प्रथम
परिच्छेद--आवश्यक निर्देश
तन्त्र के प्रयोगकर्ता को कुछ अत्यावश्यक बातों
का ध्यान रखना चाहिए—
Y १.तन्त्र पराम्बा की बिभूति है,अतः
परमश्रद्धेय है।
Y २.श्रद्धा,विश्वास और लगन ही किसी भी
साधना के अथ और इति हैं।
Y ३.तन्त्र का प्रयोग आत्मकल्याण और
लोककल्याण की भावना से ही किया जाय।
Y ४.उतावलेपन में,आवेश में,और "प्रयोग
करने के लिए" प्रयोग न करें।
Y ५.साधना और प्रयोग में सम्यक्
यम,नियम,शौचाचार का ध्यान रखा जाय।
Y ६.सभी औषधियों पर औषधीश यानी चन्द्रमा का
आधिपत्य है।चन्द्रमा मानव मन के नियामक भी
हैं।नक्षत्रों को चन्द्रमा की पत्नी कहा गया है।पति को अनुकूल करने के लिए पत्नी
का अनुकूल होना बड़ा महत्वपूर्ण है। अतः यथानिर्दिष्ट नक्षत्रों का सम्यक् पालन
होना अनिवार्य शर्त है।
Y ७.तन्त्र अपने आप में स्वतन्त्र
अस्तित्त्व रखता है,यानी परिपूर्ण है,फिर भी मन्त्र और यन्त्र से अंगागीभाव सम्बन्ध
है।तात्पर्य यह कि तन्त्र-प्रयोग में यथोचित मन्त्र और यन्त्र का प्रयोग होता है।इसे
यूँ कहा जा सकता है कि तन्त्र रूपी पक्षी को सम्यक् उड़ान भरने के लिए मन्त्र और
यन्त्र रूपी पंख की आवश्यकता पड़ती है।वैसे यह सर्वथा निरंकुश है।स्वयं सहाय भी।
Y ८.यहाँ निर्दिष्ट प्रयोगों की सिद्धि के
पश्चात् उनका व्यावसायिक उपयोग कदापि न करें। क्योंकि इससे प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ
भले ही नजर आए,परोक्ष में आपका अहित ही अहित है।श्रद्धा-प्रेम वश कोई इसके बदले
यदि कुछ दे ही दे,तो कम से कम तीसरा हिस्सा(३३%) दान अवश्य कर दें।इससे आपकी
सिद्दि में जरा भी शक्तिहीनता नहीं आयेगी।पराम्बा की कृपा सदा बरसती रहेगी।
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