कालसर्पयोगःःकारण और निवारण

                                      

                 ऊँ श्री राधाकृष्णाभ्याम् नमः
                                             
                               प्राक्कथन 
       ब्राह्मी सृष्टि का एक बहुत बड़ा भाग काश्यपी है । महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियों में एक थी- कद्रू , जिनसे सर्पो का आविर्भाव हुआ । देवता,दानव,दैत्य,पक्षी,गौ,स्वान, सरीषृप आदि शेष सभी इनकी अन्यान्य पत्नियों से उत्पन्न हुए हैं ।

  कश्यप मरीचि नन्दन हैं - मरीचि की मानस सृष्टि । तत्पूर्व, ब्रह्मा के श्री मुख से शतरुपा सहित स्वायंभू मनु उत्पन्न हुए थे और स्कन्ध भाग से मरीचि,कंठ से नारद,रसना से वशिष्ठ...। मनुमरीच्यादि सृष्टि की आद्य कड़ी हैं । मनु-शतरुपा से ही मानव हुए । ब्रह्मा की मैथुनी सृष्टि यहीं से आरम्भ हुयी । तत्पूर्व तो सिर्फ मानसी सृष्टि ही थी ।

  इस प्रकार, मनुष्य और सर्प का अति निकट सम्बन्ध सिद्ध है । सभी भाई-बन्धु ही है । कोई गैर नहीं; किन्तु अपना ही, जब कभी, किसी कारणवश, अपने अधिकार और कर्तव्य का सीमोलंघन करके, दूसरे के अधिकार और कर्तव्य क्षेत्र पर धावा बोलेगा, तब समस्या तो विकट होनी ही है ।

   किसी जातक की जन्म कालिक ग्रह-स्थिति जब ऐसी बनती है कि द्वादश भावों में क्रमशः  सात भाव सर्प की कुण्डली में समा जायें, तो एक विशिष्ट प्रकार का योग बनता है, जिसे कालसर्प योग कहते हैं । ज्योतिष शास्त्रानुसार, मानव-जीवन के शुभाशुभ भूत-वर्तमान-भविष्य के अध्ययन और विश्लेषण हेतु, जन्मकालिक कुण्डली के बारह भावों को ही आधार माना गया है । यदि इन बारह भावों में सात भाव सर्प के अधिकार में चले जायें, तो उसका जीवन कैसा होगा, इसे सहज ही समझा जा सकता है ।

    इन्हीं तथ्यों के अध्ययन-विश्लेषण का एक क्षुद्र प्रयास है - मेरी यह पुस्तिका । मैं कोई विद्वान नहीं हूँ, विद्याव्यसनी भले ही कह सकता हूँ स्वयं को । ईश्वर की कृपा और पूर्वजों के प्रसाद स्वरुप, ज्ञान का धरोहर जो प्राप्त हुआ, अनुभव और अभ्यास की हथेली में सहेजकर, उसे ही, आपके समक्ष यथावत रख देना चाहता हूँ । मेरा यह संकलन कैसा है, इसका निर्णय तो आप सुधीजनों द्वारा होना है । हाँ, यत्किंचित भी आपके लिए उपयोगी हुआ, तो मैं स्वयं को धन्य समझूंगा ।

    मूल समस्या से परिचय कराकर, तत् निवारण का उपाय भी यहां दिया जा रहा है, जो विविध शास्त्र–सम्मत है । समयसाध्य, श्रमसाध्य, अर्थसाध्य कर्मकाण्डों के साथ-साथ, लालकिताब के टोटके भी यथास्थान दिये गये हैं, ताकि आमजन को उपयोग करने में सुविधा हो ।

    विषय वस्तु को यथासम्भव सरल रुप में व्यक्त करने का प्रयास किया गया है, ताकि अति सामान्य जानकारी वाले लोगों का भी भ्रम-निवारण हो सके और आडम्बरी लोगों से ठगे न जायें, क्यों कि इसकी भयंकरता दिखाकर सीधे-सादे लोगों को काफी परेशानी में डाल देने का चलन सा हो गया है, विगत कुछ दशकों से । अस्तु।

पुरुषोत्तमी कृष्णाष्टमी, सम्बत् २०७२.
  १० जुलाई २०१५ई.सन्                                                                

निवेदक  - कमलेश पुण्यार्क
मैनपुरा, चन्दा, कलेर, अरवल, बिहार
मो.8986286163
email:- guruji.vastu@gmail.com
                               


                                   
विषयानुक्रमणिका
क्रमांक  विषय                   पृष्ठांक
१. कालसर्पयोग :: परिचयात्मक इतिवृत-                    
२.      कालसर्पयोग :: प्रकार और परिणाम –                      १०
३.      कालसर्पयोग  :: प्रभावित करने वाले शुभाशुभ योग-    ३०
४.      कालसर्पयोग के कारक :: राहु-केतु :: विशेष बातें -      ३३
५.      कालसर्पयोग :: लग्नानुसार फलविचार-                     ४०
६.      कालसर्प दोष :: कुछ सरल उपाय -                          ४५
७.      कालसर्प दोष :: विशेष शान्ति कर्म -                         ६२
.      कालसर्पदोषः उपयोगी स्तोत्र-मन्त्रादि                     १३२
.      उपसंहार-                                                        १४०
                              ----)(+)(---- 
क्रमशः...

Comments