पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्-16

(१0)              कुश का बाँदा- कुश दो-तीन फीट ऊंचा क्षुप जातीय घास है,जिसके विना शुभाशुभ कर्मकांड अधूरा माना जाता है।इसका संस्कृत नाम दर्भ है। नवग्रहों में केतु की यह समिधा है।यूँ तो इसमें बाँदा होना आश्चर्य जनक प्रतीत होता है,किन्तु सच्चाई ये है कि कभी-कभी इसके पतले तनों के बीच कुछ गांठें बन जाती हैं,जो देखने में रुद्राक्ष के छोटे दाने सदृश होती हैं- तन्त्र-शास्त्रों में इसे ही कुश का बाँदा कहा गया है।यह दुर्लभ बाँदा कदाचित प्राप्त हो जाय तो भरणी नक्षत्र में पूर्व निर्दिष्ट विधि से घर लाकर स्थापन-पूजन करके पवित्र स्थान में रख दें।इसकी क्षमता की निरंतरता के लिए नित्य श्री महालक्ष्मी मंत्र का कम से कम सोलह बार जप अवश्य कर लिया करें।इसका मुख्य गुण है- दरिद्रता का नाश करना।इसके सम्बन्ध में एक और बात ध्यान में रखने योग्य है कि बाँदा अपने पूरे रुप में हो- कटा-फटा जरा भी नहीं,अन्यथा कारगर नहीं होगा।
कुश के अन्य प्रयोग- विशेष अवसरों पर कुश की पत्तियों के तीन टुकड़ों की बनी अंगूठी बांयें हाथ की अनामिका अंगुली में एवं दो पत्तियों की दांयें हाथ की अनामिका में पहन कर कर्मकांड-क्रियाओं का विधान है।सामान्य तौर पर लोग जरुरत के समय ही इसे बना लेते हैं,और काम के बाद विसर्जित कर देते हैं; खास कर श्राद्धादि कार्य के बाद का कुशा तो विसर्जित कर ही देना चाहिए।
 कुशा ग्रहण मुहूर्त-  किसी कार्य के लिए कुशा ग्रहण का एक खास मुहूर्त है- अन्य दिनों में उखाड़ा गया कुशा मात्र उसी दिन के लिए योग्य होता है।किसी मास की आमावश्या को उखाड़ा गया कुश महीने भर तक कार्ययोग्य होता है।पूर्णिमा को उखाड़ा गया कुश पन्द्रह दिनों तक कार्ययोग्य होता है;किन्तु भाद्रमास के आमावश्या को उखाड़ा गया कुशा पूरे बर्ष भर के लिए कार्ययोग्य माना गया है।इस विशेष आमावश्या को कुशोत्पाटिनी आमावश्या कहा गया है।प्रातः स्नान के बाद कुश लाने के निमित्त अक्षत, फूल,जलादि के साथ खोदने के लिए कोई औजार लेकर पौधे के समीप जाकर, पूजन-प्रार्थना करके-   ऊँ हुँ फट् स्वाहा मंत्रोच्चारण करते हुए श्रद्धापूर्वक कुश उखाड़ना चाहिए।
       इस प्रकार घर लाए गए कुश से आसन का निर्माण करें।आसनी तैयार हो जाने के बाद उस पर पूर्वाभिमुख बैठकर श्रीविष्णु के पंचाक्षर मंत्र का एक माला जप कर लें।जप करते समय भाव ये रहे कि आसन की सिद्धि हेतु जप कर रहा हूँ।पौराणिक प्रसंग है कि श्री विष्णु जब पृथ्वी के उद्धार के लिए महावराह का रुप धारण किए तब शरीर झाड़ने के क्रम में उनके महाकाय से झड़ा हुआ रोम ही पृथ्वी पर गिर कर पवित्र कुशा के रुप में अवतरित हुआ।कुशा की पवित्रता का एक और पौराणिक प्रसंग है-        
    अपनी माता विनीता को विमाता कद्रु की कैद से छुड़ाने के लिए वैनतेय गरुड़जी ने अमृत हरण किया, और शर्त के अनुसार सर्पों के समक्ष कुश पर ही अमृत-कलश को रख कर चले गए।अमृत-कलश के  स्पर्श के कारण कुश की पवित्रता और बढ़ गयी।अस्तु।
       कुश का आसन- यहाँ मेरा अभीष्ट है कुशासन- इस साधित-पवित्र कुशासन पर बैठकर जो भी क्रिया करेंगे,वह सामान्य की अपेक्षा अधिक फलद होगी।ध्यान रहे- अपना साधित यह आसन किसी अन्य को उपयोग न करने दें।वैसे पहले भी कह आए हैं- आसन,माला,वस्त्रादि किसी प्रयोज्य वस्तु का अन्य के लिए व्यवहार निषिद्ध है।अपना प्रयोज्य वस्तु किसी को कदापि न दें, और दूसरे का प्रयोज्य वस्तु कदापि न लें।साधकों को इन बातों का सख्ती से पालन करना चाहिए।
       पवित्री(कुश की अंगूठी)- उक्त भाद्रमास की कुशा को ऐंट-बांटकर (क्रमशः तीन और दो पत्तियों के संयोग से) दो अंगूठियाँ बना लें।इनमें तीन पत्तियों वाली अंगूठी को बांयीं मुट्ठी में,और दो पत्तियों वाली अंगूठी को दांयी मुट्ठी में बन्द कर सात मिनट तक श्री विष्णु पंचाक्षर मंत्र का जप कर लें।आगे किसी अनुष्ठान में इसे अनामिका अंगुली में धारण कर, क्रिया करेंगे तो वह सामान्य की अपेक्षा अधिक फलद होगी।
      कुश मूल की माला- विहित काल में ग्रहण किए गए कुश-मूल की माला(चौवन या एक सौआठ मूल) बनाकर किसी रविपुष्य/गुरुपुष्य योग में श्री बिष्णुपंचाक्षर मंत्र का सोलह माला जप कर कर लें।जप से पूर्व माला को षोडशोपचार पूजित अवश्य कर लेना चाहिए।अब इस साधित कुश-मालिका पर नित्य सोलह माला महालक्ष्मी मंत्र का जप पूरे कार्तिक मास में करने से अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।अन्य समय में भी लक्ष्मी मंत्र का जपानुष्ठान इस मालिका पर अत्यधिक फलद होता है।
         कुशासन,कुश माला,कुश की पवित्री का उपयोग किसी भी अनुष्ठान में एकत्र रुप से करना चाहिए।इस सम्बन्ध में कुछ बातें और स्पष्ट कर दूँ- सधवा स्त्री को कुश का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए। आसन के लिए सफेद कम्बल का आसन,और रुद्राक्ष की माला प्रायः सर्वग्राह्य है।पवित्री की जगह सोने की अंगूठी धारण करना चाहिए।सोना सम्भव न हो तो चांदी-तांबा से भी काम चल सकता है।दूसरी बात यह कि आजकल बाजार में कुश के नाम पर मिलने वाला आसन कुश है ही नहीं,प्रत्युत वैसा ही दीखने वाला "कास " है।वैसे कुश कोई दुर्लभ पौधा नहीं है।बात है सिर्फ पहचान की। 
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