पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्- 12

(6)              उदुम्बर(गूलर) का बाँदा- यूँ तो ऊपर गिनाये गये पञ्चपल्लवों में आम को छोड़ शेष चारों- (पीपल,वट,पाकर,गूलर)को उदुम्बर कहा जाता है;किन्तु उदुम्बर शब्द रुढ़ हो गया है- गूलर के लिए ही। इसके फल की सब्जी या पकौड़ियाँ भी बनायी जाती है।उदर रोगों के लिए गूलर अमोघ औषधि है।विभिन्न रोगों- खास कर धातुक्षीणता में यह बहुत गुणकारी है।नवग्रहों में यह शुक्र की संविधा है।
      उदुम्बर का बाँदा रोहिणी नक्षत्र में पूर्व कथित विधि से घर लाकर स्थापन-पूजन करने के बाद तिजोरी,गल्ला,आलमारी में लाल या पीले वस्त्र में लपेट कर रख दें।यह धन-धान्य की बृद्धि के लिए अद्भुत है।इसे आप रसोई-घर में भी रख सकते हैं।
उदुम्बर के अन्य प्रयोगः-(क) धनागम- रविपुष्य योग में(गुरुपुष्य में हरगिज नहीं) गूलर का जड़ पूर्व विधि से निमंत्रण देकर घर लावें,और विधिवत स्थापन-पूजन करके,कम से कम ग्यारह माला देवी नवार्ण मंत्र का जप,दशांश होमादि सम्पन्न करने के बाद लाल कपड़े में लपेट कर पूजा-स्थल या कहीं और सुरक्षित रख दें।नित्य पंचोपचार पूजन भी करते रहें।ध्यातव्य है कि प्रथम दिन चढाये गए गन्ध-पुष्पादि को यथावत छोड़ दें,हटायें नहीं।अन्य दिनों वाला पूजन-सामग्री अगले दिन हटाते जाएं।जड़ को  हो सके तो चाँदी में जड़वा कर भी स्थापित कर सकते हैं,तांबा या अन्य धातु नहीं।इस प्रयोग से अप्रत्याशित रुप से धनागम होते रहता है।यह प्रयोग अपेक्षाकृत आसान और शतानुभूत है।
     (ख)सन्तान-सुख-  जिन घरों में सन्तान सुख का अभाव हो-(सन्तान न होता हो,हो-होकर मर जाता      हो, जीवित होकर भी अयोग्य और उपद्रवी- परिवार के लिए दुःखदायी हो,रोगी हो) किसी कारण से भी,वैसी स्थिति में उदुम्बर-मूल का प्रयोग चमत्कारी लाभ देता है।सारी बातें प्रयोग संख्या- ‘क’ के समान ही  रहेगी। अन्तर मात्र इतना ही कि पूजन के बाद अपना अभिप्राय निवेदन करना न भूलें।नित्य प्रार्थना करें कि हे उदुम्बर देव मुझे सन्तान-सुख प्रदान करें- मेरे सन्तान को सद् बुद्धि दें... इत्यादि।प्रयोग के थोड़े दिनों बाद से ही आप विल्क्षण परिवर्तन या लाभ अनुभव करेंगे।
(ग) प्रेम,प्रतिष्ठा और सम्मोहन- प्रायः देखा जाता है कि हर प्रकार से ठीक-ठाक रहने पर भी, किसी-किसी को घर-परिवार-समाज में समुचित  प्रेम-सम्मान नहीं मिलता।ऐसी परिस्थिति में उदुम्बर मूल का प्रयोग चमत्कारी लाभ दिखलाता है।(ध्यान रहे- आकांक्षी का कोई दोष न हो,वह अपने आप में ठीक हो,दोष अन्य का ही हो)।रविपुष्ययोग में उदुम्बर-मूल पूर्ववर्णित विधि से घर लाकर स्थापन पूजन करके आकांक्षी को प्रेम-पूर्वक प्रदान करे,और आशीष दें।ध्यातव्य है यह लोककल्याण की भावना से ही किया जाय।किसी अन्य कारण और उद्देश्य से हरगिज नहीं।जड़ की मात्रा विशेष हो, ताकि कम से कम तैंतीस दिनों तक घिसकर चन्दन की तरह माथे में लगाया जा सके।स्त्रियाँ भी विन्दी की तरह उपयोग कर लाभ पा सकती हैं।खासकर स्त्रियों को ही ऐसे मानसिक कष्ट विशेष रुप से झेलने पड़ते हैं।श्रद्धा-विश्वास पूर्वक प्रयोग करने से अवश्य लाभ मिलेगा।
(घ) सामान्य सुख-शान्ति- उक्त विधि से उदुम्बर मूल का ग्रहण-स्थापन और नित्य पूजन घर में सुख और शान्ति प्रदान करता है।यह प्रयोग निरापद और सुविधाजनक है।कोई भी व्यक्ति इसका प्रयोग स्वयं के लिए कर सकता है।
(ङ) दत्तात्रेय-साधना—भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा-बिष्णु-महेश का संयुक्त स्वरुप माना जाता है।इनकी पूजा- अर्चना-उपासना भगवान आशुतोष की तरह शीघ्र फलदायी कही गयी है।दत्तात्रेय तन्त्र में विभिन्न प्रयोगों की चर्चा है।प्रसंगवश यहाँ उदुम्बर-प्रयोग की चर्चा कर रहा हूँ।रविपुष्य योग में प्रारम्भ कर, किसी एकान्त और पवित्र स्थान में गूलर के पेड़ के नीचे बैठकर दत्तात्रेय पंचाक्षर(ऊँ दां युक्त) मंत्र का सोलह माला जप इक्कीश दिनों तक करने से चमत्कारिक लाभ होता है।जप से पूर्व नित्य यथासम्भव पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन करना चाहिए;और अनुष्ठान समाप्ति की विधि अन्य विधियों जैसी ही होगी- यानी दशांश हवन,तर्पण,मार्जनादि,तथा दो बटुक एवं भिक्षुक भोजन सदक्षिणा अनिवार्य शर्त है।नित्य पूजा में अन्य सामग्री के साथ-साथ मलयागिरि स्वेत चन्दन,स्वेत पुष्प एवं केवड़ा का इत्र आवश्यक है।साधक को उत्तर या पूर्वमुख बैठना चाहिए।

                 यही प्रयोग पूर्व विधि से उदुम्बर-मूल को घर में लाकर भी किया जा सकता है। 

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