पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्-6

         ()बाँदा एक परजीवी वनस्पति
       
वस्तुतः बाँदा एक परजीवी वनस्पति है,जो भूमि पर न उग कर,विभिन्न वृक्षों पर अपना स्थान बनाता है।जिस वृक्ष पर उगता है उसके ही रस-तत्वों से अपना पोषण करता है।ध्यातव्य है कि यह रासना और अमर- लता से भिन्न है।वे दोनों सहज-स्वतन्त्र रुप से उद्भुत हैं,जब कि बाँदा एक विकृति की तरह है।यही कारण है कि कुछ विद्वान इसे परजीवी स्वतन्त्र वनस्पति न कहकर वृक्ष की बीमारी ही मानते हैं।किन्तु मैं इसे स्वतन्त्र परजीवी इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि स्वतन्त्रता के सारे लक्षण इसमें विद्यमान हैं- इसकी काष्ट-संरचना अपनी है- खुरदरी गांठदार,पत्तियों का आकार लम्बा-गोलाई युक्त, हरे रंग के सुन्दर गुलाबी पुष्पगुच्छ-लौंग जैसा,फल निमौली जैसे गुच्छों में ही  पाये जाते हैं।यूं तो यह प्रायः किसी भी वृक्ष पर हो सकता है,किन्तु आम,महुआ, जामुन आदि पर सहजता से देखा जा सकता है।आम के वृक्ष में तो सबसे ज्यादा।इसका प्रभाव क्षयकारी है।जिस वृक्ष पर उग जाता है,या कहें जिस वृक्ष को ग्रस लेता है,उसका विकास अवरूद्ध हो जाता है।यही कारण है कि बागों में किसी बृक्ष पर देखते के साथ ही उसका संरक्षक तत्काल ही काट कर नष्ट कर देता है,ताकि इसका कुप्रभाव अधिक फैलने न पाये।
     तन्त्र शास्त्र में बाँदा बहुत ही उपयोगी बतलाया गया है।विभिन्न वृक्षों पर पाये जाने वाले बाँदा का अलग-अलग तान्त्रिक उपयोग है।उन अलग-अलग वृक्षों से ग्रहण का अलग-अलग मुहूर्त भी है।समुचित मुहूर्त में ही निर्दिष्ट विधि से उसे ग्रहण करना चाहिए,तभी समुचित लाभ प्राप्त हो सकता है।अन्यथा नहीं।वनस्पति तन्त्र-सिद्धि के लिए पहले अध्याय में बतलाये गए सभी निर्देशों का सम्यक् पालन करना भी अति आवश्यक है।तभी अभीष्ट की प्राप्ति हो सकेगी।
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