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कर्पास,रोहित,शाखोट,अशोक,और विल्व-
बाँदा प्रकरण के ये अद्भुत रत्न हैं।इनके ग्रहण-काल-भेद हैं- क्रमशः भरणी,अनुराधा,मृगशिरा,उत्तराषाढ़ और अश्विनी नक्षत्र,शेष प्रक्रिया और प्रयोग विलकुल समान हैं। किन्तु संत निर्देशानुसार इसके पूर्ण मंत्र रहस्य को स्पष्ट नहीं कर पा रहा हूँ।वैसे भी आज के विकृति-वहुल परिवेश में इस तरह की शक्तियों की चर्चा सर्वथा अनुचित ही है,क्यों कि निश्चित है कि जान लेने के बाद इनका दुरुपयोग ही होगा.सदुपयोग होने का सवाल ही नहीं है।आँखिर कोई अदृश्य होकर क्या करेगा? मुझे पूरा भरोसा है संत के वचन पर,और तन्त्र के सिद्धान्त पर भी।हाँ,इसके एक अन्य प्रयोग की चर्चा यहाँ करना अप्रासंगिक नहीं होगा- इन बाँदाओं को विधिवत संस्कार करके, शुद्ध गोरोचन के साथ मिश्रण करे,और अंजन की तरह आँखों में लगाकर भूमिविदारण मंत्र का प्रयोग करने से भूगर्भ-तन्त्र का ज्ञान होता है।यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भूमिविदारण मंत्र की साधना(सवा लाख जप)पहले सुविधा नुसार कर लेनी चाहिए,तभी समय पर प्रयोग करने पर कारगर होगा।
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