मृत होने की हानि से कहीं
अधिक व्यथित करता है, कुरीतियों द्वारा उनका अधिग्रहण।
वर्धापन-वर्षगाँठ-जन्मोत्सव भी उन्हीं में एक है। मूलतः
ये सनातनी विविध संस्कारों की सूची में नहीं है, किन्तु संस्कार को जिन-जिन रूपों
में परिभाषित किया है ऋषियों ने, तदनुसार इसे भी जन्मोत्सवसंस्कार कहने में
आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इसका एक नाम अब्दपूर्तिकृत्य भी है।
मनुष्य जीवन दीर्घायु और सुखमय हो, इसके लिए ऋषियों ने
प्रत्येक वर्ष विधिवत वर्धापनसंस्कार सम्पन्न करने का विधान किया है। तदन्तर्गत सप्त
चिरजीवियों सहित अमरत्व प्राप्त महर्षि मार्कण्डेय की पूजा करके, उन्हें अर्पित ‘’तिल-गुड़-दूध’’ का
प्रसाद ग्रहण कर स्वस्थ-दीर्घायु जीवन-कामना की सनातनी परम्परा थी हमारी।
किन्तु
आज उस तिल वाले नैवेद्य को तिलांजलि देकर,
मोमबत्तियों
पर फूँक-थूककर, गुब्बारे तोड़-फोड़कर, अंडे वाले केक काटकर, सबको अपना जूठा खिलाकर
(सभी नकारात्मक कार्यों का समन्वयकर) हम गौरवान्वित हो रहे हैं। यहाँ तक कि स्वयं
को परम वैष्णव समझने वाले भी फरेबी केक निर्माताओं की बातों पर भरोसा करके, सहर्ष
केक खा लेते हैं, जबकि सच्चाई ये है कि स्टैण्डर्ड केक बिना अंडे का बन ही नहीं
सकता। सिर्फ बेकिंकपाउडर से केकपेस्ट में वो उफान लाया ही नहीं जा सकता। हड्डियों
के चूर्ण से बना हाइड्रसपाउडर भी वो उफान (हल्कापन) नहीं ला सकता। किन्तु
आधुनिक खाद्यपदार्थों की निर्माण शैली (विधि) की जानकारी हमें जरुरी नहीं लगती, जो
कि सनातनी संस्कारों के लिए सबसे बड़ा घातक है। अस्तु, इस पर सम्यक् चर्चा
अपेक्षित है।
ध्यातव्य है कि वर्धापन (जन्मदिवस) अंग्रेजी तारीखों के
अनुसार न मनाकर, चान्द्रमास और तिथि के अनुसार मनायी जानी चाहिए, जैसा कि हम
श्रीरामनवमी, श्रीकृष्णजन्माष्टमी इत्यादि तत्तत तिथ्यानुसार मनाते हैं। पुनः
ध्यातव्य है कि तत्सम्बन्धी पूजा-अर्चना बालक के माता-पिता द्वारा सम्पन्न की जानी
चाहिए। किन्तु बड़े (योग्य) होने पर ये कार्य स्वयं करने का विधान है।
अब, आगे यहाँ इसकी प्रयोगविधि की चर्चा करते हैं—
सर्वप्रथम प्रातः कृत्य से निवृत्त होकर—तिलपिष्टी (पीसा
हुआ तिल) का उबटन लगाकर, तिलमिश्रित जल से स्नान करके, यथासम्भव नूतन (अथवा
स्वच्छ) वस्त्र धारण करके, पूजास्थल पर आ जाए। शिखाबन्धन, तिलकधारण, आचमन, प्राणायाम
इत्यादि पूर्वांग क्रियाएं सम्पन्न करने के पश्चात् सुविधानुसार (छोटा या बड़ा)
पूजा-मण्डल निम्नांकित चित्रानुसार चावल या गेहूँ के आटे से निर्मित करे—
पूजन-सामग्री एवं पूजा-विधि अन्यान्य पूजा-विधान के समान ही है। पूर्वांगिक कृत्य—स्वस्तिवाचन, संकल्प, कलशस्थापन, नवग्रहादि पञ्चाङ्गपूजन अन्यान्य संस्कारों की भाँति ही करना चाहिए। यथोचित पुण्याहवाचन भी कर लें तो अत्युत्तम। एक विशेष कार्य ये करना है कि जन्मोपरान्त जितना वर्ष पूरा हो चुका उतनी गाँठें एक मौली में लगा दे, साथ ही अपेकृत एक बड़ा सा गाँठ और लगा दे। जैसे, पाँच वर्ष पूरा होकर, आज छठवाँ वर्ष का प्रवेश हुआ है, तो पाँच और एक वृहद गाँठ लगाना है मौली में। इस वर्षगाँठ वाले मौली को पत्रपुटक में पुष्पाक्षत सहित पूजा मण्डल में गौरी-गणेश से समक्ष रख दे। इसका प्रयोग पूजा के अन्त में करना है।
तदुपरान्त चित्रांकित क्रमांकों के अनुसार क्रमशः नामोच्चारण
करते हुए दधि-हरिद्रा मिश्रित अक्षत पुञ्ज स्थापित करे। काष्ठपीठिका या सीधे भूमि
पर नूतन वस्त्र विछाकर, उसी पर क्रमशः दध्यक्षत छोड़ता जाए। अलग-अलग पत्रावली (पत्ते
की दोनियाँ) का प्रयोग भी किया जा सकता है।
(आजकल
थर्मोकोल या अन्य कृत्रिम पात्रों का प्रयोग किया जाता है, जो सर्वथा-सर्वदा
वर्जित है।)
(विस्तृत
पूजा विधान के लिए इस पुस्तक के पूर्व अध्यायों का सहयोग लें। आगे यहाँ सिर्फ
आंशिक संकल्पवाक्य एवं विशिष्ट आहूत देवर्षियों का नाममन्त्र दिया जा रहा है।)
संक्षिप्त संकल्प—
ऊँ अद्येत्यादि.....मदीयजन्मदिने (पिता-माता
द्वारा किया जा रहा हो तो
मम बालकस्य जन्मदिने
बोले) दीर्घायुष्यकामो दध्यक्षतपुञ्जेषु मार्कण्डेयादीनां चिरजीवीनां पूजनं
करिष्ये। तत्रादौ निर्विघ्नतासिध्यर्थं गौरीगणेशाम्बिकादि पूजनं च करिष्ये।
स्वस्तिवाचन,
संकल्पादि के पश्चात् अन्य पूजाओं की भाँति गणेशाम्बिकादि सभी देवों का आवाहन-पूजन
विधिवत सम्पन्न करे।
तत्पश्चात्
दधि-अक्षत लेकर क्रमशः नाममन्त्रों का उच्चारण करते हुए क्रमिक रूप से आवाहन और
स्थापन करता जाए। प्रथम समूह के १ से १६
तक एवं द्वितीय समूह के १ से ४५ तक के देवर्षियों का आवाहन करने के बाद संक्षिप्त
नाममन्त्रों से यथोचित पंचोपचार/ षोडशोपचार पूजन सम्पन्न करे।
(आवाहनक्रम
में उक्त समूह में किंचित् नामों की पुनरावृति हुयी है, इससे भ्रमित नहीं होना
चाहिए। जैसे, अग्नि का तीन जगह आवाहन हुआ है। एक जगह अग्नि देवता के रूप में हैं
और दूसरी जगह अग्नि दशदिक्पाल रूप में हैं और तीसरी जगह पंचतत्व समूह में हैं। जबकि
पंचमहाभूत एकत्र भी आवाहित हुए हैं। सूर्य अलग भी हैं और नवग्रह समूह में
भी...इत्यादि।)
आवाहन
क्रम—(नीचे से ऊपर की ओर, दाएं से बायें क्रमांकानुसार)
प्रथम
समूह, प्रथम पंक्ति—
१. ऊँ भूर्भुवः स्वः कुलदेवते इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
२. ऊँ भूर्भुवः स्वः स्वनक्षत्रेश इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
३. ऊँ भूर्भुवः स्वः प्रकृतिपुरुषात्मकमातापितरौ
इहागच्छतम् इह तिष्ठतम् पूजार्थं युवामावाहयामि।
४. ऊँ भूर्भुवः स्वः प्रजापते इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
५. ऊँ भूर्भुवः स्वः भानो इहागच्छ
इहतिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
६. ऊँ भूर्भुवः स्वः विघ्नेश इहागच्छ
इहतिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
७. ऊँ भूर्भुवः स्वः मार्कण्डेय इहागच्छ
इहतिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
८. ऊँ भूर्भुवः स्वः बले इहागच्छ
इहतिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
प्रथम समूह, द्वितीय पंक्ति—
९. ऊँ भूर्भुवः स्वः व्यास इहागच्छ
इहतिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
१०. ऊँ भूर्भुवः स्वः जामदग्न्य इहागच्छ
इहतिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
११. ऊँ भूर्भुवः स्वः अश्वत्थामन्
इहागच्छ इहतिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
१२. ऊँ भूर्भुवः स्वः कृपाचार्य इहागच्छ
इहतिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
१३. ऊँ भूर्भुवः स्वः प्रह्लाद इहागच्छ
इहतिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
१४. ऊँ भूर्भुवः स्वः हनुमन् इहागच्छ
इहतिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
१५. ऊँ भूर्भुवः स्वः विभीषण इहागच्छ
इहतिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
१६. ऊँ भूर्भुवः स्वः षष्ठीदेवि इहागच्छ
इहतिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
द्वितीय समूह की पहली पंक्ति—
१. ऊँ भूर्भुवः स्वः गुरव इहागच्छत
इहतिष्ठत पूजार्थं युष्मानावाहयामि।
२. ऊँ भूर्भुवः स्वः देवता इहागच्छत
इहतिष्ठत पूजार्थं युष्मानावाहयामि।
३. ऊँ भूर्भुवः स्वः अग्ने इहागच्छ
इहतिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
४. ऊँ भूर्भुवः स्वः विप्राः इहागच्छत
इह तिष्ठत पूजार्थं युष्मानावाहयामि।
५. ऊँ भूर्भुवः स्वः पितर इहागच्छत इह
तिष्ठत पूजार्थं युष्मानावाहयामि।
६. ऊँ भूर्भुवः स्वः पञ्चभूतानि इहागच्छत
इह तिष्ठत पूजार्थं युष्मानावाहयामि।
७. ऊँ भूर्भुवः स्वः नवग्रहा इहागच्छत
इह तिष्ठत पूजार्थं युष्मानावाहयामि।
८. ऊँ भूर्भुवः स्वः काल इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
९. ऊँ भूर्भुवः स्वः कलियुग इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
द्वितीय समूह की, नीचे से दूसरी
पंक्ति—
१०. ऊँ भूर्भुवः स्वः सम्वत्सर इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
११. ऊँ भूर्भुवः स्वः मास इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
१२. ऊँ भूर्भुवः स्वः पक्ष इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
१३. ऊँ भूर्भुवः स्वः जन्मतिथे इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
१४. ऊँ भूर्भुवः स्वः जन्मनक्षत्र इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
१५. ऊँ भूर्भुवः स्वः जन्मराशे इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
१६. ऊँ भूर्भुवः स्वः शिवे इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
१७. ऊँ भूर्भुवः स्वः सम्भूते इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
१८. ऊँ भूर्भुवः स्वः प्रीते इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
द्वितीय समूह की नीचे से तीसरी
पंक्ति—
१९. ऊँ भूर्भुवः स्वः सन्नते इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
२०. ऊँ भूर्भुवः स्वः अनसूये इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
२१. ऊँ भूर्भुवः स्वः क्षमे इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
२२. ऊँ भूर्भुवः स्वः विघ्नवति इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
२३. ऊँ भूर्भुवः स्वः भद्रे इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
२४. ऊँ भूर्भुवः स्वः इन्द्र इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
२५. ऊँ भूर्भुवः स्वः अग्ने इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
२६. ऊँ भूर्भुवः स्वः यम इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
२७.ऊँ भूर्भुवः स्वः निर्ऋते इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
द्वितीय समूह की नीचे से चौथी पंक्ति—
२८. ऊँ भूर्भुवः स्वः वरुण इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
२९. ऊँ भूर्भुवः स्वः वायो इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
३०. ऊँ भूर्भुवः स्वः धनद इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
३१. ऊँ भूर्भुवः स्वः ईशान इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
३२. ऊँ भूर्भुवः स्वः अनन्त इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
३३. ऊँ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मन् इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
३४. ऊँ भूर्भुवः स्वः कार्तिकेय इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
३५. ऊँ भूर्भुवः स्वः जन्मदेवते इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
३६. ऊँ भूर्भुवः स्वः स्थान देवते इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
द्वितीय समूह की नीचे से पांचवीं पंक्ति—
३७. ऊँ भूर्भुवः स्वः प्रत्यक्षदेवते इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
३८. ऊँ भूर्भुवः स्वः वासुदेव इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
३९. ऊँ भूर्भुवः स्वः क्षेत्रपाल इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
४०. ऊँ भूर्भुवः स्वः पृथिवि इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
४१. ऊँ भूर्भुवः स्वः आप इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
४२. ऊँ भूर्भुवः स्वः तेज इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
४३. ऊँ भूर्भुवः स्वः वायो इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
४४.ऊँ भूर्भुवः स्वः आकाश इहागच्छ इह
तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
४५. ऊँ भूर्भुवः स्वः ब्राह्मण इहागच्छ
इह तिष्ठ पूजार्थं त्वामावाहयामि।
प्रतिष्ठा—
उक्त
मन्त्रोच्चारण सहित देवर्षिग्रहनक्षत्रादि सभी का आवाहन-स्थापन करने के पश्चात् निम्नांकित
मन्त्रोच्चारण पूर्वक पुष्पाक्षत लेकर देवमण्डल में विखेर दे—
ऊँ एतं ते देव सवितर्यज्ञं
प्राहुर्बृहस्पतये ब्रह्मणे। तेन यज्ञमव तेन यज्ञपतिं तेन मामव।। ऊँ भूर्भुवः स्वः
कुलदेवतादिदेवताः गुर्वादिक देवताश्च इहागच्छन्तु इह तिष्ठन्तु सुप्रतिष्ठिता वरदा
भवन्तु।।
पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन—
तत्पश्चात् दोनों समूहों को बारी-बारी से यथोपलब्ध सामग्री पूर्वक यथोचित पूजन
करे। यदि संक्षेप में करना चाहे तो एकतन्त्रसे निम्नांकित मन्त्रोच्चारण करते हुए
पूजन सम्पन्न कर सकते हैं— सर्वेभ्यो आवाहित देवेभ्यो नमः सर्वोपचारार्थे
गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि, नमस्करोमि।
अब
नवग्रहों को अलग से पुष्पाञ्जलि दे इस मन्त्र से—
ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च। गुरश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा
भवन्तु।।
पुनः
पुष्पाक्षत लेकर सप्तचिरजीवियों को अर्पित करके प्रार्थना करे— अश्वत्थामा
बलिर्व्यासो हनूमाँश्च विभीषणः। कृपश्च परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः।।
सप्तैताँश्च स्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टकम्। जीवेद्वर्षशतं
साग्रमपमृत्युविवर्जितः।।
तदनन्तर
एक पत्रपुटक में तिल, दूध, गुड़ रख कर मार्कण्डेयजी को निवेदित करे एवं निम्न
मन्त्र से पुष्प अर्पित करे— आयुष्प्रद महाभाग सोमवंशसमुद्भव। महातपो
मनिश्रेष्ठ मार्कण्डेय नमोऽस्तु ते।।
पुनः
पुष्पाक्षत लेकर प्रार्थना करे—
मार्कण्डेय महाभाग सप्तकल्पान्तजीवन।
आयुरारोग्यसिद्ध्यर्थमस्माकं
वरदो भव।।
चिरजीवी
यथा त्वं भो भविष्यामि तथा मुने।
रूपवान्वित्तवाँश्चैव
श्रिया युक्तश्च सर्वदा।।
मार्कण्डेय
नमस्तेऽस्तु सप्तकल्पान्तजीवन।
आयुरारोग्यसिद्ध्यर्थं
प्रसीद भगवन्मुने।।
चिरजीवी
यथा त्वं तु मुनीनां प्रवर द्विज।
कुरुष्व
मुनिशार्दूल तथा मां चिरजीविनम्।।
पुनः
पुष्पाक्षत लेकर षष्ठीदेवी की प्रार्थना करे—
जयदेवि
जगन्मातर्जगदानन्दकारिणि।
प्रसीद
मम कल्याणि महाषष्ठि नमोऽस्तु ते।।
रूपं
देहि यशो देहि भगं भगवति देहि मे।
पुत्रान्
देहि धनं देहि सर्वान् कामाँश्च देहि मे।।
त्रैलोक्ये
यानि भूतानि स्थावराणि चराणि च।
ब्रह्माविष्णुशिवैः
सार्धं रक्षां कुर्वन्तु तानि मे।।
ध्यातव्य— वर्धापनविधान में पूजनोपरान्त
विधिवत होमकार्य का किंचित् ऋषियों ने निषेध किया है। वस्तुतः ये अनिवार्य नहीं
है।
किन्तु
संक्षेप में किया भी जा सकता है। अतः आवाहित-पूजित सभी देवताओं के नाममन्त्र से
सिर्फ घी की एक-एक आहुतियाँ प्रदान कर लेना चाहिए।
(विस्तृत हवन विधान के लिए इस पुस्तक
के गत अध्यायों का सहयोग लें)
बलिविधान—हवन के पश्चात् सर्वभूतेभ्यो नमः उच्चारण
करते हुए एक पत्रपुटक में पायस (सिर्फ दूध में पका हुआ चावल) लेकर वहीं हवन वेदी
के समीप अर्पित करके, जल गिरा दे।
अब
तिल-दूध-गुड़, जो मार्कण्डेयजी को
अर्पित किया गया था, उसमें से थोड़ा-थोड़ा पाँच बार अंजलि में लेकर पान करे
निम्नांकित मन्त्रोच्चारण करते हुए और अन्त में तीन बार आचमन करे—
सतिलं गुडसम्मिश्रमञ्जल्यर्धमितं पयः।
मार्कण्डेयाद्वरं लब्ध्वा पिबाम्यायुर्विवर्द्धये।।
वर्षगाँठसूत्रबन्धन—
तत्पश्चात्
पूर्व में गणेशाम्बिका समक्ष रखा गया वर्षगाँठ वाला मौली उठाकर, सादर प्रणाम करते
हुए, पुरुष दाहिनी भुजा में एवं स्त्री बायीं भुजा में स्वयं बाध ले या आचार्यादि
पूज्य जन से बंधवा ले—
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो
महाबलः।
तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा
चल।।
दक्षिणा
संकल्प— तत्पश्चात्
पुष्पाक्षतजलद्रव्यादि लेकर यथोचित दक्षिणार्थ संकल्प करके ब्राह्मण को प्रदान करे
— ऊँ अद्येत्यादि ....आयुरारोग्याभिवृद्धये कृतायाः पूजायाः साद्गुण्यार्थे
इमां दक्षिणां ब्राह्मणेभ्यश्च विभज्य दास्ये। तत्पश्चात् ब्राह्मण एवं
पूज्यजनों का चरणस्पर्श कर आशीष ले।
विसर्जन— तदनन्तर पुष्पाक्षत लेकर, आवाहित देवों के
विसर्जन निमित्त मन्त्रोच्चारण करके, यथास्थान छोड़ दे—गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वर । यत्र ब्रह्मादयो देवास्तत्र
गच्छ हुताशन ।। यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् । इष्टकामसमृद्ध्यर्थं
पुनरागमनाय च ।।
भगवत्समरण—
पुनः पुष्पाक्षत लेकर निम्नांकित मन्त्रोच्चारण करे— प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत् । स्मरणादेव तद् विष्णोः
सम्पूर्णं स्यादिति श्रुतिः ।। यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु ।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्।। यत्पादपङ्कजस्मरणाद् यस्य
नामजपादपि । न्यूनं कर्म भवेत् पूर्णं
वन्दे साम्बमीश्वरम् ।। ऊँ विष्णवे नमः । ऊँ विष्णवे नमः। ऊँ विष्णवे नमः ।
ऊँ साम्बसदाशिवाय नमः । साम्बसदाशिवाय नमः । साम्बसदाशिवाय नमः ।।
निवेदन— सनातन पद्धति से जन्मदिन कैसे मनाएं
इस सम्बन्ध में विस्तृत विधान की चर्चा की गयी। यदि इस विस्तृत विधि का पालन न कर
सकें, वैसी स्थिति में कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं— स्नानोपरान्त शुद्ध
वस्त्र धारण करके, माता-पिता-गुरुजनों द्वारा आशीष स्वरूप तिलक लगवावें। तथा उक्त
पूजाविधान में दिए गए श्लोकों से मार्कण्डेयादि
महर्षियों की प्रार्थना करके आशीष लें। तत्पश्चात् एक थाल में वृत्ताकार दीपमालिका
(मिट्टी के दीए) सजा दे। जितने वर्ष व्यतीत हो चुके हों, उतने दीप वृत्त की परिधि
पर रहें और अपेक्षाकृत अन्य दीए से थोड़ा बड़ा एक दीया वृत्त के मध्य में रखकर, घर
में जो भी देवी-देवता की तस्वीर या मूर्ति हो या समीप का कोई मन्दिर हो, उनकी आरती
उतारें—चौदह बार—चार बार पैरों के पास, दो बार नाभि के पास, एक बार मुख के
पास एवं पुनः सात बार पूरे विग्रह पर। तत्पश्चात् माता-पिता गुरुजनों द्वारा बालक
की आरती उसी दीपमालिका से उतारी जाए।
छद्मरूप से अंडा खाकर, नकारात्मक
ऊर्जा फैला कर म्लेच्छों की परिपाटी का अन्धानुकरण करने से लाख गुना अच्छा है, अपनी
सनातनी परम्परा का संक्षिप्त अनुसरण।
00000--000000
जन्मदिन पूजा पद्धति के इस प्रसंग के साथ ही षोडशसंस्कार विषयक प्रसंग पूरा हुआ।
आगे किसी नये विषय के साथ आपसे पुनः मिलना हो सकेगा। साधुवाद।
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