गतांश से आगे...अध्याय 26 भाग 5
१.
विपरीत दिशा में निर्माण दोष- यह भी एक आम दोष है-भवन में आगे की ओर
दिखावे के लिए ऊँचा निर्माण कर लेते हैं,और पीछे नीचा रह जाता है।यदि यह दिशा
विपरीत(दक्षिण-पश्चिम) हुयी तो बहुत अनिष्टकारी होती है।गृहस्वामी का विकास
अवरुद्ध होकर,नाना प्रकार की अवांछित समस्याओं का सामना करना पड़ता है,और स्थिति
ये होती है कि चाह कर पुनर्निर्माण सम्भव नहीं होपाता। उचित है कि किसी प्रकार
पुनर्निर्माण कर के पूरे मंडल को समान ऊँचाई प्रदान करें।यदि ऐसा सम्भव नहीं हो तो
कम से कम नीचे पड़ने वाले भाग के दोनों छोरों पर लकड़ी की वल्ली/बांस खड़ा करके, वास्तुमन्त्रसाधित
तांबे के तार से अलगनी की तरह बन्धन करदें,मानों काल्पनिक दीवार समान ऊँचाई की
खड़ी कर दी गयी। ताम्रवेष्ठन क्रिया विधि सताइसवें
अध्याय में आगे बतायी जायेगी।
२.
छप्पर वा छत की विपरीत ढालदोष- टीन,करकट या किसी प्रकार के छप्पर की ढाल
दक्षिण-पश्चिम नहीं होनी चाहिए।प्रायः ऊपरी मंजिल पर सीढ़ी की छावनी इस तरह से लोग
कर दिया करते हैं।ढलान दोनों ओर(उत्तर-दक्षिण,या पूरब-पश्चिम) हो तो कोई हर्ज
नहीं,किन्तु विपरीत दिशा में एक ओर नहीं होना चाहिए। पश्चिम की तुलना में सिर्फ
दक्षिण का ढाल अधिक हानिकारक है। विपरीत दिशा से गिरनेवाला बरसात का पानी नुकसान
देय होता है।इसके निवारण के लिए ढलान के निचले छोर पर खड़ी ईंट की दीवार लगा
दें,साथ ही छप्पर के नीचे वास्तुयन्त्र स्थापित कर दें।
३.
छत में दोषपूर्ण बीम- बड़े आकार के कमरों के बीचोबीच बीम का गुजरना
अभियान्त्रिकी विवशता है,किन्तु वास्तु-सम्मत नहीं है। पहले मोटी-मोटी लकड़ियों के
बीम हुआ करते थे,जो कि आजकल छड-सीमेंट-कंकरीट के बनाये जा रहे हैं। वस्तुतः दोष इन
लटकते हुए बीमों से है।अब कोई कह सकता है कि छत की ढलाई में भी छड़ आड़े-तिरछे
बिछाये गये हैं,तो क्या वे भी दोषपूर्ण हैं? सूक्ष्म विचार करें तो दोषपूर्ण अवश्य
हैं,किन्तु आधुनिक युग की विवशता है। इसके बिना घर बन ही नहीं पायेगा।फिर भी कमरे
में लटकती हुयी बीम तो अत्यधिक हानिकारक है।उसका दूषित ऊर्जा-प्रभाव बड़ा ही घातक
होता है। लोग लोहे के गार्टर को सीमेन्ट से ढक कर निश्चिन्त हो जाते हैं,किन्तु
दोष कहीं जाता नहीं, वहीं छिपा मौजूद रहता है। इसके निवारण के लिए सर्वोत्तम है-
बांस की बासुरी पूरे बीम पर लम्बाई के अनुसार- पांच,सात,नौ,ग्यारह की विसम संख्या
में लगायी जाये। ध्यान देने योग्य है कि सभी बांसुरी का मुंह एक ही तरफ न होकर,एक
के बाद एक विपरीत दिशा में होनी चाहिए। जैसे मान लिया कमरे में उत्तर से दक्षिण की
ओर ग्यारह फीट लम्बा बीम गुजर रहा है। इसमें एक-एक फीट की दूरी पर बांसुरी लगाना
है,तो पहली बांसुरी का मुंह पूरब की ओर,दूसरी का मुंह पश्चिम की ओर रहेगा,पुनः
तीसरी का मुंह पूरब की ओर और चौथी का मुंह पश्चिम की ओर रहना चाहिए। इसी भांति
दिशा बदलते हुए सभी बाँसुरियों को बीम में किसी क्लिप के सहारे जड़ देंगे।
अब तक, नौ विन्दुओं में संरचनादोष की चर्चा हुयी।उससे
पहले प्रधान तीन प्रकार के दोषों की बात की गयी थी। अब दोषों का आखिरी प्रकार
व्यवस्थादोष की चर्चा करते हैं-
(4) व्यवस्था दोष- कमरों की आन्तरिक व्यवस्था में कई
तरह की गड़बड़ी पायी जाती है-जैसे पलंग,ड्रेसिंग टेबल,डायनिंग टेबल,रसोई घर में
चूल्हे की दिशा,सिंक,कूड़ादान इत्यादि। इन सब बातों के लिए पूर्व अध्यायों में बताये
गये नियमों का सही पालन करना ही बुद्धिमानी है। कमरों की आन्तरिक साजसज्जा के बारे
में जो भी नियम बतलाये गये हैं,उनका यथासम्भव पालन करना चाहिए। किसी दोषनिवारण का
उपाय लाचारी में ही करना चाहिए,यानी परिवर्तन और सुधार कदापि सम्भव न हो तब।किसी
प्रकार के वास्तुदोषनिवारण का प्रयोग एक दवा की तरह है,और दवा खाकर स्वस्थ रहना
अन्तिम उपाय है।अतःउचित है कि निर्दिष्ट नियमों का पालन किया जाय।
क्रमशः...
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