निरामयः अविस्मरणीय अंश


 अविस्मरणीय अंश
क्या रखा है हाथ की टेढ़ी-मेढ़ी लकीरों की श्रृंखला में? बस कमाने-खाने का एक जरिया...
.......गर्भस्त बालक के लम्बे समय तक भींची गयी मुट्ठी के कारण कोमल हथेली पर बन गयी रेखायें....या और कुछ?
.....यदि हाथ ही फैलाना है तो उस निर्गुण-निराकार-निरामय-परब्रह्म परमेश्वर, अचिन्त्य शक्ति के सामने क्यों नहीं फैलाते
.......पड़ोसी के भूखे होने की चिन्ता महाभारत काल की बात है,अब तो हम समझदार हो गए हैं,अपनी लिट्टी पहले सेंको...
     ........कुछ पल पूर्व जिन हाथों में सिंदूर था,वही अब अग्नि लिए है....सिंदूर तो दे दिया था, फेरा लगाना शेष रह गया था, उसे अब पूरा करना पड़ रहा है...
      .........सप्तपदी के वचन सात ही होते हैं...फेरे मैंने बारह लगाए....
       .....पुरूष तभी तक छल सकता है नारी को जब तक वह सोयी रहती है,झूठे प्यार की थपकी से संटुष्ट होकर...किन्तु सच्चाई का सूरज जब झूठे प्यार के कोहरे को चीर कर वास्तविकता के आकाश में चमकने लगता है,तब उस छली, बेवफा पुरूष की  छाती पर ताण्डव मच जाता है...
     .....पुरूष सिर्फ अपनी बुद्धि पर भरोसा करता है....नारी स्वज्ञा से पहुंच जाती है,उस गुप्त तहखाने तक जहाँ पुरूष के प्यार की ताली रखी होती है।
  .......तड़प रही थी मीरा- अपनी व्याद्दि से,और पास बैठा मैं तड़प रहा था आधि’ से।रात की काली चादर में लिपट कर पूरा कलकत्ता सो रहा था,पर मीना निवास की चार आखों में नींद न थी।मीरा कराह रही थी।तड़प रही थी।उसके विशाल हृदय में प्रेम का प्रशान्त’महासागर लहरा रहा था,और उसके किनारे पर बैठा मैं- प्रेम की ही प्यास से तड़प रहा था।पर उस खारे जल को पीकर अपनी प्यास बुझाने की सार्मथ्य कहाँ थी?
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