प्रिय
पाठकों और मेरे ब्लॉग अवलोकियों
पिछली
सूचना से थोडा विलम्ब से, यानी सप्ताह भर के बजाय दस दिनों बाद, आपके सामने
उपस्थित हूँ- वायदे के मुताबिक अपना आंचलिक उपन्यास- अधूरीपतिया के साथ। प्रेम
कथायें तो आपने बहुत पढ़ी होगी। जरा इस प्रेम कथा को भी देख-सुन लें। हो सकता है
कुछ नया मिल जाय। वैसे तो यह कथा ही है, किन्तु घटना कहने में कोई हर्ज भी नहीं । नाम-धाम
भले ही काल्पनिक हो गये हों।बात तो वही रह जाती है न।
वैसे
भी प्यार- प्रेम- मिलन आदि में नाम-धाम का कोई खास मतलब नहीं रह जाता। प्रेम का एक
ही अर्थ होता है- समर्पण यानी कि विलय – बिलकुल एकाकाक हो जाना।प्रेम कुछ पाना
नहीं चाहता,सिर्फ देना ही इसकी नियति और स्थिति भी है। आगे आप स्वयं परखें। मैं और
क्या कहूँ...मैं इतना ही कहूंगा कि 193 पृष्ठों के इस उपन्यास को सुविधा के लिए
25-25 पृष्ठों के हिसाब से पोस्ट कर रहा हूँ,ताकि पढने में सुविधा हो।आपकी
प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।मेरा पता तो आपको मालूम ही है- guruji.vastu@ facebook.com
धन्यवाद।
कमलेश पुण्यार्क
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