पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्-34

                                                          १२ लवंग
             "ललित लवंग लता परिशीलन,कोमल मलय समीरे...."- महाकवि जयदेव की अमृतवाणी लवंग के सम्बन्ध में काफी कुछ कह रही है।आर्यावर्त के दक्षिणी प्रान्तों में बहुतायत से पायी जाने वाली वनस्पतियों में लवंग लता भी एक है। सामान्य उपयोग में आनेवाला लौंग इसी लता का सुगन्धित पुष्प है। लौंग इसका पर्यायवाची है।लौंग पुष्प का प्रयोग औषधि,प्रसाधन,एवं मसाले के रुप में होता है।देव-पूजन कार्य में नैवेद्योपरान्त मुखशुद्ध्यर्थ ताम्बूलादि सहित लौंग का प्रयोग अनिवार्य रुप से किया जाता है।इसका एक नाम देवपुष्प भी है।पूजन-सामग्रियों में पुष्प का यदि अभाव हो तो निसंकोच लौंगपुष्प का उपयोग कर लेना चाहिए।शहरी सभ्यता में ताजे सुगन्धित पुष्पों का अत्यन्त अभाव है।वाटिका से ग्रहित पुष्प न जाने कब देबशीर्ष पर अर्पित होते हैं- यह विचित्र विडम्बना है।शास्त्रों का वचन है कि मालाकार गृह में पुष्प वासी नहीं होते,जब कि अपने घर में रात में(पूर्व दिन) ग्रहण किये गये पुष्पों का अगले दिन व्यवहार में लाना निषिद्ध है;किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि जैसे-तैसे,सड़े-गले कई दिनों के वासी फूल को देव-पूजन कार्य में व्यवहृत कर लिया जाय।इससे अच्छा है कि बिना फूल के ही पूजन कर लिया जाय या सर्वोत्तम है देवपुष्प- लौंग का व्यवहार करना।
      तन्त्रशास्त्रों में लौंग को काफी महत्त्वपूर्ण माना गया है।कुछ खास साधनाओं में- भुजयुग्म,जम्बुकी आदि में तो लौंग के बिना काम ही नहीं चलता।आयुर्वेद में भले ही लौंग महापित्तशामक माना गया हो,किन्तु तन्त्रशास्त्र का लौंग वायुशामक प्रधान है।हरप्रकार के वायव्य वाधाओं में लौंग का तन्त्रात्मक प्रयोग किया जाता है।किसी प्रकार की अन्तरिक्ष वाधा हो-  दो-चार अभिमंत्रित लौंग खिलाते ही सहज ही दूर हो जाता है- मेरा यह सहस्राधिक सफल प्रयोग रहा है। साधना और प्रयोग में अपेक्षाकृत आसान भी है।
     लौंग पर भगवती चामुण्डा की विशेष कृपा है।तान्त्रिक उपयोग करने के लिए उचित है कि पंसारी की दुकान से किसी महीने में(खरमास छोड़कर) रविपुष्य वा गुरुपुष्य में खरीद कर ले आवे।उनमें से साबूत (जिनमें अग्रपुष्प भाग मौजूद हो) को तन्त्र-कार्य में उपयोग करें,शेष घर के अन्य कार्यों में प्रयोग किये जा सकते हैं। चुने-बिने स्वच्छ-साबूत लौंग को गंगाजल से शुद्ध करके नवीन लाल वस्त्र का आसन देकर ताम्रपात्र में सामने रख कर श्री शिवपंचाक्षर एवं देवी नवार्ण मंत्रों का कम से कम ग्यारह माला जप कर लें।ध्यातव्य है कि जप से पूर्व लौंग का सामान्य रुप से पंचोपचार पूजन करना न भूले,और जपान्त में दशांश होमादि भी अवश्य सम्पन्न करें- जैसा कि प्रत्येक वनस्पतियों के तान्त्रिक प्रयोग में पहले भी निर्देश कर आये हैं।मात्र इतनी क्रिया से ही आपका लौंग अभीष्ट कार्य के लिए सिद्ध हो गया।अभिमंत्रण-पूजन की यह क्रिया शारदीय वा वासंतिक नवरात्रियों में भी किया जा सकता है- उस बीच रविपुष्य-गुरुपुष्य योग भी मिल जाये तो सोने में सुगन्ध। इस प्रकार साधित लौंग-पुष्प को उसी वस्त्र में वेष्ठित कर किसी डब्बे में सुरक्षित रख लें।

लौंग के तान्त्रिक प्रयोग-

v प्रेतवाधा --किसी भी प्रेतवाधा ग्रसित व्यक्ति को उक्त साधित लौंग में से नौ नग निकाल कर पुनः नौवार पूर्व मंत्राभिषिक्त कर के पुरुष की दाहिनी,एवं स्त्री की वायीं भुजा में, लाल कपड़ें में लपेटकर तीन लौंग बांध दें,एवं शेष छः को एक-एक करके सुबह-दोपहर-रात खाने का निर्देश देदें।दो दिनों के इस प्रयोग मात्र से ही सामान्य प्रेत-वाधायें दूर हो जायेंगी।मैंने बहुत बार तो ऐसा भी देखा है कि आवेशित व्यक्ति उस अभिमंत्रित लौंग को बंधवाने या खाने से घबराता है।वैसी स्थिति में बल प्रयोग करने की भी आवश्यकता पड़ती है।कुछ साधक इस कार्य के लिए श्री हनुमद् मंत्र का भी प्रयोग करते हैं।पिशाच-मोचन हेतु हनुमान जी की आराधना बहु सिद्ध है।अतः सुविधा और श्रद्धानुसार प्रयोग किया जाना चाहिए।
v वशीकरण- शुभ और लोक-कल्याण भावना से सम्मोहन-वशीकरण करने हेतु उक्त विधि से साधित लौंग का प्रयोग बड़ा ही कारगर होता है।इस कार्य की सिद्धि हेतु सम्मोहन-वशीकरण- मुहूर्त और काल-प्रहर ज्ञान सहित प्रयोग करने से अद्भुत लाभ होता है।
v श्री समृद्धि-  धन की लालसा तो सभी को होती है।अतः इसकी सम्यक पूर्ति के लिए अपने इष्टदेव को लौंगपुष्प नियमित अर्पित करना चाहिए- ध्यातव्य है कि अर्पण के समय मन ही मन अपना अभीष्ट स्मरण करते हुए याचना करे।
v जम्बुकी साधना-  आगे श्रृगालश्रिंगी अध्याय में इसका विशेष वर्णन है।
v भुजयुग्म-साधना- गत प्रसंग में हाथाजोड़ी की चर्चा हो चुकी है।हाथाजोड़ी की तान्त्रिक साधना में लौंग का प्रयोग विशेष रुप से करना चाहिए।पूर्व साधित हाथाजोड़ी को नित्य लौंग समर्पित करने से उसकी क्रिया-शक्ति में विकास होता है।
v दन्तपीड़ा,स्वरभंग आदि में लौंग का औषधीय प्रयोग बहुश्रुत है।दन्त-कान्ति हेतु मंजन में इसका उपयोग किया जाता है।लौंग के सुगन्धित तेल को थोड़ी मात्रा में रुई के फोये में लगा कर प्रभावित दांत में लगाना चाहिए।लौंग के प्रयोग से मुख एवं दांत की अनेक बीमारियाँ दूर होती हैं।
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