पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्- 8

 वहुआर का बाँदा- 
      
     वहुआर एक सुपरिचित पौधा है.इसका एक नाम लिसौढ़ा भी है। इसका वृक्ष बहुत बड़ा नहीं होता।अमरूद वगैरह की तरह ही होता है।गोल-गोल छोटे बेर की तरह इसके फल होते हैं।फल लस्सेदार(लार की तरह) खाने में लगते हैं।यही कारण है कि सुस्वादु फलों की श्रेणी में इसे नहीं रखा जा सकता।हाँ, इसकी लकड़ी बड़ी हल्की और चिकनी होती है।देहातों में जुआठ(हल-जुआठ) के लिए इसका उपयोग होता है।

       बहुआर का बाँदा सौभाग्य से कहीं दीख जाये तो पूर्व वर्णित विधि से मघा नक्षत्र में घर लाकर पूर्व विधि से ही स्थापन-पूजन करके लाल वा पीले वस्त्र में लपेट कर तिजोरी,कोष,भण्डार,आलमारी,वक्से में यथोचित स्थान देदें।नित्यप्रति पंचोपचार पूजन करके,कम से कम एक-एक माला शिव पंचाक्षर एवं देवी-नवार्ण मंत्रों का जप वहीं बैठकर कर लिया करें। यह बहुआर-बाँदा धन-समृद्धि के लिए अद्भुत् प्रसिद्ध है। जिस घर में इस अभिमंत्रित बहुआर बाँदा की नित्य पूजा होती है,वहाँ साक्षात् लक्ष्मी का वास होता है।अन्नादि भण्डार सदा भरे रहते हैं।
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