गतांश से आगे...
१८. उपसंहार
पिछले सत्रह अध्यायों में मगबन्धुओं के
विषय में यथासम्भव जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास किया। पुस्तिका की अधिकांश
सामग्री पत्र-पत्रिकाओं से प्राप्त सूचनाओं पर आधारित हैं। यथोचित प्रमाणार्थ
उपनिषद,पुराणादि का प्रचुर उपयोग भी किया गया है। बहुत से मगबन्धुओं से सीधे (मिलकर)
या टेलीफोनिक सम्पर्क करके भी जानकारियाँ जुटायी गयी हैं, तथा प्राप्त जानकारी की
पुष्टि करायी गयी है। जहां तक हो सका है, सतत प्रयत्नशील रहा हूँ कि जो कुछ भी वर्तमान
और भावी पीढ़ी को हम समर्पित करने जा रहे हैं, वो पुष्ट और प्रमाणिक हो। फिर भी
त्रुटियां तो सहज मानव स्वभाव है। हो सकता है, बारम्बार की चेष्टा के बावजूद
यत्रतत्र गलतियाँ रह गयी हों। किसी पाठक बन्धु को ये दीख पड़े तो निःसंकोच सूचित
करेंगे। इतना ही नहीं किसी प्रकार का सुझाव भी आपके पास हो तो स्वागत है। फिलहाल
तुरत तो पुस्तकाकार रुप मिलने वाला नहीं है मेरे इस श्रम को, क्यों कि लेखन से
कहीं बहुत अधिक कठिन होता है प्रकाशन-कार्य । अतः अपनी अन्यान्य रचनाओं की तरह
पहले इसे भी अपने ब्लॉग एवं फेशबुकपेज पर डाल रहा हूँ। इस बीच प्रकाशन की पूरी
कोशिश भी जारी रहेगी। और प्रकाशन में विलम्ब,आप पाठकों के सुझावों का भरपूर अवसर
दे देगा।
आशा है मेरी यह मगदीपिका आप मगबन्धुओं
के लिए वस्तुतः दीपिका का कार्य करेगी। मेरे द्वारा दिए गए सुझावों पर आप अमल
अवश्य करेंगे- ऐसा मुझे विश्वास भी है। हो सकता है, पुस्तिका के कुछ अंश आपको कठोर
लगें । अव्यावहारिक भी लग सकता हैं। किन्तु उन-उन स्थलों पर जरा स्थिर चित्त, तटस्थ
रुप से विचार करेंगे, तो कठोरता और अव्यावहारिकता का दोषारोपण सम्भवतः नहीं कर
पायेंगे - ऐसा मेरा विश्वास है।
आपके
सुझावों के स्वागत के लिए अहर्निश इच्छुक हूँ।
कमलेश पुण्यार्क,
हरिशयनी एकादशी,विक्रमाब्द २०७४
सम्पर्क- guruji.vastu@gmail.com,
Mo.8986286163
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