गतांश से आगे...अध्याय 26 भाग 6
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व्यवस्था दोष- कमरों
की आन्तरिक व्यवस्था में कई तरह की गड़बड़ी पायी जाती है-जैसे
पलंग,ड्रेसिंग टेबल,डायनिंग टेबल,रसोई घर में चूल्हे की दिशा,सिंक,कूड़ादान
इत्यादि। इन सब बातों के लिए पूर्व अध्यायों में बताये गये नियमों का सही पालन
करना ही बुद्धिमानी है। कमरों की आन्तरिक साजसज्जा के बारे में जो भी नियम बतलाये
गये हैं,उनका यथासम्भव पालन करना चाहिए। किसी दोषनिवारण का उपाय लाचारी में ही
करना चाहिए,यानी परिवर्तन और सुधार कदापि सम्भव न हो तब।किसी प्रकार के
वास्तुदोषनिवारण का प्रयोग एक दवा की तरह है,और दवा खाकर स्वस्थ रहना अन्तिम उपाय
है।अतःउचित है कि निर्दिष्ट नियमों का पालन किया जाय।
विभिन्न
पौधों से उत्पन्न वास्तुदोषः- गृह-समीप-वृक्ष-विचार नामक सत्रहवें अध्याय में कहा गया है,कि वृक्षों
का सामीप्य भी वास्तुदोष पैदा करता है,(द्रष्टव्य उक्त अध्याय)। अवांछित या
दोषपूर्ण वृक्ष को विधिवत विसर्जित करने की बात उसी प्रसंग में बतलायी गयी है,साथ
ही अपरिहार्य स्थिति में दोष निवारण हेतु मध्य में अन्य शुभ वृक्ष-स्थापन की भी
चर्चा की गयी है।जैसे पश्चिम में बरगद का वृक्ष हानिकारक है, किन्तु उसके बीच यानी
भवन और वटवृक्ष के बीच पीपल का वृक्ष लगा दिया जाय तो वटवृक्ष का दोष समाप्त हो
जाता है। तुलसी का पौधा भी विविध वास्तु दोषों का शमन करने में सक्षम है। पादप-दोष
परिहार में इसका प्रयोग बहुत ही उत्तम है। वृक्षजनित दोषों के परिहार स्वरुप वृक्षों
का ही प्रयोग करना चाहए। अस्तु।
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