पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्- 9

(3)              शिरीष बाँदा- कवियों का प्रिय शिरीष एक सुपरिचित पौधा है।इसके विशाल पौधे में बड़े सुन्दर-कोमल फूल लगते हैं।आठ-दस ईंच लम्बी डेढ़ ईंच करीब चौड़ी, पतली सी फली में कुछ बीज होते हैं।इनका औषधीय प्रयोग भी होता है।लकड़ियाँ शीशम को भी मात करने वाली होती हैं,किन्तु वास्तु शास्त्र में इसका उपयोग सर्वथा वर्जित है।शिरीष काष्ठ को सद्यः वंश-नाशक कहा गया है।मैं इसका प्रत्यक्ष दर्शी हूँ।एक सज्जन नया मकान वनवाये,जिसमें अपनी वाटिका में सुलभ प्राप्त शिरीष की लकड़ियों का किवाड़ लगवाये।कई अनुभवी-जानकारों ने- यहाँ तक की बढ़ई ने भी मना किया,किन्तु जाहिल-जिद्दी लोग तो किसी की सुनते नहीं,या कहें भावी होनहार उनकी बुद्धि को ग्रस लेता है।भवन बनने के साल-भीतर ही एक मात्र कुल दीपक का निधन हो गया।आगे लाख प्रयत्न के बावजूद सन्तति-लाभ न कर सके।

    यहाँ मेरा अभीष्ट शिरीष का बाँदा है।इसे कहीं संयोग से प्राप्त कर लें तो, पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में पहले अन्य प्रयोगों में बतलायी गयी विधि से घर में लाकर स्थापन-पूजन कर रख लें।इसका फल सर्व समृद्धि है।हर प्रकार की चिन्ता-कष्ट का निवारण करने वाला है यह।विशेष अवसर पर इसका थोड़ा अंश चन्दन की तरह घिसकर सिर के ऊपर मध्य भाग में तथा ललाट में तिलक की भांति लगाना चाहिए।

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