शाकद्वीपीयब्राह्मणः लघुशोधःपुण्यार्कमगदीपिका- इकतीसवां भाग

गतांश से आगे...

६.कुलदेवोपासना— उक्त सन्मार्गों पर चलते हुए, नियमानुसार,यथासम्भव कुलदेवता की पूजा-उपासना अपरिहार्य रुप से आवश्यक है। इसके वगैर सबकुछ अधूरा-अधूरा सा है। मानों किसी विद्यार्थी ने सत्र की पढ़ाई पूरी की,परीक्षा भी दी। किन्तु परीक्षा भवन की किंचित त्रुटियाँ, लापरवाही सबकुछ व्यर्थ कर दे सकता है । सारे किये कराये पर पानी फेर सकता है। अतः अपने कुलदेवता की जानकारी करके, समयानुसार पूजा-अर्चना अवश्य करें। मान लेते हैं- परिचय,नाम,आकृति,पूजाविधि कुछ भी ज्ञात नहीं है, वैसी स्थिति में भी  ऊँ आत्मनः कुलदेवतायै नमः सम्बोधन से स्मरण तो कर ही सकते हैं। वैसे भी षोडशमातृकाओं में इनका विशिष्ट स्थान है। नैष्ठिक रुप से किया गया यह स्मरण ही हो सकता है आगे का रास्ता दिखा दे। अस्तु।

.आडम्बर विहीनता— और सबसे अन्त में आग्रह पूर्वक ये कहना चाहूँगा कि पूर्वोक्त बातों पर ध्यान देते हुए, निज पिण्डान्तर्गत जो सूर्यशक्तिकेन्द्र है उसे साधें । ब्रह्माण्डीय सूर्य आपके जगने की प्रतीक्षा कर रहा है । शाकद्वीपीय को किसी को आकर्षित करने हेतु  वाह्याडम्बर की रत्ती भर भी आवश्यकता नहीं है। वह तो चुम्बकीय ऊर्जा का महास्रोत है। सिद्धियों के पीछे दौड़ने की आवश्यकता जरा भी नहीं है। सिद्धियां उसके द्वार की चेरी हैं। आवश्यकता है सिर्फ कर्मणा शाकद्वीपीय होने की। जन्मना तो बहुत हो लिए। अस्तु।


                        ----)ऊँ आदित्याय नमः(---
क्रमशः...

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