पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्-41

                                  १९. बहेड़ा
                त्रिफला समूह का एक घटक – बहेड़ा का संस्कृत नाम विभीतक है।हिन्दी में इसे बहेरा कहते हैं। इसका एक तान्त्रिक नाम भूतवृक्ष भी है।मान्यता है कि बहेरा के वृक्ष पर आरुढ़ होकर,अथवा इसके तल में आसन लगाकर साधना करने से विशेष लाभ होता है- क्रिया शीघ्र फलीभूत होती है।इसके विशालकाय वृक्ष जंगलों में बहुतायत से पाये जाते हैं।बहेड़ा के फलों के त्वक भाग को विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयोग किया जाता है।बड़े मटर सदृश कठोर बीज के अन्दर की गिरि का भी औषधीय उपयोग होता है।खाने में कुछ-कुछ चिनियां वादाम जैसा स्वाद होता है इस अन्तः मज्जा का।तन्त्र शास्त्र में बहेड़ा के मूल,त्वक और पत्र भाग का उपयोग किया जाता है।मंत्र शास्त्र में साधना के योग्य निर्दिष्ट अन्य स्थानों के साथ बहेड़े की भी  चर्चा है।किसी जलाशय(नदी-तालाब) के समीप बहेड़ा का वृक्ष हो तो रात्रि में उसके नीचे बैठ कर तान्त्रिक क्रियायें(जपादि) करने से आशातीत सफलता मिलती है।योगिनी और यक्षिणी साधना में बहेड़े की शाखा पर आरुढ़ होकर जप करने का विधान है।समान्य आसन और स्थान की तुलना में विभीतक-शाखारुढ़ साधना अनन्त गुना फलदायी होती है।सीधे विभीतक-साधना भी करने का विधान है- इसमें चयनित विभीतक वृक्ष को ही तान्त्रिक क्रिया द्वारा साधित कर लिया जाता है,जिसका उपयोग साधक अपनी आवश्यकतानुसार करता है।इस प्रकार एक साधित विभीतक वृक्ष से सौकड़ों-हजारों लोगों का कल्याण किया जा सकता है।किन्तु उस साधित वृक्ष की मर्यादा की सुरक्षा एक बहुत बड़ी जिम्मेवारी हो जाती है- उस साधक के लिए।क्यों कि जाने-अनजाने यदि किसी अन्य व्यक्ति ने उसका प्रयोग कर लिया तो भारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।मेरे एक सम्बन्धी सज्जन ने अपने घर के समीप विधिवत तालाब खुदवाया।उसके पिंड पर चारोंओर विभिन्न उपयोगी वनस्पतियों को स्थापित किया।नैऋत्य कोण पर विभीतक वृक्ष लगाये।समुचित विकास के बाद उसकी विधिवत साधना सम्पन्न की।जीवन भर काफी लाभ उठाये- नाम,यश,कीर्ति,लोक कल्याण – सब कुछ बटोरा,किन्तु शरीर थकने पर वृक्ष की मर्यादा का घोर उलंघन हुआ,भारी दुरुपयोग भी;और इसका परिणाम भी सामने आया- रहा न कुल में रोअन हारा।अस्तु।
       किसी भी वनस्पति का सीधे उपयोग करने से उसके औषधीय गुण तो प्राप्त होते ही हैं,किन्तु ग्रहण- मुहूर्त और अन्य विधान के साथ उपयोग करने पर चमत्कारिक रुप से गुणों में वृद्धि हो जाती है- ऐसा हमारे मनीषाओं का अनुभव रहा है।पुराने समय में आयुर्वेदज्ञ इस बात को जानते थे,और सम्यक् रुप से पालन भी करते थे,यही कारण था कि औषधियां बलवती होती थी;किन्तु आज हर वस्तु का वाजारीकरण हो गया है, जिससे मांग बढ़ गयी है,और पूर्ति के लिए नियमों की धज्जियां ऊड़ायी जा रही है।फलतः अविश्वास का बोलबाला है।दूसरी बात है कि लोभ-मोहादि दुर्गुणों का बाहुल्य हो गया है।अनाधिकारियों के हाथ लग कर
वस्तु हो या शास्त्र- अपनी मर्यादा खो चुका है।अतः इन बातों का सदा ध्यान रखना चाहिए।
      बहेड़ा के वृक्ष की साधना विभिन्न(बारहो महीने के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी पर्यन्त) नवरात्रियों में करनी चाहिए।किसी खास अंग(मूल,पत्र,फल,त्वकादि) का प्रयोग करना हो तो किसी रविपुष्य,सोमपुष्य का चयन कर लेना चाहिए,जो भद्रादि कुयोग रहित हो।
विशिष्ट मंत्र- ऊँ नमः सर्व भूताधिपतये ग्रस-ग्रस शोषय-शोषय भैरवीं चाज्ञायति स्वाहा
   पूर्व संध्या को जलाक्षतादि सहित निमंत्रण देकर आगामी प्रातः पंचोपचार पूजन करके प्रयोज्यांग ग्रहण करें। अंग-ग्रहण करते समय उक्त मंत्र का निरंतर मानसिक जप चलता रहे।घर लाकर विधिवत- पीत या रक्त नवीन वस्त्र का आसन देकर पुनः पंचोपचार पूजन करे,तदुपरान्त श्री शिवपंचाक्षर मंत्र तथा सोम पंचाक्षर मंत्रों का कम से कम ग्यारह-ग्यारह माला जप करें।पूरे वृक्ष की साधना करनी हो तो उक्त मंत्रों के जप के बाद लागातार चौआलिस दिनों तक देवी नवार्ण मंत्र का जप दशांश होमादि सहित सम्पन्न करना चाहिए।इस प्रकार सिद्ध विभीतक के ऊपर आरुढ़ होकर,अथवा तल में आसन लगाकर यथेष्ट योगिनी मंत्र का जप करना चाहिए।योगिनी साधना के सम्बन्ध में विशेष बातें फिर कभी किसी अन्य पुस्तक में करने का प्रयास करूंगा।
प्रयोगः-
Y     साधित बहेड़ा का पत्ता और जड़ भण्डार,तिजोरी,बक्से आदि में रखने से धन-धान्य की वृद्धि होती है। यह निश्चित प्रभावशाली और सरल प्रयोग है।पांच-सात-नौ पत्ते और थोड़े से मूल भाग पर साधना करके यह प्रयोग किया जा सकता है।
Y     उदर-विकारों- मन्दाग्नि,अपच,उदर-शूल,कोष्टवद्धता, आदि के निवारण में साधित बहेड़ा-मूल का चमत्कारिक लाभ लिया जा सकता है।प्रयोग के लिए अन्य औषधियों की तरह इसे खाना नहीं है,बल्कि खाते समय पवित्र आसन(पीढ़ा,कम्बल आदि)पर बैठ जाये और पुरूष अपनी दायीं जंघा के नीचे,तथा स्त्रियां अपनी वायीं जंघा के नीचे इसके साधित मूल को दबा कर बैठ जायें।भोजन के बाद मूल और आसन दोनों को मर्यादा पूर्वक उठाकर रख दें।पुनः भोजन के वक्त उसका उसी प्रकार उपयोग करें।ऐसा कम से कम सात-नौ या ग्यारह दिन लागातार करना चाहिए।विशेष परिस्थिति में इक्कीश दिन तक भी करना पड़ सकता है।तन्त्र-प्रभाव से भोजन सुपाच्य हो जाता है।प्रभावित अंग की क्रिया-विकृति में शनैः-शनैः सुधार हो जाता है।
Y     धातु क्षीणता के रोगी ताजे बहेड़ा के फलों को एकत्र करें अथवा लाचारी में बाजार से खरीद कर ही लायें।उक्त विधि से साधना सम्पन्न करें।अब तोड़कर फल के त्वक भाग को अलग करलें,और चूर्ण
या क्वाथ के रुप में उसका प्रयोग इक्कीश दिनों तक करें।साथ ही कठोर बीज को भी पुनः फोड़ कर अन्दर की मज्जा को बाहर निकालें।चार-छः मज्जा नित्य प्रातः-सायं गोदुग्ध के साथ सेवन करें।अद्भुत लाभ होगा।

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