श्रीदामोदरस्तोत्रम्--पिताश्री की कृति

  प्रकाशित पुस्तिका का पुरोवाक्

          श्रीदामोदर स्तोत्र की रस-सिक्त सुमधुर पंक्तियाँ होश सम्भालने से ही कानों को आप्लावित कर रही हैं, भले ही उन दिनों इन पंक्तियों का अर्थ, भाव और मर्म का कुछ भी अता-पता नहीं था। किन्तु सुबह-सुबह दालान में झाड़ू लगाते हुए पिताजी एवं चाचाजी के श्रीमुख से सुनता तो साथ-साथ मैं भी गाने लगता । आँगन में झाड़ू लगाती, वरतन माँजती माँ और बड़की अईया को भी यही कुछ गुनगुनाते पाता । जाड़े के मौसम में दालान में विछे पुआल पर बड़े चाचाजी अपने साथ कम्बल में लपेट कर गोद में बिठा लेते और इन पंक्तियों का सस्वर अभ्यास कराते। भले ही उन दिनों इस प्रेमरस का पता नहीं था, पर रससिक्त तो हो ही जाता था—अब याद करने पर ऐसा ही लगता है।

             इस लघु स्तोत्र रसायन की रचना परम पूज्य पिताजी पंडित श्री श्रीवल्लभ पाठकजी द्वारा विक्रमाब्द २०१२ में की गई थी। उनके द्वारा रचित किंचित् अन्य कृतियों के बारे में भी सुनने में आया है, उन्हीं के मुखारविन्द से अपने वाल्यकाल में, किन्तु कालान्तर में जब उन्हें उनके द्वारा संग्रहित पुस्तकालय में ढूढ़ने लगा, तो कहीं मिली नहीं कोई भी पाण्डुलिपि।

           अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण, लिपे-पुते अक्षरों वाले कुछ पन्नों की दो छोटी पुस्तिका मिली, जिसमें सुपरिचित दामोदरस्तोत्रएवं अमृतहरणअंकित था।  चुँकि इन ललित पद्यों का वे नित्य प्रातः गायन किया करते थे, इसलिए मुझे ज्ञात था कि ये उनकी अति प्रिय रचना है।

            स्वान्तः सुखाय इन रचनाओं को पिताश्री स्वयं प्रकाशित नहीं करा पाए—प्रकाशन-सुविधा और अर्थाभाव में, क्योंकि उनका जटिल-जुझारु गृहस्थ जीवन लौकिक-पारलौकिक महत्वाकांक्षाओं के बीच अनवरत संघर्षरत ही व्यतीत हुआ। चार भाईयों में सबसे छोटा होते हुए भी, पारिवारिक व्यवस्था और कुलमर्यादापालन का दायित्व मुख्यरूप से इन्हीं के जिम्मे रहा ।

           सौभाग्य से अब अवसर आया है इन्हें प्रकाशित कराने का। आशा है भक्तिरसायनानुरागियों के लिए विशेष प्रीतिकर होगी ये पुस्तिका।

          मेरा सविनय निवेदन है कि आप भी इसका नित्य गायन किया करें। भवसागर की इस अनोखी तरणी का लाभ आप सुधी जन भी अवश्य उठावें। इसी में मेरे श्रम की सार्थकता है और यही पारितोषिक भी। अस्तु।

 

विनीत प्रार्थी                                                              रथयात्रा

कमलेश पुण्यार्क                                         विक्रमाब्द २०८१

श्री सुमंगल आश्रम                 मैनपुरा,चन्दा,कलेर,अरवल(बिहार)

Mo.8986286163,                   guruji.vastu@gmail.com                                 

श्रीदामोदरस्तोत्र का यूट्यूब लिंक— Video link

https://youtu.be/Ga4jWFWP8vM

                              


 

                         

                             ।।श्रीकृष्णो विजयते।।

                          

                           

                            ।।श्रीराधाकृष्णाभ्याम् नमः।।

                   ।। बहुमोदकारि श्री दामोदर स्तोत्र ।।

                                      

गोविन्द मेरी यह प्रार्थना है, भूलूँ न मैं नाम कभी तुम्हारा ।

निष्काम होके दिन-रात गाऊँ, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (१)

 

देहान्त काले तुम सामने हो, वंशी बजाते, मन को लुभाते ।

गाते यही मैं तन नाथ त्यागूँ, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (२)

 

माता यशोदा हरि को जगावे, जागो उठो मोहन नैन खोलो ।

द्वारे खड़े गोप बुला रहे हैं, गोविन्द दामोदर माधवेति  ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (३)

 

गोपी दही छाछ बिलो रही है, मीठा करे शब्द बड़ा मथानी  

गाती मथानी संग नारी सारी, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (४)

 

ले ले करों में निज पिंजरे को, कोई पढ़ावे शुक-सारिका को ।

शुक-सारिका भी संग गा रही है, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (५)

 

ले हाथ में कोई दुहनी अनोखी,  गोदुग्ध काढ़े अबला नवेलि ।

गोदुग्धधारा संग गा रही है, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (६)

माला रही गूँथ सुवाम कोई, ले गोद बैठी अपने लला को ।

गा गा सुनाती निज लाल को है, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण! हे यादव! हे सखेति! (७)

 

धोये किसी ने मुख बालकों के, ले गोद में प्यार करे दुलारे।

हे लाल गाओ तुम संग मेरे, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (८)

 

कोई जगाती निज लाल को है, जागो दुलारे,  टुक नैन खोलो ।

ये नाम बोलो हरि के सलोने,  गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (९)

 

कोई नवेली पति को जगावे, प्राणेश जागो अब नींद खोलो ।

वेला यही है हरि गीत गावो,  गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (१०)

 

कासार के मध्य लला विलोकि, कैसे मनोहारि सरोज फूले ।

बैठे सभी में अलि गा रहे हैं, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (११)

 

बैठे पखेरु तरु डालियों पे, गाते सुहाते मधुर स्वरों में ।

पत्ते हथेली मृदु हैं बजाते, गोविन्द दामोदर माधवेति  ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (१२)

      आकाश के बीच बिहंगमाला, आनन्दमग्ना हरिनाम मत्ता ।

      मीठे स्वरों में हरिनाम गाती, गोविन्द दामोदर माधवेति  ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (१३)

 

जागे पुजारी हरि मन्दिरों में,जाके जगाते हरि को सभी यों-

हे शीलसिन्धो ! अब नेत्र खोलो गोविन्द दामोदर माधवेति  ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (१४)

 

धन्या सभी हैं व्रजगोपिकायें, गाती सदा जो हरिनाम प्यारा ।

गो दोहते भी यह गीत गाती, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (१५)

 

ले हाथ में मूशल, ओखली में, है कूटती धान सुवाम कोई ।

है टूटता तार कभी नहीं ये, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (१६)

 

डाली मथानी दधि में किसी ने, है ध्यान आया दधिचोर का ही ।

गदगद गिरा कंठ पुकारती है, गोविन्द दामोदर माधवेति  ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (१७)

 

है लीपती आँगन नारी कोई, गोविन्द को ही मन में विचारे ।

गोविन्द आवें मम गेह खेलें, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (१८)


 

सोया किसी का सुत पालने में, डोरी करों से वह खींचती है ।

ध्यानस्थ ये ही पद गा रही है, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (१९)

रोया किसी का जब लाल प्यारा, आनन्दमग्ना उसने पुकारा ।

रोओ न, गाओ तुम लाल प्यारे,  गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (२०)

 

झारी उठाई  कर में किसी ने, धोती रसोई मन में विचारे ।

गोविन्द जीमे, मैं गीत गाऊँ, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (२१)

 

कोई नवेली घर को बुहारे, गोविन्द को न मन से विसारे ।

आनन्द से श्रीशयही पुकारे, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (२२)

 

देखो जहाँ भी यह दीखता है, सोचो जहाँ भी यह सूझता है ।

सर्वत्र ये ही स्वर गूँजता है, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (२३)

 

राकेश, तारागण, भानु, विद्युत, श्यामा घटायें जलविंदु सारे ।

आकाश में ये ध्वनि हैं लगाते, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (२४)

 

पक्षी अनेकों नभ मध्य जाते, कैसी सुधा की झड़ियाँ लगाते ।

मीठे स्वरों में हरिगीत गाते, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (२५)

       

        स्रोतस्विनी के कलनाद मध्ये, उत्तुङ्ग शैलाग्र जलप्रपाते ।

        हैं शब्द येही श्रुति मध्य गाते, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (२६)

 

ग्रामों, घरों में, वन निर्जनों में, अट्टालिका में, कुटिया घरों में ।

हैं गूँजते नाम येही सभी में, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (२७)

 

बारीस की प्रेममयी तरंगे, भावेश की भाव भरी उमंगें ।

संकेत द्वारा दिन-रात गाती,  गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (२८)

 

दीनों, अनाथों, दलितों, क्षुधार्थों, सर्वस्व हीनों  रमणी विहीनों ।

केचित्त में भी यह याद आती, गोविन्द दामोदर माधवेति  ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (२९)

 

विद्यानुरागी निज पुस्तकों में, अर्थानुरागी धन संचयों में ।

ये ही निराली ध्वनि ढूढ़ते हैं, गोविन्द दामोदर माधवेति  ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति !(३०)

 

देहात्मवादी, परमात्मवादी, साम्राज्यवादी, अथ साम्यवादी ।

गाते यही हैं - मन मार सारे, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (३१)

        सदग्रन्थ, षड्दर्शन, वेद चारो, ईंजील देखो, कुरवों विचारो।

पावो सभी में यही मन्त्र प्यारे, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (३२)

 

भाषा विभिन्ना, परिपाटी भिन्ना, है भिन्न पूजा, नहीं भाव दूजा ।

देखो सभी धर्म गाते इसे ही, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (३३)

 

योगी यति तापस साधु सारे, प्यारे बिना जो दुखिया विचारे ।

एकान्त में श्रीशयही पुकारे, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (३४)

 

प्यारे जरा तो मन में विचारो, क्या साथ लाये, अरू ले चलोगे ।

जाये यही साथ सदा पुकारो, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (३५)

 

नारी, धरा-धाम, सुपुत्र प्यारे, सन्मित्र, सद्वान्धव, द्रव्य सारे ।

कोई न साथी, हरि को पुकारो, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (३६)

 

नाता भला क्या जग से तुम्हारा, आये यहाँ क्यों, कर क्या रहे हो ।

सोचो विचारो, हरि को पुकारो,  गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (३७)


 

सच्चे सखा हैं हरि ही हमारे, माता-पिता  श्रीशसुवन्धु प्यारे ।

भूलो न भाई, दिन-रात गाओ, गोविन्द दामोदर माधवेति  ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (३८)

 

गोविन्द साधो बहुमोदकारी, जो स्तोत्र गावे पुरतो मुरारी।

प्रेम्णा प्रभातेऽचल भक्ति पावे, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (३९)

 

होके सदा तुष्ट करे सवेरा, जो गम को है करता सवेरा ।

गेहेऽचलाके सह मोद देते, गोविन्द दामोदर माधवेति ।।

हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखेति ! (४०)

          

          ।।इति श्रीगोविन्दसाधोसहमोदकारी स्तोत्रम्।।

                           

नोटः- पिताश्री का नाम श्रीवल्लभ था। अतः संक्षेप में श्रीश (श्री+ईश) लिखा करते थे।

 यहाँ यथास्थान पादपूर्ति हेतु  श्रीशप्रयुक्त हुआ है।

वृहत्स्तोत्रमाला के मूल संस्कृत श्लोकों का हिन्दी पद्यानुवाद सन् १९४६ई. में पिताश्री ने किया था।

 ( शब्दसंकेत— कासार = तड़ाग, ईंजील = बाइबिल, कुरावों =इस्लाम)

         ।। श्री कृष्णार्पणमस्तु।।

             

 

Comments