बाबा उपद्रवीनाथ का चिट्ठाःतन्त्र-योग-साधना पर आधारित उपन्यास

समर्पण-
लेखक- कमलेश पुण्यार्क
प्रकाशकः- श्री योगेश्वर आश्रम,

लेखक की अन्य कृतियां-
निरामय(शाश्वत प्रेम की अमर कथा-वृहद् उपन्यास), पुनर्भव(पुनर्जन्म की सत्यता को समर्पित उपन्यास),    अधूरीपतिया(आंचलिक उपन्यास) शंख की चूड़ी(कहानी संग्रह), पुण्यार्कवास्तुमंजूषा, पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्, कालसर्पयोगःकारण और निवारण, पुण्यार्कज्योतिषदीपिका, नाड्योपचारतन्त्रम्,शिरादाब (एक्यूप्रेशर),                    अन्य सैंकड़ो लेख

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 © सर्वाधिकार सुरक्षित (प्रकाशकाधीन)
प्रथम संस्करण- मार्च,२०१६.
कम्प्यूटर कम्पोजिंग- स्वस्तिका पुण्यार्क
मूल्य- ४००/-(चार सौ रुपये मात्र) 
पुस्तक प्राप्ति हेतु यहां भी सम्पर्क कर सकते हैं-
श्री सुभाष मलहोत्रा,रजौरी गार्डेन,नई दिल्ली,मो.+919811807313                                   

 

                                 

  कुछ कहने जैसी
       आमतौर पर किसी पुस्तक का श्रीगणेश भूमिका,प्राक्कथन आदि से करने का चलन है; किन्तु मेज के हिलते पाये के नीचे, किसी और से लिखवाकर भूमिका का गत्ता लगाना मुझे कभी अच्छा नहीं लगा; किन्तु हां, गुरुजनों का आशीर्वचन मिल जाय,या कोई प्रियजन अपना मन्तव्य दे दे, तो उसे जरुर सहेज लेना चाहता हूँ। यहां,सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ कि  बाबा उपद्रवीनाथ के चिट्ठे में ‘मैं’  न के बराबर हूँ। इसमें मेरी कुछ खास भूमिका है भी नहीं। किसी पुस्तक के लेखन में फॉन्टकम्पोजर की क्या भूमिका होती है,आप स्वयं समझ सकते हैं। हाँ,संवादों को सजाने भर का काम मैंने अवश्य किया है। उसमें कोई त्रुटि हो तो मेरी गलती है। गम्भीर और रहस्यमय तथ्यों को औपन्यासिक जामा पहनाने के लिए कल्पना का सहारा भी यदाकदा ही लेना पड़ा है, क्यों कि यथार्थ ही यथेष्ट है। यथार्थ,अनुभव और जानकारी के मन्थन से, जो स्रवित हुआ है,उसे ही लगभग यथावत परोसने का प्रयास किया हूँ। साधना की पृष्ठभूमि पर खड़े इस उपन्यास को कथा की दृष्टि से न देखकर,कथ्य पर विचार करेंगे,तो हो सकता है,कुछ लब्ध हो जाय,कुछ सूत्र सूझ जाय,कुछ भ्रमजाल टूट जायें; जीवन को नये अंदाज में जीने की ललक जाग जाय,और मेरा श्रम सार्थक हो जाय। किन्तु हां,इस उपन्यास को नियमावली या पद्धति समझकर सीधे साधना-क्षेत्र में कूद न पड़ियेगा,अन्यथा लाभ-हानि के जिम्मेवार आप स्वयं होंगे। ज्ञान की पुस्तकें तो बाजार में मिलती हैं,फिर भी सद्गुरु-सानिध्य में उन्हें खोलना ही पड़ता है।...तस्मै श्री गुरवे नमः। अस्तु ।
 पुनश्च
 वैसे तो, बाबा उपद्रवीनाथजी का सामान्य परिचय आपने पा लिया है। फेशबुक के एक नये पेज पर इनकी पूरी जीवनी उपन्यास शैली में प्रस्तुत करने का मैंने वादा किया है बाबा से। आप चाहें तो कथा का सिर्फ आनन्द लेते रहें, और यदि कुछ गहराई में झांकेंगें तो इनकी जीवनी में सनातन(पारम्परिक) साधना जगत का दिग्दर्शन भी हो ही जायेगा। साधना की गोपनीयता की मर्यादा का ध्यान रखते हुए कथा-शैली में निकल भागने का प्रयास है- जिसे हमारे पुराणकारों ने भी प्रायः अपनाया है। सब कुछ कह डाला है,फिर भी सब कुछ कहने को शेष रह गया है...। साधुवाद।
शुभारम्भ- रथयात्रा,विक्रमाब्द २०७२(१८जुलाई२०१५)


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