मगबन्धु का उदयाचल ध्वज
(पत्रिका समीक्षा)
भगवान
भास्कर के तेजोमय अंश-सृजित विश्वकर्मणीयकृति शाकद्वीपीय दिव्य ब्राह्मणों की
ध्वजवाहिका—मगबन्धु(अखिल) का “ओडिशा के
मग-ब्राह्मण” विषेशांक स्वरूप ४१वाँ अंक मनमोहक साज-सज्जा-सुसज्जित होकर सम्मुख
उपस्थित है अवगुँठित नववधू की तरह और उत्सुक-भाउक-लोलुप-चंचल चित्त ये सुनिश्चित
नहीं कर पा रहा है कि सर्वप्रथम इस सुन्दरी के किस अंग का स्पर्श-सुख-लाभ ग्रहण
करूँ—पहले मुख चुम्बन करूँ या उदर-स्पर्श या एक ही श्वांस में सर्वांग बाहुभरण ही
कर लूँ !
चन्द्रभागा
के तट पर अठखेलियाँ करते लोग और उसके नीचे कोणार्क सूर्य मन्दिर का अष्ट्रारचक्र,
जिसके दायीं ओर साम्ब दशमी और बायीं ओर सूर्यदेव रथ की छवि वाला आकर्षक
मुखपृष्ठ अवलोकित होते ही चिन्तन और स्मृति गह्वर में घसीट ले गया—कितने
भाग्यवान हैं हम मगबन्धु, कितने पुण्यवान हैं हम मगबन्धु
जिनके पास ऐसे-ऐसे अद्भुत धरोहर हैं, ऐसी दिव्य संस्कृति है।
अतीत
का स्मरण भी प्रायः हर्षित-रोमांचित कर जाता है। विष्णुवाहन—गरुड़ारूढ़ होकर शाकद्वीप
से जम्बूद्वीप में पधारने पर चन्द्रभागा तट पर ही तो हमारा प्रथम पदार्पण हुआ था
साम्ब-सूर्य-याग हेतु और वहीं से पीतबेल अमरलता की भाँति चहुँ ओर विस्तार पाने लगे
थे हम शाकद्वीपीय सूर्यांशी।
कुछ
देर तक अतीत की झाँकियों में ही खोया रहा। फिर ध्यान आया—मैं तो मगबन्धु के नये
विशेषांक को पढ़ने बैठा हूँ, जबकि आवरणपृष्ठ में ही खो गया।
जिसका
वाह्यावरण ही इतना आकर्षक है, मनभावन है, उसका अन्तस कैसा होगा—सोचते हुए शनैः-शनैः
पन्ने पलटने लगा।
विषय
सूची के कुल अड़तीस क्रमांकों को क्रमिक रूप से निहार लिया, जो सम्पादकीय
से शुरु होकर मगजागृति फाउन्डेशन ट्रस्ट के सहयोगी सदस्यों की सूची पर
समाप्त हो रहा है।
“अंग्रेजी की एक
कहावत है कि चुँकि हम दूसरों को नहीं जानते हैं, इसलिए हम उनसे दूरी का अनुभव करते
हैं और चुँकि हम दूरी का अनुभव करते हैं, इसलिए हम उन्हें जान नहीं पायेंगे”—डॉ.सुधान्शुशेखर
मिश्रजी की सुदृढ़-सबल सम्पादकीय लेखनी से उतरी ये प्रथम पंक्ति ही सामने रखी
रसमलाई की तरह ललचा गई जल्दी से जल्दी पूरे रसास्वादन हेतु। फलतः एक-एक करके पढ़ने
लगा और जब तक ताश के बावन पत्तों की तरह ५२ पृष्ठों वाली पूरी पत्रिका को पढ़ न
लिया, कहीं और भटकने की सुधी भी न रही मन को।
सर्वप्रथम आदरणीय ज्योतीन्द्र भाईजी की विशेष
प्रतिक्रिया के साथ-साथ प्रियवर विजय प्रकाश शर्माजी, आदरणीया दीदी डॉ. शैल कुमारी
मिश्रजी एवं आयुष्मान महेश पाठकजी की प्रतिक्रियाओं से अवगत हुआ।
आलेख श्रृंखला में सर्वप्रथम श्री शरतकुमार महापात्र जी
का आलेख—“ कोणार्क
सूर्य मन्दिर और सूर्य पूजक शाकद्वीपीय ब्राह्मण” को पढ़ने के बाद अपनी जानकारियों की कमी का भान
हुआ और विविध विन्दुओं वाले विस्तृत आलेख से कोणार्क से सुपरिचित होने का लाभ
मिला। “शाकद्वीपीय
ब्राह्मणों का केन्द्र ओडिशा और विस्तार” शीर्षक युक्त डॉ.
विजयप्रकाश शर्माजी के आलेख ने कई नयी जानकारियाँ दी, जिन्हें मग विषयक अपने
शोधकाल में भी नहीं जुटा पाया था। “पुरी के कलेक्टरःपं.रमावल्लभ मिश्रजी” के सम्बन्ध में एक लघु
आलेख भी मिला, जिनके कुल पुरोहित का जामाता होने का मुझे सौभाग्य प्राप्त है। आज
भी इनके परिवार से मेरा हार्दिक जुड़ाव है। “ओडिशा का एक महत्त्वपूर्ण पर्वःसाम्ब दशमी” शीर्षक से आदरणीय
श्री अनन्त सी. नायक जी के लघु आलेख से अपनी जानकारी के पिटारे का आकार वृद्धि
करने में सफल रहा। “शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के विरुद्ध सामाजिक षड़यन्त्र का प्राकटीकरण” शीर्षक तो
गागर में सागर की तरह है। वस्तुतः ये “शाकद्वीपीय
ब्राह्मण परिचय” नामक मूल ओडिया ग्रन्थ का हिन्दी रूपान्तरण है, जिसकी प्रस्तुति डॉ. रमाकान्त
पाण्डेयजी द्वारा की गई है। “निखिलोत्कल शाकद्वीपीय ब्राह्मण समाज का इतिहास” शीर्षक आलेख
की रुचिकर और ज्ञानवर्द्धक प्रस्तुति है पं. विजय नायक शर्माजी की। इसमें ओडिशा के
सामाजिक संगठनों की विस्तृत चर्चा है। “ऐतिहासिक परिपेक्ष में ओडिशा के मग-ब्राह्मण” शीर्षक से श्री शरत कुमार महापात्र जी ने सुपरिचय कराया है हम मगबन्धुओं
को। “धर्म प्रवाचकःपं.वनविहारी ग्रहाचार्य जी” का संक्षिप्त जीवन
परिचय प्रस्तुत किया है श्री राजन नायक जी ने और इसके साथ ही ओडिशा के
मगव्राह्मणों में प्रचलित षोडश उपनामों की सूची भी उपलब्ध है। भुवनेश्वर के आचार्य
विभुरंजन जी ने “श्री प्रभाकर नायक
उर्फ सत्यानाश जी से एक साक्षात्कार” कराया है हम मगबन्धुओं को। निरन्तर रोचक ऐतिहासिक शोधरत
प्रियवर सत्येन्द्र कुमार पाठक जी (जहानाबाद) ने अपने लधु आलेख “सूर्य की उपासनाःभारत और विश्व का सौर धर्म” के माध्यम से हम मगबन्धुओं को जगाने का स्तुत्य प्रयास
किया है। राउरकेला के श्री शेखर आचार्य जी ने “साधक कर्मकाण्डी और
समाज सेवी श्री अखिलकुमार दास जी” से परिचय कराया है मगबन्धु को। श्री राजन नायक जी का आंग्ल आलेख “Settlement Villages of Mag-Braman in different
District of Odisha ” काफी उपयोगी लगा।
इन विविध
आलेखों के पश्चात् “एक अन्तिम विमर्श ” के रूप में मेरी प्रस्तुति भी दर्ज है, जिसके लिए प्रियवर डॉ. सुधान्शु
शेखर मिश्र जी को साशीष साधुवाद देना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूँ।
“पक्की बात,कच्ची
भात” ये रोचक शीर्षक है
हमारे प्यारे भाईजी श्री ज्योतीन्द्र मिश्र जी के लघु आलेक का, जो अभी हाल में ही
पटना में आयोजित कार्यक्रम—भात पर गोतिया से हमें परिचय कराता है। श्री
शुभेन्दु शेखर जी ने अपने पिताश्री से परिचय कराया है हमें “हमारे
बाबूजीःपं.सत्यदेव शान्तिप्रिय और मैं” शीर्षक वाले अपने आलेख से। “वनदेवी विहटा” शीर्षक आलेख की प्रस्तुति है राघोपुर के श्री देवेश
पाठकजी की। श्री अनुप कुमार शर्माजी ने “गुरुबाबू भैरवी चरण शर्मा—एक प्रकाश-पुंज” की रोचक प्रस्तुति
दी है। इसके साथ ही श्रीमती प्रभा मिश्र और रचना मिश्र की कविताओं का रसास्वादन
करने का अवसर भी मिला है इस अंक में मगबन्धुओं को।
अन्य अंकों की भाँति समाचार, पुस्तक समीक्षा, श्रद्धाँजलि,
विवाह योग्य लड़के-लड़कियों की सूची इत्यादि स्थायी स्तम्भों से मगबन्धु के अंकों
की शोभा और उपयोगिता में चार चाँद चमकने लगते हैं। कुल मिलाकर कहें तो मगबन्धु(अखिल)
की नियमित ही नहीं बल्कि समय पूर्व प्रकाशन और वितरण के लिए सर्वप्रथम डॉ. सुधान्शु
शेखर मिश्रजी शुभकामना,
आशीर्वाद और साधुवाद के पात्र हैं, जिनके अथक परिश्रम और प्रयास का ही परिणाम है
अबतक के ४१ अंक। इनके साथ ही पत्रिका के अन्यान्य सहयोगी सदस्यगण, सम्पादन और
परामर्श मण्डल भी साधुवाद के अधिकारी हैं, क्योंकि अकेला चना भाँड़ नहीं फोड़
सकता। किन्तु मेरा निवेदन है सभी मगबन्धुओं से कि उक्त चने की मात्रा थोड़ी और
बढ़ाने हेतु संकल्पित हों। ताकि उदयाचल पर लहराया मगध्वज आर्यावर्त ही नहीं, प्रत्युत
विश्व-व्यापी हो। हमें खुशी ही नहीं, बल्कि गर्व होता है कि विगत कई अंकों का
लोकार्पण-समारोह प्रकाशन-केन्द्र राँची(झारखंड)से बाहर पटना, वाराणसी, इलाहाबाद
जैसे नगरों में सम्पन्न हुआ। और इस बार तो और भी दिव्य स्थिति रही—सीधे जगन्नाथपुरी
ही पहुँच गया हमारा मगबन्धु(अखिल)। मेरी कामना है कि इसी भाँति आगामी अंकों का
भव्यातिभव्य लोकार्पण समारोह मथुरा, अयोध्या, द्वारका, उज्जैन आदि नगरों में हो।
आचार्य आद्य शंकर ने भारतवर्ष के चारों दिशाओं में चार धामों की स्थापना की थी।
मगबन्धु(अखिल)के ध्वजवाहक भी इस पुनीत कार्य की पुनरावृत्ति करने में सक्षम हों। जयभास्कर।
#कमलेश
पुण्यार्क (गुरुजी)
श्री योगेश्वर
वास्तु-ज्योतिष समाधान केन्द्र,
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