एक सूचना अगले संस्मरण सम्बन्धी

 प्रिय पाठकों !

षोडशसंस्कार विमर्श के प्रकाशन के पश्चचात कोई पोस्ट नहीं डाला गया है यहाँ। वह पुस्तक 2023 के अन्तिम समय में प्रकाशित हो चुकी। अब नयी रचना की तैयारी चल रही है।

संस्मरण मैंने कभी लिखा नहीं जीवन में। किन्तु प्रियजनों ने आग्रह किया कुछ लिखने को। सच पूछा जाए तो पूरा जीवन,हर घटना संस्मरण ही तो है। यही सोच कर कुछ रोचक बातों को,रोचक घटनाओं को याद कर-करके संजोना शुरु किया। 

अस्टेस्टेड वाइफ उन्ही संस्मरणों का संग्रह है। मेरा प्रयास होगा कि यहाँ आप पाठकों के लिए क्रमिक रूप से पोस्ट करता जाऊँ। 

अन्य रचनाओं की तरह आशा है ये भी अवश्य पसन्द आयेगा आपको।

पहले इसका मुखपृष्ठ देखें-- और फिर प्राक्कथन या कहें भूमिका या ....



                                जरा सुन लो मेरे भाई !

 

प्रिय पाठकों !

आकर्षक चुलबुले शीर्षक वाले इस पुस्तक में आप मुझे एक नए स्वरूप में देख कर जरा भी चकित न हों। ज़ायका बदलते रहना चाहिए।

उत्तरीध्रुव से दक्षिणीध्रुव तक फैली इस धरती पर, जिसे लोग दुनिया कहते हैं, तरह-तरह के पदार्थ हैं और तरह-तरह के प्राणी भी। हालाँकि दुनिया सिर्फ इतनी ही नहीं है, जितनी दिखाई दे रही है। इस दिखलायी पड़ने वाली दुनिया के भीतर-बाहर और नहीं दिखलायी पड़ने वाली दुनिया के बाहर-भीतर भी बहुत कुछ है।

विचार, चिन्तन, अनुभव, कल्पना, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष, दृश्य-अदृश्य चहुँ ओर दौड़ पड़ता है मन कभी-कभी—चाहे कम, अनचाहे ज्यादा।

कभी प्रेम-कथाओं में उलझ जाता है, तो कभी व्यंग्य-वेदनाओं में विकल होने लगता है मन। कभी सनातनी परम्पराओं पर वैचारिक मन्थन चलने लगता है, तो कभी तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र और साधना जगत की गुत्थियाँ सुलझाने में स्वयं ही उलझ कर रह जाता है।

मेरी इन सारी संगति-विसंगतियों से मेरे प्यारे सुहृद पाठक भलीभाँति अवगत हैं। कहानी, उपन्यास, व्यंग्य, कटाक्ष, वैचारिक आलेख, धार्मिक आलेख आदि से तो आप कई बार रू-ब-रू हो चुके हैं। संस्मरण मैंने कभी लिखा नहीं। लिखने के बारे में सोचा भी नहीं, किन्तु इस बार कुछ अजीब हो गया।

वैसे आप कह सकते हैं कि सुबह से शाम और देर रात तक यानी आठों याम सिर्फ संस्मरण ही संस्मरण तो हम-आप सहेज रहे हैं अपने-अपने ज़ेहन में। रचनाकार तो सिर्फ उन्हें घसीट कर बाहर लाता है और समुचित पटल पर ला पटकता है, जबकि बाकी लोग यूँ ही छोड़ देते हैं। सच कहें तो संस्मरणों से उबरना बहुत कठिन होता है। योग वाले इसे ही चित्तवृत्ति कहते हैं। मुक्ति के लिए इसका ही निरोध करना होता है, जिसमें जन्म नहीं जन्मान्तर भी कम पड़ जाता है।

खैर, इन गम्भीर विषयों में मुझे यहाँ उलझने-उलझाने का इरादा नहीं है

बिलकुल । कहना सिर्फ इतना ही है कि संस्मरण मैंने कभी लिखा नहीं अब से पहले। किन्तु एक दिन अचानक जब मेरे प्रिय डॉ. सुरेन्द्र कुमार मिश्र जी (औरंगाबाद) जो सौभाग्य या कहें दुर्भाग्य से मेरी श्रीमती जी के भाई हैं और इस हिसाब से मेरे प्यारे साले साहव हो गए, ने अपनी वार्षिक पत्रिका—समकालीन जवाबदेही के संस्मरण विशेषांक २०२३ हेतु सस्नेह साग्रह संदेश भेजा, तो मैं बड़े उधेड़बुन में पड़ गया। किन्तु मेरा कोरा जवाब उन्हें कबूल नहीं हुआ और तब चाटुकारिता में भट्टप्रशस्ति गान करने लगे। बहुत बार ऐसा होता कि स्वयं के बारे में स्वयं को जितना ज्ञात नहीं होता, उससे कहीं अधिक अन्य लोग बतलाने लगते हैं। और तब बड़े-बड़े सिद्ध पुरुषों का भी चित्त डांवाडोल होने लगता है। सामान्य जन तो सदा अपनी बड़ाई सुनने-गुनने को आतुर ही रहते हैं।

दरअसल हुआ ये कि मैं भी उनकी भट्टप्रशस्ती का कायल हो गया। लगा कि साहित्य की अन्य विधाओं की तरह संस्मरण भी मैं क्यों नहीं लिख सकता ! हालाँकि कविता लिखने की अभी भी हिम्मत नहीं ।

विषयवस्तु की बात आयी तो लगा कि साले साहब का प्रोत्साहन है तो क्यों न उनकी प्यारी बहना यानी जो मेरी श्रीमतीजी हैं, उनसे ही संस्मरण की शुरुआत करुँ । वैसे भी संसार में इतना गहरा, इतना व्यापक, इतना रोचक संस्मरण और किसी के साथ का शायद हो भी नहीं सकता।

एक ही बैठक में संस्मरण पूरा कर, उन्हें वाट्सऐप पर भेज दिया। मुझे लगा कि उन्हें थोड़ी नाराज़गी होगी, किन्तु हुआ ठीक इसके विपरीत। उन्होंने उस लघु आलेख को और भी पल्लवित-पुष्पित करने का आग्रह किया, साथ ही मेरा उत्साह बढ़ाया, उद्दीपित भी किया—आगे मैं एक संस्मरण संग्रह जरुर लिखूँ...।

उन्हीं उद्दीपनों का प्रत्यक्ष प्रमाण है ये संग्रह। जीवन का प्रथम संस्मरणात्मक आलेख होने के नाते प्रथम आलेख को ही संग्रह का नाम देना उचित लगा। एक बात और भी स्पष्ट कर दूँ कि संग्रहित संस्मरणों में साहित्यक ताने-बाने और परिधान सब यथासम्भव यथावत हैं। मैंने सिर्फ साहित्यिक सजावट की विन्दी भर लगायी है उनमें । कल्पना से विलग रहते हुए, घटनाक्रम, कलेवर, भाव, भाषा आदि को यथारूप परिवेशन करने का प्रयास रहा है । एक बात और स्पष्ट कर दूँ कि किसी व्यक्ति या स्थान पर कटाक्ष करने

का इरादा बिलकुल नहीं है मेरा। कथ्य-तथ्य सुरुचिपूर्ण हो—बस इतना ही।

आशा है मेरे संस्मरणिक प्रयोग का ये अभिनव-पुष्प आपको अवश्य-अवश्य सौरभित करेगा। अस्तु।

निवेदक—                  

कमलेश पुण्यार्क                                                   रक्षाबन्धन

मैनपुरा,चन्दा,                                            विक्रमाब्द २०८०

कलेर, अरवल (बिहार)                    (३१ अगस्त २०२३ख्रिष्टाब्द)                 

मो./वा.8986286163 guruji.vastu@gmail.com/facebook                   

                     

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