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श्री कमलेश पुण्यार्क 

श्री कमलेश पुण्यार्क एक बहुश्रुत नाम है लेखन और प्रकाशन जगत में। अद्यतन सोशलमीडिया में भी आप छाये हुए हैं। यूट्यूबचैनल पुण्यार्ककृति पर वास्तु और ज्योतिष सम्बन्धी आपके शताधिक व्याख्यान उपलब्ध हैं। आपके ब्लॉग www.punyarkkriti.blogspot.com को श्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग की सूची में सन् २०१६ में ही शामिल किया जा चुका है। अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी गद्यकोष पर आपकी प्रायः रचनायें उपलब्ध हैं। आपकी कुछ पुस्तकों को ओशाका विश्वविद्यालय, जापान के केन्द्रीय पुस्तकालय में भी देखी जा सकती हैं। अमेजन, फ्लिपकार्ड, एक्जोटिक जैसे ऑनलाइन मार्केट में भी आपकी पुस्तकें सुलभ हैं। आपकी बहुआयामी अबाध लेखनी विगत ५०वर्षों से हिन्दी साहित्य के अतिरिक्त तन्त्र, ज्योतिष, वास्तु एवं चिकित्सा जगत को समृद्ध करती रही है। आकाशवाणी पटना एवं राँची से समय-समय पर कहानियाँ एवं आलेख प्रसारित होते रहे हैं। मगबन्धु, दिव्यरश्मि, राष्ट्रधर्म, दहेजदावन, शुभचिन्तिका, धर्मायण आदि विभिन्न पत्रिकाओं में भी आपके आलेखों को स्थान मिलते रहा है।

आपका जन्म बिहार प्रान्त के अरवल जिला, कलेर प्रखण्ड के मैनपुरा नामक ग्राम में २०-९-१९५३ई. को शाकद्वीपीय ब्राह्मण कुल शिरोमणि उद्भट्ट साधक श्रीसुमंगल पाठकजी के चतुर्थपुत्र पंडित श्री श्रीवल्लभ पाठकजी एवं श्रीमती सरस्वती देवी के घर में हुआ । आपकी प्रारम्भिक शिक्षा निज ग्रामीण विद्यालय में ही हुयी। चौथी कक्षा के पश्चात् सुदूर बंग प्रान्त के खड़गपुर नगर में अपने फूफा श्री उमाशंकर मिश्रजी के सानिध्य में रहते हुए पश्चिम बंगाल वोर्ड से हाईयर सेकेन्ड्री परीक्षा उतीर्ण किए। तत्पश्चात् पुनः बिहार वापसी हुयी और पटना कॉलेज ऑफ कॉमर्स से वाणिज्य स्नातक तक की पढ़ाई सम्पन्न किए।

सन् १९७१ ई. में आपका विवाह औरंगाबाद मण्डलान्तर्गत बेनी (वरियावाँ) ग्रामवासी वैद्यराज श्री देवकुमार पाण्डेयजी की तृतीया पुत्री श्रीमती पुष्पा पाण्डेय के साथ सम्पन्न हुआ और यहीं से आपके जीवन और कर्मक्षेत्र का भटकाव प्रारम्भ हो गया।

बिहार योगविद्यालय, मुंगेर के संस्थापक स्वामी सत्यानन्द सरस्वती जी एवं कालीघाट, कलकत्ता के लालबाबा से आप वाल्यावस्था से ही प्रभावित रहे। किन्तु सुयोग नहीं जुट पाया उनके सुदीर्घ सान्निध्य का। स्नातकोपरान्त पांडिचेरी के सन्त श्री मणिभाईजी से योग-एक्यूप्रेशर का विधिवत प्रशिक्षण लेकर यायावरी में निकल पड़े। सन् १९७१ से ७७ तक कलकत्ता, राँची, गुमला, लखनउ, सीतापुर, फैजाबाद, अलीगढ़, लुधियाना, दिल्ली, वाराणसी, अयोध्या, विन्ध्याचल आदि का भरपूर खाक छाने और अन्ततः औरंगाबाद कचहरी को ठिकाना बनाकर वरिष्ठ अधिवक्ता श्री नीलमबाबू के यहाँ स्टेनो-टाइपिस्ट का कार्य करने लगे ।

दरअसल आप जो करना चाहते थे, वो हो नहीं रहा था। आपकी इच्छा एक ऐसी संस्था की स्थापना की थी, जहाँ पारम्परिक विद्याओं के अनुसन्धान और विकास पर कार्य किया जा सके। तन्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि के प्रति आपका शुरु से ही रुझान रहा । अध्ययन-काल में अपने पाठ्य विषय की अपेक्षा अन्यान्य विषयों का ही अध्ययन-मनन-चिन्तन अधिक किया आपने। एक चौंकाने वाली बात है कि वाणिज्य का स्नातक, दो-ढाई वर्षों तक सुदामा रामचन्द्र आयुर्वेद महाविद्यालय, डालमियानगर में व्याख्याता की कुर्सी भी सम्भाला। नाम किरानी में,काम व्याख्याता का । किन्तु शापित नारद की तरह भटकाव का क्रम जारी रहा आगे भी।

ज्ञातव्य है कि आपके स्वसुर वैद्यराजजी को पुत्र नहीं था, फलतः उनकी इच्छा थी कि उनके श्रीदुर्गाआयुर्वेदभवन का कार्यभार सम्भाल लें तो एक पंथ दो काज हो जाए— जमाता का भटकाव समाप्त हो जाए और दूसरी ओर उन्हें सुयोग्य सम्बल मिल जाए। अन्ततः ससुराल पक्ष की प्रेरणा और आग्रह ने बेनी ग्रामवासी बना दिया आपको । सन् १९७७ से १९८८ तक नवीनगर प्रखण्डवासियों की बड़े मनोयोग पूर्वक सेवा की आपने। चुँकि वैद्यजी की प्रतिष्ठा अपने क्षेत्र में काफी अधिक थी, जिसका उत्तराधिकार सौंपा गया था आपको। किन्तु “ शापितनारद ” यहाँ भी टिक न सके । क्षुद्र पारिवारिक राजनीति का शिकार होकर ससुराल त्यागकर वापस अपने जन्मस्थान पर आ गए।

इसी बीच १९९० में पिताजी का देहान्त हो जाने के कारण मैनपुरा की व्यवस्था का भी दायित्व आ गया। किन्तु दुर्बल गृहस्थिति में लम्बे समय तक टिक पाना सम्भव न हुआ और भटकाव का क्रम फिर से जारी हो गया। पटना, गया, वाराणसी के बीच स्थायित्व की खोज का लम्बा दौर चला। इसी बीच प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो.डी.डी.गुरु के सौजन्य से योगसंस्थान पटना में अवसर मिला, किन्तु एक वर्ष में ही वह संस्था समाप्त हो गयी और गांव वापस आ जाना पड़ा ।

पुनः सन् १९९५ में शिवराम डालमिया के आग्रह पर गया आना हुआ और तब से अब तक गया-प्रवासी बनकर, कालक्षेप हो रहा है। गया आने पर वाकायदा श्रीयोगेश्वरआश्रम की स्थापना किए अपने किराये के मकान में ही और ज्योतिष-वास्तु को जीविका बनाकर, साहित्य-साधना में सतत तल्लीन हो गए। विष्णुनगरी गया में रहते हुए भी, ब्राह्मणों का मुख्य कर्म— पिण्ड-कर्मकाण्ड और पौरोहित्य से सदा परहेज करते रहे । दान न लेना और श्राद्धभोजन न करना आपका बुनियादी संकल्प रहा। विकट संघर्ष पूर्ण स्थिति में भी लेखन और शोधकार्य निरन्तर जारी रहा। अब तक करीब बीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अप्रकाशित पुस्तकों की संख्या भी दस के करीब है। पाठकों की जानकारी हेतु आगे समग्र पुण्यार्क साहित्य-सूची प्रस्तुत है—

१. पुण्यार्कमगदीपिका-शाकद्वीपीयब्राह्मण लघुशोध-सुमंगलम् प्रकाशन- मूल्य २२५रु.(हार्डबॉण्ड ४५०रु.)

२. पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-वास्तुसिद्धान्त एवं प्रयोग-चौखम्बा संस्कृत भवन, वाराणसी- मूल्य १००० रु.(सिर्फ हार्डबॉण्ड)

३. पुण्यार्कवास्तुपूजापद्धति- चौखम्बासंस्कृतभवन - मूल्य १७५ रु. (पेपरवैक)

४. पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्- वनस्पतियों का तान्त्रिक प्रयोग- चौखम्बासंस्कृतसीरीज-मूल्य १२५ रु. (पेपरवैक)

५. शिरादाबःसिद्धान्त और प्रयोग- एक्यूप्रेशर- चौखम्बा संस्कृत सीरीज-मूल्य २५०रु. (पेपरवैक)

६. कालसर्पयोगःकारण और निवारण- चौखम्बा संस्कृत सीरीज- मूल्य १७५ रु. (पेपरवैक)

७. नाड्योपचारतन्त्रम्- ब्लूरोज पब्लिकेशन,दिल्ली- मूल्य २५५रु.

८. सूर्यविज्ञानःआत्मचिन्तन- नोशनप्रेस,चेन्नई - मूल्य १७५रु. (पेपरवैक)

९. बाबाउपद्रवीनाथ का चिट्ठा- तन्त्र-योग साधनाधारित उपन्यास-नोशनप्रेस,चेन्नई- मूल्य ३३० रु. (पेपरवैक)

१०. निरामय- शाश्वतप्रेम की अमरकीर्ति-उपन्यास- नोशनप्रेस- मूल्य २७५ रु. (पेपरवैक)

११. पुनर्भव- पुनर्जन्म पर आधारित उपन्यास- नोशनप्रेस,चेन्नई - मूल्य ३५०रु. (पेपरवैक)

१२. अधूरीपतिया-आंचलिक उपन्यास- नोशनप्रेस,चेन्नई -मूल्य ३१०रु. (पेपरवैक)

१३. अधूरामिलन-यात्रावृत्तान्तपरक उपन्यास- नोशनप्रेस,चेन्नई -मूल्य २००रु. (पेपरवैक)

१४. व्यंग्यवेदना-व्यंग्य एवं आलेख संग्रह- नोशनप्रेस, चेन्नई - मूल्य १७०रु. (पेपरवैक)

१५. भोंचूशास्त्री की वेदना-व्यंग्य संग्रह- नोशनप्रेस, चेन्नई -मूल्य २००रु. (पेपरवैक)

१६. शंख की चूड़ी-कहानी संग्रह-लोकनाथ प्रकाशन-मूल्य १५०रु. (पेपरवैक)

१७. विचारवीथी(आलेखसंग्रह)बुकक्लीनिक,विलासपुर-मूल्य ४२५रु.

१८. वटेसरकाका की बतकही (व्यंग्यसंग्रह)वीएफसीपी,लखनऊ- मूल्य ३२५रु.

१९. भुलेटनभगत की खिचड़ी(कहानी,आलेख,व्यंग्यसंग्रह)संकल्पप्रकाशन, विलासपुर- मूल्य २२५रु.

२०. सप्तशतीःएक अध्ययन- ब्लूरोज पब्लिकेशन,दिल्ली- मूल्य ४२५रु.

२१. सोढ़नदास की हज़ामत(आलेख व व्यंग्यसंग्रह)-अप्रकाशित

२२. षट्पञ्चाशिकाप्रकाश- अप्रकाशित

२३. सप्तशतीसाधनारहस्यम्- अप्रकाशित

२४. पुण्यार्कज्योतिषदीपिका- अप्रकाशित

२५. मगकुलदेवतापूजाप्रकाश - अप्रकाशित

२६. स्थावरजांगमद्रव्यों का प्रयोग- अप्रकाशित

२७. वास्तुसंरचनाःसिद्धान्त और प्रयोग- अप्रकाशित

२८. धर्मतत्त्वचिन्तन – अप्रकाशित

२९. शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के अपरिहार्य कृत्य- अप्रकाशित

३०. शौचाचार आचार-विचार- अप्रकाशित

३१. प्रतिशोध और प्रायश्चित (नाटक) – अप्रकाशित

३२. अन्त्यकर्मविमर्श-(मरणासन्न-मरणोपरान्त-कृत्य)-अप्रकाशित

३३. तन्त्र-साधना-रहस्य- अप्रकाशित

३४. योग-साधना-रहस्य- अप्रकाशित

३५. मन्त्र-चैतन्य-रहस्यम्- अप्रकाशित

३६. वन्ध्यातन्त्रम्- अप्रकाशित

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