(8) थूहर(सीज) का बाँदा- थूहर एक जहरीला सा पौधा है।इसके सर्वांग
में दूध ही दूध भरा होता है।इसका दूध आंखों के लिए बड़ा ही घातक है।वैसे इसके दूध
को सुखा कर, गोलियाँ वनाकर उदरशूल में वैद्य लोग प्रयोग करते हैं।यानी कि प्राणहर
नहीं है।इसकी लगभग डेढ़ सौ प्रजातियाँ हैं।सबके गुणधर्म भिन्न हैं।गृहवाटिका में
इसके विभिन्न प्रजातियों को खूबसूरती के लिए लगाते हैं।इसका प्रचलित नाम कैक्टस
है।मेरा अभीष्ट ये सभी प्रजातियाँ नहीं,बल्कि इसकी एक खास प्रजाति है, जो एक-डेढ़
ईंच गोलाई वाला तना मूलक होता है।पुराना होने पर मध्यम वृक्ष के
आकार का हो जाता है।तब
इसके तने की मोटाई भी काफी अधिक हो जाती है।इसकी हरी कोमल पत्तियों को घी में भूंज
कर रस निचोड़, खांसी-जुकाम में भी प्रयोग करते हैं।इसका गुण कफ-निस्सारक है।पहले,
देहातों में प्रसूतिका गृह के द्वार पर इसे अवश्य स्थापित किया जाता था।मान्यता यह
थी कि इसके द्वार-रक्षण से भूत-प्रेतों का प्रभाव सूतिकागृह में नहीं होता।सूर्य
जब हस्ता नक्षत्र में आते
हैं(बरसात के दिनों में) तब इसकी गांठों को सरकंडे के साथ मिलाकर किसान अपने धान
के खेतों की रक्षा के लिए मेड़ पर स्थापित करते हैं।आज शहरी सभ्यता में भी प्रायः
घरों में इसका छोटा पौधा गमलों में कैद नजर आजाता है।इससे वास्तु दोषों का भी
निवारण होता है।विहित समय में थूहर का बाँदा पूर्व निर्दिष्ट विधि से घर
लाकर,स्थापित-पूजित कर रख लेना चाहिए। प्रत्युत्पन्न मतित्त्व के लिए यह बड़ा ही
अद्भुत है।वाक् पटुता,वाक् चातुरी, प्रभाव, सम्मोहन,मेघाशक्ति वर्धन, दूर्दर्शिता,चिन्तन शक्ति आदि में इसका यथोचित प्रयोग करना चाहिए।ध्यान रहे-
ये सारे अद्भुत गुण तत् वनस्पति की विधिवत मंत्र संयोग और सिद्धि से ही सम्भव
है।विना सम्यक् सिद्धि के कोई चमत्कार लक्षित नहीं होगा।------()()---
Comments
Post a Comment