पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्-28

                           ६. हाथाजोड़ी 
                                  
                               
                                   
         
           प्रकृति का एक अद्भुत उपहार है- हाथाजोड़ी।इसके कई नाम हैं- हथजोड़िया,हस्ताजुड़ी,हथजुड़ी, भुजयुग्म,दुहथिया आदि।उर्दू में इसे बखूरि-ए- मरियम कहते हैं।इसका एक नाम चुबकउश्शान भी है।लैटिन में-Cyclemen Parcicum  कहा जाता है।कुछ भ्रामक पुस्तकों में ब्रह्मदण्डी और निर्गुण्डी कह दिया गया है-जो सर्वथा अशुद्ध है ।ये दोनों अलग वनस्पतियाँ हैं।सच पूछें तो यह लुप्त वनस्पतियों की श्रेणी में है।मध्यप्रदेश और राज स्थान के कुछ भागों में पाया जाता है।वहाँ इसे वनवासियों द्वारा "विरवा" नाम से पुकारा जाता है।इसके औषधीय और तान्त्रिक महत्ता को देखते हुए चतुर व्यवसायी एक अन्य वनस्पति को इस नाम से प्रचारित कर दिए हैं,जो गुण और प्रयोग में सर्वथा भिन्न है।बिहार-झारखण्ड की पहाड़ियों पर प्रचुर मात्रा में पाये जाने वाले तीन-चार ईंच लम्बी एक अद्भुत घास को गुण-धर्म-साम्य के आधार पर हाथाजोड़ी के नाम से विख्यात किया गया है।जड़ी-बूटी की दुकानों पर हाथाजोड़ी के नाम से वही घास मिलेगा, जिसे स्त्रियाँ पहले अपने सिंधोरे में अक्षय सुहाग की कामना से रखा करती थी।यह बोरियों के हिसाब से उपलब्ध है।काली पतली डंठल के ऊपरी सिरे पर एक छोटी पत्ती होती है जो सिकुड़ कर ऐसा प्रतीत होती है मानों हाथ की अंगुलियों को भीतर की ओर मोड़ लिया गया हो।बर्षो की सूखी पत्ती को जल में थोड़ी देर डाल कर छोड़ देने से बिलकुल ताजी प्रतीत होने लगती है।हाथ के पंजे की आकृति और जल संपर्क से ताजी हो जाने की विशेषता को देखते हुए हाथाजोड़ी नाम से प्रसिद्धि पाजाना इस क्षद्म वनस्पति के लिए सहज हो गया। बिहार-झारखण्ड के जंगलों में काफी भटकने का सौभाग्य मिला है,जहाँ यह तथाकथित बूटी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है,जिसका अन्य तान्त्रिक प्रयोग है। किन्तु ध्यान रहे यह असली हाथाजोड़ी नहीं है।
      असली हाथाजोड़ी एक पौधे की गोलाकार-गांठदार जड़(शक्करकन्द की तरह) से निकली हुयी दो अद्भुत शाखायें हैं, जो ऊपर निकल कर दायें-वायें दो भुजाओं की तरह खड़ी हो जाती हैं।आप कल्पना करें कि एक नंग-धडंग आदमी अपने दोनों हाथ ऊपर की ओर उठाये हुए खड़ा हो,जिसके हाथों की अंगुलियां भीतर की ओर अधमुड़ी अवस्था में हों।ताजी स्थिति में आहिस्ते से दोनों शाखाओं को मिला देने पर आपस में मिली(चिपकी सी) रह जायेंगी।यही इसकी विशेषता है।इसे जल से रक्षा करने की जरुरत है- क्यों कि अत्यधिक जल-सम्पर्क से सड़ जायेगा,जब कि नकली(हाथाजोड़ी के नाम से बाजार में मिलने वाला)वनस्पति को बारम्बार जल-संयोग से कोई क्षति नहीं होती।असली हाथाजोड़ी पौधे की टहनी पर गुलाबी रंग का सुन्दर सा फूल निकलता है।तना (या इसका धड़ कहें) पर हरी पत्ती होती है, जिसका पृष्ट भाग सफेद होता है।जड़ (मिश्रीकन्द या शक्करकन्द की तरह,किन्तु रंग भेद युक्त) श्यामवर्णी होता है।
       तन्त्र-साधना हेतु आभायुक्त, सुडौल,सर्वांगपूर्ण(जड़,तना और दोनों पत्तियाँ) पौधा ही ग्रहण करना चाहिए।
विकृत,खंडित होने पर साधना हेतु अयोग्य है।
     चूँकि हाथाजोड़ी की उपलब्धि कठिन है,अतः प्राप्त करने में मुहूर्त विचार की बात नहीं है।यह सौभाग्य से प्राप्त हो जाए- यही सबसे बड़ी बात है।अतः प्राप्त हो जाने पर मुहूर्त विचार करके साधना प्रारम्भ करें।इस अद्भुत वनस्पति में भगवती चामुण्डा का साक्षात् वास माना गया है,अतः नवरात्र(बारहों में सुविधानुसार कोई भी)ग्रहण किया जा सकता है।ज्ञातव्य है कि प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नौवमी पर्यन्त नवरात्रियाँ हैं, जिन्हें प्रधानता-क्रम से रखा गया है- आश्विन, चैत्र,आषाढ़,फाल्गुन,माघ,श्रावण,अगहन,वैशाख,कार्तिक,भादो,ज्येष्ठ और पौष।तन्त्र साधना की अलग-अलग विधियों में, इनके क्रमों में भी उलटफेर होते रहता है-इस सम्बन्ध में सामान्य जन को संशय नहीं करना चाहिए।सीधी सी बात है- आप सुविधानुसार कोई भी महीने का शुक्ल पक्ष ग्रहण कर लें, वशर्ते कि खरमास,गुरु-शुक्रास्त आदि निषिद्ध काल न हों।
     विहित काल में अन्यान्य पूजाविधान की तरह षोडशोपचार पूजन करना चाहिए।सामान्यतया जल से शुद्धि करके लाल कपड़े का आसन देकर प्रतिष्ठित करें।पूर्व अध्यायों में कहे गये(रुद्राक्ष या श्वेतार्क स्थापना)विधान से स्थापन-पूजन करने के बाद भगवती चामुण्डा के किसी भी अनुकूल(गणना-विचार से) मन्त्र का सवालाख या कम से कम छत्तीस हजार जप,दशांश होमादि विधि सहित सम्पन्न करें।ध्यान रहे- अनुष्ठान की पूर्णता ब्राह्मण और भिक्षुक भोजन (दक्षिणा सहित) के बाद ही होती है।इस प्रकार साधित हाथाजोड़ी को सम्मान पूर्वक कहीं- पूजास्थल में सुरक्षित रख दें,और नित्यप्रति पंचोपचार पूजन करते हुए,कम से कम एक माला पूर्व जपित मंत्र को अवश्य जप लिया करें।
     
हाथाजोड़ी का प्रभाव और प्रयोगः- 

   हाथाजोड़ी का मुख्य प्रभाव सम्मोहनशीलता है।साधक इसे आवश्यकता पड़ने पर अपने साथ लेकर जाये- जैसे, मान लिया कि उसे किसी अधिकारी से कुछ मनोनुकूल काम निकालना है।वैसी स्थिति में स्थायी रुप से रखे हुए साधित हाथाजोड़ी वनस्पति को आदरपूर्वक उठाकर माथे से लगाते हुए अपनी वांछा (आवश्यकता) निवेदन करे- मानों अधिकारी से ही निवेदल कर रहा हो,और फिर मानसिक रुप से, पूर्व साधित मंत्र का नौ-ग्यारह-इक्कीस बार उच्चारण करते हुए गन्तव्य तक प्रस्थान करे- बूटी को साथ लेकर।यह शतप्रतिशत सत्य है कि उस दिन उसकी वांछा अवश्य पूरी होगी।किन्तु ध्यान रहे- किसी गलत उद्देश्य से,स्वार्थ में अंधे होकर इस अमोघ अस्त्र का प्रयोग न कर बैठे,अन्यथा इसका भारी खामियाजा उठाना पड़ सकता है। तन्त्र अमोघ है।इसके सुपरिणाम अमोघ हैं,तो दुस्परिणाम भी उतना ही अमोघ होगा- इसे न भूलें।अतः सावधान।
     वशीकरण भी सम्मोहन का ही एक अन्य रुप है। इसके लिए भी उसी भांति अपने शरीर से लगाये हुए- सुविधानुसार हाथ या जेब में रखकर पूर्व कथित विधि से प्रयोग करना चाहिए।
     जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है- हाथाजोड़ी में भगवती चामुण्डा का वास है।चामुण्डा,दुर्गा,काली आदि सभी एक ही तत्व के भिन्न नाम मात्र हैं- किंचित कार्यानुसार।इनके अनेक मंत्र मंत्रमहार्णव,मंत्रमहोदधि,आदि विभिन्न ग्रन्थों में उपलब्ध हैं।अपनी नाम राशि के अनुसार साध्य,सुसाध्य,दुसाध्य,मित्र,अरि आदि वर्गों का विचार करके अनुकूल मंत्र की साधना कर लेनी चाहिए।सामान्यतया सौम्य कार्यार्थ दुर्गा के सौम्य मंत्रों का चयन करना चाहिए।क्रूर कर्मों के लिए चामुण्डा के क्रूर मंत्रो का चयन करना चाहिए।
हाथाजोड़ी के कतिपय अन्य प्रयोग-
v धनाप्ति- पूर्ववर्णित विधि से घर में हाथाजोड़ी की स्थापना करके नित्य पूजन किया करे।साथ ही साधित मंत्र का ग्यारह माला जप करने के बाद अपना अभीष्ट निवेदन कर दे- "हे मातेश्वरी! मेरी निर्धनता का निवारण करें।" इसप्रकार नित्य क्रिया से थोड़े ही दिनों में आप चमत्कारिक लाभ अनुभव करेंगे।धनाप्ति के नये स्रोत खुलते हुए लक्षित होंगे।
v प्रसव-सुख- साधित हाथाजोड़ी को जल के साथ चन्दन की तरह धिसकर प्रसूता की नाभि,पेट,और पेड़ू पर लेप कर देने से सहज ही प्रसव होकर वेदना से मुक्ति मिल जाती है।
v मासिक-स्राव शोधन- अनियमित,अवरुद्ध,आदि विभिन्न रजोदोषों में हाथाजोड़ी के प्रयोग से अद्भुत लाभ होता है।इसके लिए बूटी का चूर्ण बनाकर स्वच्छ कपड़े की पोटली में एक चम्मच चूर्ण डाल कर स्त्री की योनी में रात सोते समय स्थापित कर दें।प्रातः जगने के बाद आहिस्ते से निकालकर फेंक दे।इस क्रिया को किसी मंगलवार से ही प्रारम्भ करे,और सातवें मंगलवार तक जारी रखे।यानी पौने दो महीने।
v मूत्रावरोध- किसी भी कारण से मूत्रकृच्छ्र,मूत्रावरोध हो तो साधित हाथाजोड़ी को जल के साथ पिष्टकर नाभि और पेड़ू पर लेप कर घंटे भर छोड़ दिया करें। आकस्मिक स्थिति में सिर्फ एक बार के प्रयोग से तत्क्षण लाभ होता है।जटिल और दीर्घ व्याधि की स्थिति में कुछ दिनों तक प्रयोग जारी रखना चाहिए।
v गर्भ-निवारक- साधित हाथाजोड़ी के चूर्ण को एक-एक चम्मच सुबह-शाम सात दिनों तक(किसी शनि वा मंगलवार से प्रारम्भ कर) गरम पानी के साथ सेवन करने से गर्भपात हो जाता है।किन्तु सावधान- गर्भपात एक दुष्कर्म है।प्राण-प्रतिष्ठा-रक्षण की स्थिति में ही ऐसा प्रयोग करना उचित है,साथ ही इस बात की सावधानी और व्यवस्था भी होनी चाहिए कि अत्यधिक रक्तस्राव की स्थिति का भी निवारण किया जा सके,अन्यथा महिला की जान भी जा सकती है।

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