पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्-32

                     १०.नागकेसर
   
नागकेसर विशिष्ट वनस्पतियों की श्रेणी में है।यह चन्दन की तरह अति पवित्र और तदनुसार प्रभावशाली भी है।इसे नागेश्वर भी कहते हैं।रुप में कबाबचीनी से बहुत साम्य रखता है।दोनों में छोटी डंडी लगी होती है।अतः पहचान में भ्रम हो सकता है।कालीमिर्च के समान गोल-गोल दाने(किन्तु खुरदरे नहीं,चिकने) होते हैं।गुच्छेदार फूल बड़े ही खूबसूरत लगते हैं- मादक गंधयुक्त।परिपक्व फल का रंग थोड़ा गेरूआ होता है।पौधे का आकार मेंहदी से मिलता-जुलता है।वैसे यह कोई दुर्लभ वनस्पति नहीं है।जंगलों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। जड़ी-वूटी विक्रेताओं के यहाँ आसानी से उपलब्ध भी है।आयुर्वेद में इसके अनेक प्रयोग हैं।वल्य,कफघ्न,और सौन्दर्य-वर्घक भी है।
नागकेसर शिव को अतिशय प्रिय है।धतूर,विल्वपत्र और विजया(भांग) तो प्रायः व्यवहृत होता है, किन्तु शिवपूजन में नागकेसर भी उसी श्रेणी में है,भले ही अप्रचलित हो।उचित तो है कि पहचान कर सीधे जंगल से ही ताजेरुप में इसे ग्रहण किया जाय।शहरी रहन-सहन में सीधे पौधे से ग्रहण करना सम्भव न हो तो पंसारी के यहाँ से ही उचित काल में क्रय किया जा सकता है।हाँ,इतना ध्यान अवश्य रखा जाय कि देखने में स्वच्छ और ताजा हो।
इसका सम्बन्ध शिव से है,अतः सोमपुष्य योग यानी जिस सोमवार को चन्द्रमा का पुष्य नक्षत्र पड़े, उसी दिन खरीदकर घर लाना चाहिए।वर्ष में एकबार- चौदह-पन्द्रह दिनों के लिए आने वाले सूर्य के पुष्य नक्षत्र में जो सोमवार पड़े- वह सर्वोत्तम नागकेसर-ग्रहण-काल होता है।वैसे प्रायः किसी भी वनस्पति को ग्रहण करने का यह सर्वोत्तम काल है।एकबार ही यथेष्ट मात्रा में क्रयकर ले, ताकि वर्षभर चल सके।
नागकेसर-प्रयोग- विधिवत लायी गयी किसी शिवलिंग(अर्घ्या सहित) को प्राणप्रतिष्ठा-विधि से स्थापित करके अन्याय पूजन सामग्रियों सहित नागकेसर को भी अर्पित करे- चन्दनादि की तरह।ध्यातव्य है कि गृहस्थ के घर में आठ अंगुल से ऊँची कोई भी देवमूर्ति की स्थापना नहीं करनी चाहिए- बड़ी मूर्तियों की स्थापना घर से बाहर मन्दिरों में होती है।दोनों का स्थापना-विधान किंचित भिन्न होता है।अन्य नियम मर्यादाओं में भी काफी अन्तर होता है।इस विषय की विशेष जानकारी कर्मकाण्डी योग्य आचार्यों से करनी चाहिए।"प्रतिष्ठामयूष" आदि ग्रन्थों में इसका विशद वर्णन उपलब्ध है।पुराणों में भी देवादिमूर्ति-स्थापना का विशद विधान वर्णित है।
       उक्त स्थापित शिवमूर्ति के पास बैठकर पंचोपचार पूजनोपरान्त ग्यारह हजार श्रीशिवपंचाक्षर मंत्र का जप करे।जप करते समय नागकेसर को पीतल या तांबे के पात्र में सामने रख ले और भावना करे कि मंत्र की विद्युत तरंगें नागकेसर में प्रविष्ट हो रही हैं।जप अपनी सुविधानुसार एक ही दिन में या कि विभाजित क्रम में भी किया जा सकता है।जप पूरा हो जाने पर तत्दशांश होमादि विधि भी सम्पन्न करें।
Y     श्री-समृद्धि हेतु-  इस प्रकार सिद्ध नागकेसर को नवीन पीत वस्त्र में रख कर साथ में हल्दी की एक गांठ,सुपारी,अक्षत, तांबे का सिक्का आदि डाल कर पोटली वनाकर,पुनः किसी पात्र में रखकर विधिवत पूजन करे- उस पोटली को ही शिवमूर्ति की भावना से।पूजनोंपरान्त तिजोरी,बक्से या आलमारी में स्थायी तौर पर स्थापित कर दे।आगे अन्य दिनों धूपादि निवेदन करते हुए हो सके तो कम से कम एक माला श्रीशिवपंचाक्षर मंत्र का जप वहीं बैठ या खड़े होकर कर लिया करे।शिव की कृपा से "श्री" की प्राप्ति का यह अद्भुत प्रयोग है।
Y    वशीकरण-   सोमपुष्य,रविपुष्य अथवा गुरुपुष्य योग में पूर्व विधि से सिद्ध नागकेसर के साथ चमेली पुष्प,कूठ,तगर,और कुमकुम मिलाकर महीन चूर्ण बना लें,और गोघृत के साथ मिलाकर लेप
तैयार कर ले।इस लेप को नित्य स्नान के पश्चात् चन्दन की तरह उपयोग करने से प्रयोगकर्ता में अद्भुत सम्मोहन क्षमता आजाती है।घनीभूत चेतना पूर्वक जिसपर दृष्टिपात करता है ,वह क्षणभर में ही वशीभूत हो जाता है- द्रष्टापर।किन्तु ध्यान रहे- स्वार्थ के वशीभूत होकर इस प्रयोग को किसी गलत इरादे से न किया जाय,अन्यथा लाभ के बदले हानि की अधिक आशंका है।तन्त्र लोक-कल्याण के लिए है।लोक-कल्यार्थ इसे किसी को अभिमंत्रित कर(उभयपक्ष के नाम सहित) दिया भी जा सकता है।दुरुपयोग से दोनों की हानि है।

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