शारदीय नवरात्रःशंका-समाधान


शारदीय नवरात्रःशंका-समाधान

आसन्न शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, बुधवार दि. १० अक्टूबर २०१८ से लेकर गुरुवार, १८ अक्टूबर २०१८ तक पूर्ण नवदिवसीय रुप से प्राप्त हो रहा है । तदनुसार शुक्रवार १९ अक्टूबर २०१८ को विजयादशमी (दशहरा) मनाया जायेगा । तिथि- क्रम बिलकुल सही और शुद्ध है, फिर भी किंचित पंचांग अपने-अपने अन्दाज में बातें कह कर भ्रम पैदा कर रहे है । इधर लागातार विभिन्न राज्यों और नगरों से जिज्ञासुओं के फोन आ रहे हैं । अतः तत शंका-समाधान हेतु अपना स्पष्ट मत रखना आवश्यक प्रतीत हो रहा है ।

ध्यान देने योग्य कुछ विन्दु-

1.नवरात्र अनुष्ठान में प्रथम दिन कलशस्थापन और अन्तिम दिन होमकार्य विशेष रुप से विचारणीय होता है ।

2.कलशस्थापन हेतु सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त अभिजित को माना गया है, जो प्रायः दिन में साढ़े ग्यारह के आसपास आ जाता है, और अगले अड़तालीस मिनट तक रहता है । निश्चित काल का निर्धारण उस दिन के धट्यात्मक दिनमान के आधार पर करने का नियम है, जो हर वर्ष थोड़ा-बहुत ही आगे-पीछे होता है । यही कारण है कि साढ़ेग्यारह से साढ़ेबारह के समय को मोटे तौर पर शुभ मुहूर्त मान कर कलशस्थापन कार्य सम्पन्न किया जाता है । इसमें बहुत अधिक माथापच्ची भी उचित नहीं है ।

3.ध्यान देने की बात है कि जिन बन्धुओं को पूर्ण अनुष्ठानिक विधि का पालन करते हुए सिर्फ एक सादा या सम्पुट श्रीदुर्गासप्तशती पाठ करना अभीष्ट है उनके लिए तो कोई परेशानी नहीं है, किन्तु पेशेवर बन्धुओं को असली नियम को किनारे रखकर, अपनी सुविधा और अधिक से अधिक यजमान को खुश कर, अधिक से अधिक दक्षिणा संग्रह करना ही एकमात्र उद्देश्य होता है, वैसे में उन्हें परेशानी होती है और तरह-तरह के बेतुके सवाल भी खड़े होने लगते हैं । अलग-अलग यजमानों को अलग-अगल बातें बोल कर, अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में शास्त्रीय नियम की अवज्ञा और अवहेलना होना स्वाभाविक है ।

4.सोचने वाली बात है कि विधिवत एक सादा पाठ करने में अच्छे अभ्यासी को तीन घंटे (पूजन से लेकर पाठ तक) और सम्पुट पाठ में पांच-साढ़ेपांच घंटे लगने चाहिए, ऐसी स्थिति कोई पांच-सात पाठों की जिम्मेवारी कैसे ले लेते हैं मां भगवती ही जाने, मेरे समझ से तो परे है ।

5.किसी भी पाठ के लिए शास्त्रों में छःगुण और छः दोष कहे गये हैं । इस मापदण्ड पर कितने पाठ और कितने पाठी खरे उतरते हैं- ये भी विचारणीय ही है ।

6.इस बार तिथि का जो भोग्यकाल है, वो थोड़ा व्यतिक्रमित है । मंगलवार को ही गया समयानुसार प्रातः नौ बजकर दो मिनट में शुक्ल प्रतिपदा तिथि का प्रवेश हो जा रहा है, जो आगे बुधवार को गया समयानुसार प्रातः सात बजकर अड़तालीस मिनट पर समाप्त हो रहा है । ऐसे में मध्याह्न व्यापिनी मुहूर्त अभिजित का ग्रहण होना कदापि सम्भव नहीं है । अतः दूसरे विकल्प की आवश्यकता पड़ रही है । पूर्वदिन यानी मंगलवार को मध्याह्न कालिक अभिजित मिल तो रहा है, किन्तु उस दिन का सूर्योदय चुंकि आमावस्या तिथि में हुआ है, यानी प्रतिपदा तिथि को सूर्य का बल नहीं मिल पाया है । यश आरोग्य और ऐश्वर्य के लिए सूर्य का बल अवश्य मिलना चाहिए । अतः स्पष्ट है अगले दिन सूर्य-शक्ति-युक्ता प्रतिपदा तिथि को ही ग्रहण करना उचित होगा । भले ही वहां अभिजित का परित्याग करना पड़ रहा है, या कहें अभिजित का बल नहीं मिल रहा है ।  वस ध्यान सिर्फ इतना ही रखना है कि कलशस्थापन जनित अनुष्ठान की प्रारम्भिक क्रिया प्रतिपदा तिथि में ही प्रारम्भ हो जाये । थोड़ा आलस्य त्यागें तो सवाघंटे का कलशस्थापन विधान पूर्ण सम्पन्न भी हो सकता है प्रतिपदा तिथि में ही । फिर चाहें तो किंचित विश्राम लेकर आगे पाठ आरम्भ कर सकते हैं ।

7.इसी भांति अब अन्तिम यानी समापन कार्य पर विचार करते हैं- अनुष्ठान की समाप्ति विहित होमादि कार्य से सम्पन्न होती है । और इसके लिए कठोर नियम है कि होमकार्य नवमी तिथि में ही सम्पन्न हो, दशमी में कदापि नहीं । ध्यातव्य है कि  गुरुवार, १८ अक्टूबर २०१८ को नवमी तिथि गया समयानुसार अपराह्न दो बजकर चौबीस मिनट तक है । इस दीर्घावधि में बड़ी सहजता से पाठ और होम सम्पन्न किया जा सकता है । किन्तु यहां भी अतिपाठी को अड़चने आयेंगी ही । और वे नियमों की धज्जियां उड़ायेंगे ही । अतः उनके बारे में कुछ कहना ही व्यर्थ है ।

8.अब अलगी शंका का स्थान है- विजयादशमी, सीमोलंघन, नीलकंठदर्शन, पट्टाभिषेकादि कार्य । ध्यातव्य है ये सभी कार्य दशमी तिथि में सम्पन्न होने चाहिए । और संयोग से शुक्रवार को सूर्यबल युक्ता दशमी तिथि गया समयानुसार दोपहर बाद चार बजकर इकतीस मिनट तक उपलब्ध है । यहां एक प्रश्न ये उठाया जा सकता है उक्त कार्य गोधूलीबेला में सम्पन्न होने की परम्परा जैसी भी है, किन्तु ध्यान देने की बात है ये परम्परा है, नियम नहीं । जमींदारों और राजा-महाराजाओं के जमाने में तैयारियां करते-करते दिन ढलने को तैयार हो जाता था, और फिर आगे देर रात तक मिलन समारोह चलते रहता था । किन्तु सामान्य लोगों को इन सबसे कोई मतलब तो है नहीं, फिर व्यर्थ की शंका या कि चिन्ता क्यों !

हो सकता है मेरी उक्त टिप्पणी से कुछ पेशेवर बन्धुओं को क्लेश पहुंचा हो, किन्तु मेरा उद्देश्य किसी को क्लेशित करना नहीं, बल्कि समाज को सही दिशा दिखाना मात्र है । स्वार्थ और लोभ में पड़कर या आलस्यवश हमें किसी भी नियम की अवहेलना नहीं करनी चाहिए और न गुमराह ही । सही दिशा ब्राह्मण ही तो दिखा सकते हैं समाज को । अतः विप्र बन्धुओं से निवेदन है कि मेरी बातों का अन्यथा न लें और अपनी गरिमा और महिमा को समझते हुए, समाज को सही मार्गदर्शन कराने का प्रयास करें । आपना मत थोपने का प्रयास भी न करें ।  कोई माने या न माने- इसकी चिन्ता भी न करें । कर्मण्येवाधिकारस्ते...। अस्तु ।

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