पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-148

गताशं से आगे...अध्याय 23 भाग 22

किंचित समापन कर्मः--

(१) कुलदेवतास्थापन— प्रत्येक कुल के कोई न कोई कुल देवता अवश्य होते हैं।नये भवन में इनकी स्थापना करने का विधान है।गृहप्रवेश-वास्तुशान्ति के समय यदि किसी कारण से स्थापना नहीं हो पाती है,तो वैसी स्थिति में पुनः किसी विशेष मांगलिक कार्य- शादी-विवाह-उपनयन,मुण्डन आदि की प्रतीक्षा करनी पड़ती है,क्यों कि समान्य स्थिति में किसी शुभदिन में कुलदेवता की स्थापना की परम्परा और नियम नहीं है। अतः सावधानी,और तत्परता पूर्वक कुलदेवता की स्थापना करनी चाहिए।आजकल रोजगार के उद्देश्य से लोग अपने मूल स्थान से निकल कर दूर-दराज नगरों-महानगरों में चले जाते हैं। थोड़े ही दिनों में सुव्यवस्थित होकर वहाँ वासस्थान भी बना लेते हैं,किन्तु मूल स्थान से बिलकुल कट नहीं जाते।वैसी स्थिति में शहर के नये मकान में कुलदेवता को लाकर स्थापित करने का औचित्य भी नहीं है। हाँ,समय-समय पर मूलस्थान पर जाकर,उनकी पूजा-अर्चना अवश्य करनी चाहिए,अन्यथा कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।अनुभव में प्रायः पाया गया है कि लोग परेशानियों का कारण अपने आवास और जन्मकुण्डली में तलाशते रहते हैं,जबकि मूल कारण होता है— परम्परागत कुलदेवता की अवहेलना।आजकल लोग इस गम्भीर विषय को प्रायः भूल गये हैं- किसके कुलदेवता कौन हैं,क्या उनकी पूजा विधि है- आदि बातें भी ज्ञात नहीं रहती।अन्य जातियों की तो बात और है,कर्मकाण्डी ब्राह्मण परिवार में भी कुलदेवता की जानकारी का बिलकुल अभाव है।
      एक व्यक्ति के अनेक मकान हैं यदि,ऐसी स्थिति में प्रत्येक मकान में अलग-अलग कुलदेवता की स्थापना का भी औचित्य नहीं है।इनका स्थान एक परिवार में एक होना चाहिए।हाँ,एक पिता के कई सन्तान अलग-अलग मकान बनाकर रहने लगते हैं,वैसी स्थिति में अलग कुलदेवता भी स्थापित होने चाहिए।

कुलदेवता स्थापन का संक्षिप्त विधान—कुलदेवता स्थापन अपने आप में एक वृहत् कर्मकाण्ड है,किन्तु गृहप्रवेशादि के समय संक्षिप्त रुप से यह कार्य सम्पन्न किया जाता है।यहाँ दो बातों को समझना जरुरी है,तदनुसार ही उसकी विधि में भी अन्तर होगा।पहली स्थिति यह है कि पुराने मकान को हम बिलकुल छोड़कर नये मकान में बसने जा रहे हैं,ऐसी स्थिति में पूर्व स्थान के देवता का विधिवत स्थानान्तरण होगा- विसर्जन नहीं।किन्तु यदि पैत्रिक स्थान में यथावत रखते हुए,कोई पुत्र अपने नये स्थान में कुलदेवता को लेजाना चाहता है तो उसकी विधि भिन्न होगी।यहाँ स्थानान्तरण का संकल्प नहीं होगा।
    
 गृहप्रवेश के पूर्व दिन अक्षत,सुपारी,पुष्प,द्वव्यादि लेकर कुलदेवतास्थान के समीप,सपत्निक जाकर मानसिक रुप से निवेदन करके —  मैं आपको निमन्त्रित कर रहा हूँ,अपने नये भवन में चलने हेतु —पुष्पाक्षत छोड़ दे।अगले दिन उसे आदर पूर्वक उठाकर नये स्थान में लेजाये, और स्थापित-पूजित करे।कहीं-कहीं लोग मूलस्थान की मिट्टी खुरच कर भी लेजाते हैं,किन्तु यह आवश्यक नहीं है।
 नये भवन में,प्रवेशपूजा के बाद पुनः पुष्पाक्षतद्रव्यजलादि लेकर संकल्प बोले—  ॐ अद्येत्यादि.....सकलसंचितदुरितसमूलक्षयपूर्वक धनजनपूर्णत्व- मित्याभ्युदयकल्याण चतुर्वर्ग  सुखप्राप्तिकामनया मम कुलस्य देवतास्थापनमहं करिष्ये।

संक्षिप्त विधि से पुनः गणेशाम्बिका पूजन करने के पश्चात् अपने कुल की परम्परा 
कुलपुरोहित या परिवार के वुजुर्ग से जानकारी करके, नियत स्थान(कुलानुसार) पर कुलदेवता की आकृति या पीठिका का सृजन करें।तत्पश्चात् पद्धति में पूर्वनिर्दिष्ट प्राणप्रतिष्ठा मन्त्र से आवाहन करके, षोडशोपचार पूजन करें,तथा क्षमा प्रार्थना करें- मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरी।यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।। एवं पुनः जलाक्षत लेकर दक्षिणा संकल्प करें- ॐ अद्य कृतस्य कुलदेवता स्थापन-प्रतिष्ठार्थं यावद्द्रव्यमूलकहिरण्यमग्निदैवत यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां दातुमहमुत्सृजे।।
 
 (२) हनुमत्ध्वजस्थापनः- ध्वज(ध्वजा)स्थापन वास्तुविषय के अन्तर्गत ही आता है। प्रवेश सम्बन्धी अन्यान्य कर्मकाण्ड पूरे हो जाने के बाद कुलदेवता-स्थापन किया जाता है,और तत्पश्चात् ध्वजास्थापन।
     ध्वजा सुख-समृद्धि-शान्ति-सुरक्षा का प्रतीक है।प्रत्येक राष्ट्र का एक सम्माननीय ध्वज हुआ करता है।विभिन्न संस्थाओं,आश्रमों,टोलियों का भी ध्वज हुआ करता है,जिसकी रक्षा और मर्यादा का सदा ध्यान रखा जाता है।
    गृहस्थ-गृह में ध्वजस्थापन वायुकोण(पश्चिमोत्तर)पर किया जाना चाहिए। ईशानकोण दूसरे क्रम में ग्राह्य है।भवन यदि पूर्वाभिमुख हो तो प्रवेशद्वार के दायीं ओर(निकलते समय) भी स्थापना हो सकती है।एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात का ध्यान रखने योग्य है कि मांसाहारी परिवार में इसकी स्थापना कदापि न की जाय।
     ध्वजा सुन्दर,सूती/रेशमी वस्त्र का होना चाहिए,जिसके रंगों और ततस्थ आकृतियों का चयन उद्देश्य,परम्परा और रीति पर निर्भर है।आमतौर पर भवन में हनुमद्ध्वजस्थापन का चलन है,जिसका नवीनीकरण प्रायः प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल नवमी(रामनवमी)को किया जाता है।श्रुति वचन हैः- कुजवारे नवम्यां वा अन्यस्यां शुभदातिथौ।श्रद्धया चोत्तरे काले ध्वजादानादिनी शुभम्।।(मंगलवार,वासंतिक नवमी,वसंत पंचमी,कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी,आदि शुभ तिथि-वारों में भी ध्वजस्थापन वा नवीनीकरण किया जाता है।) 
   
ध्वजा का आधार-स्तम्भ हरे-ताजे बांस का ही होना चाहिए,जो सीधा,सुडौल और परिपक्व हो,सड़ा-गला न हो,और दस हाथ से अधिक लम्बाई वाला हो। यथा-सरलच्छिद्ररहितो निर्वर्णों मूलसंयुतः। दशहस्ताधिको ग्राह्यो वांसस्तु ध्वजहेतवे।। ध्वजस्थापन की मजबूती का भी ध्यान रखना चाहिए, क्यों कि आंधी-पानी आदि में(भी)ध्वजा का गिरजाना,टूटजाना गृहस्वामी के अनिष्ट का संकेत है।ऐसा होने पर विघ्नशान्ति (ध्वजभग्नशान्ति) का विधान है।इसके लिए योग्य कर्मकांडी ब्राह्मण का सहयोग अपेक्षित है।

 संकल्प- पुष्पजलद्रव्याक्षतादि लेकर संकल्प बोले- ॐ अद्येत्यादि....मम नूतनगृहे प्रवेशवास्तुशान्तिकर्मान्ते श्री हनुमत्प्रीत्यर्थं,गृहरक्षार्थं च हनुमत्ध्वजस्थापनमहंकरिष्ये।

अब,सर्वप्रथम किसी उपकरण से भूमि को खनित कर प्रसस्त करें।तत्पश्चात् पूर्व निर्दिष्ट विधि से ध्वजस्थापन-भूमि का पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन करें।
    
 अब,ध्वजस्तम्भ(वांस) को रोली,सिन्दूर,घृत आदि से लेपित कर;उसमें ध्वज को लगावें, और श्री हनुमानजी का ध्यान करें-
 अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं, दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
 सकलगुण निधानं वानराणामधीशं, रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।। अब,विधिवत पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन करें।पूजन के पश्चात् अन्य सहयोगियों(घर के सदस्य)के सहारे ध्वज को पूजित-गर्त में स्थापित कर,पुनः पंचोपचार पूजन करें,और अन्त में प्रार्थना करेः- 
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। 
वातत्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शिरसा नमामि।।  
देवासुराणां सर्वेषां मङ्गलोऽयं महाध्वजः।
गृह्यतां सुखहेतोर्भे ध्वजः श्रीपवनात्मज।।

अब,पुनः पुष्पाक्षतजलादि लेकर दक्षिणा संकल्प करें- ॐ अद्येत्यादि...कृतस्य हनुमत्ध्वजस्थापनकर्मप्रतिष्ठार्थं यथाशक्ति दक्षिणाद्रव्यं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दातुमहंमुत्सृजे।।

(नोट--आगामी वर्षों में पंचोपचार पूजन करके पुराने ध्वज का विसर्जन कर,नये ध्वज की स्थापना नियमित रुप से करनी चाहिए।)

अब,रसोई एवं भंडार घर में आकर अन्नपूर्णा,चूल्हा,बरतन,घरेलू उपकरण तथा शैय्या,आसनादि का भी पंचोपचार पूजन करें।

क्रमशः.... 

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