पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्-26

               ४.बाँदा तिलकःएक विशिष्ट प्रयोग
      
ऊपर के प्रसंगों में विभिन्न वनस्पतियों के बांदाओं का परिचय और उनका तान्त्रिक प्रयोग यथासम्भव स्पष्ट करने का प्रयास किया गया।बांदाओं के साथ-साथ उनके जड़ों का भी तान्त्रिक प्रयोग प्रसंगवश साथ में ही दे दिया गया है।इस स्वतन्त्र अध्याय में कुछ खास तरह के तिलक की चर्चा की जा रही है।यूँ तो सामान्य नियमानुसार जिन-जिन वनस्पतियों(बांदा और मूलादि) का जो-जो प्रयोग बतलाया गया है,उसी भांति उन-उन वनस्पतियों का प्रायः तिलक प्रयोग भी किया ही जा सकता है- अपने वुद्धि-विवेक से।फिर भी कुछ विशिष्ट प्रयोगों की चर्चा और भी खुले तौर पर कर देना उपयुक्त लग रहा है।
      पूर्व वर्णित विधि से ग्रहित,पूजित,साधित शाखोट(सिहोर) वृक्ष के बांदा और तदरुप ही आम का बांदा तैयार करले,साथ ही गोखरु(कंटक वनस्पति) ताजी या जड़ी-बूटी की दुकान से लाकर समान मात्रा में तीनों को मिलाकर चूर्ण बना ले।अब इस मिश्रित चूर्ण का चतुर्थांश सैंधव का भी मिश्रण कर दे।ध्यातव्य है कि यह मिश्रण कार्य पुनः रविपुष्य योग विचार करके ही करे,अन्य काल में नहीं।इस भांति चूर्ण तैयार करके एक बर्ष तक स्थायी रखा भी जा सकता है।चारो वनस्पतियों मिश्रण तैयार हो जाने पर कम से कम ग्यारह माला शिव पंचाक्षर और नौ माला शक्ति नवार्ण मन्त्रों का जप अवश्य कर लेना चाहिए। प्रयोग के समय बकरी के दूध के साथ लेप बना कर माथे पर त्रिपुण्ड की भांति लगाले।इसका नित्य प्रयोग भी किया जा सकता है,और विशेष अवसरों पर भी।इस लेप का साधक ध्यान लगाकर बड़े सहज रुप से जो चाहे देख सकता है।जैसे- आपके पास कोई प्रश्न लेकर आया कि मेरा पुत्र घर से भाग गया है या लापता है।अभी वह कहाँ किस स्थिति में है? इस लेप का नियमित साधक वस पल भर के ध्यानस्थ होगा,अपने इष्टदेव का ध्यान करेगा,और उद्देश्य निवेदन करेगा।क्षण भर में ही चलचित्र की भांति वर्तमान(इच्छित) घटना-क्रम उसके सामने घूम जायेगा,जिसे पृच्छक को बता कर लोक कल्याण का महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न कर सकता है।परन्तु ध्यान रहे- इस विद्या का कदापि दुरुपयोग न करे,अन्यथा घोर विपत्ति का सामना करना पड़ सकता है।मेरे कुटुम्ब में एक ऐसे साधक हैं(अभी वर्तमान में भी)जो इस तरह की अनेक साधनायें कर चुके हैं।किन्तु अफसोस कि तन्त्रशास्त्र की आधी बातों को ही उन्होंने अंगीकार किया।लाख हिदायत के बावजूद नियमों की धज्जियां उड़ा दी,और फिर दुष्परिणाम भी सामने ही हाजिर हुआ।तन्त्र को व्यापार बना कर जो दौलत और सोहरत उन्होंने हासिल किया सब कुछ पानी के बुदबुदे सा कुछ ही दिनों में लुप्त हो गया।पत्नी गुजरी,बेटा गुजरा,बहू गुजरी,पोता भी गुजरा,अपना कहा जाने वाला शरीर भी अचानक नाकाम होने लगा...तब थोड़ी आँख खुली,पर क्या बर्षा जब कृषि सुखानी?बड़े मुश्किल से अब थोड़े सम्भले हैं।अतः सावधान।तन्त्र बहुत कुछ दे सकता है,तो सबकुछ छीन भी सकता है।
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