पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्-42

                    २०. लक्ष्मणा
         लक्ष्मणा एक सुपरिचित वनस्पति है,जो कटेरी की तरह होता है।डाल,पत्ते,फल सभी वैसे ही होते है।अन्तर सिर्फ फूलों के रंग का है- इसके फूल नीले के वजाय सफेद होते हैं।रेगनी,कंटकारी आदि इसके अन्य प्रचलित नाम हैं।आयुर्वेद में कफ-पित्त शामक औषधियों में इसका उपयोग होता है।आकार भिन्नता से इसके दो प्रकार हैं- बड़ी कटेरी और छोटी कटेरी।कुछ लोगों का विचार है कि लक्ष्मणा इन चारों से भिन्न,विलकुल ही अलग प्रकार की वनस्पति है।आयुर्वेद का प्रसिद्ध औषध- फलघृत का यह विशिष्ट घटक है।
    तान्त्रिक प्रयोग हेतु लक्ष्मणा को ग्रहण करने का विधान अन्य वनस्पतियों की तुलना में थोड़ा निराला है- रविपुष्य(विशेष कर सूर्य के पुष्य नक्षत्र में पड़ने वाले रविवार) योग की पूर्व संध्या को विधिवत जलाक्षतादि से आमंत्रण दे आना चाहिए।फिर अगले दिन(मुहूर्त वाले दिन) ब्रह्ममुहूर्त में अन्य पूजन सामग्रियों के साथ एक सहयोगी और खनन-उपकरण लेकर उस स्थान पर पहुंचे।स्वाभाविक है कि उस वक्त अन्धेरा रहेगा,अतः साथ में रौशनी का साधन भी जरूरी है।पौधे के समीप पहुंच कर पूजन सामग्री पास में रख दें,और स्वयं विलकुल निर्वस्त्र हो जाए।इसी अवस्था में पौधे की पंचोपचार पूजा करें।
   पूजन-मन्त्र- ऊँ नमो भगवते रुद्राय सर्ववदनी त्रैलोक्य कास्तरणी ह्रूँ फट् स्वाहा ।
इस मंत्र को बोलते हुए सभी सामग्री अर्पित करें,और पूजा समाप्ति के पश्चात्  मम कार्यं सिद्धिं कुरु- कुरु स्वाहा- कहते हुए पौधे को समूल ऊखाड़ लें।
   घर लाकर अन्य वनस्पतियों की तरह ही इसे भी शुद्ध जल,गंगाजल आदि से शोधन करके,नवीन पीले वस्त्र के आसन पर रख कर प्राण-प्रतिष्ठा पूर्वक पंचोपचार पूजन करें।पुनः पूर्वोक्त मंत्र का सहस्र जप करें,दशांश होमादि विधान सहित।इस प्रकार प्रयोग के योग्य सिद्ध लक्ष्मणा को सुरक्षित रख दें।
    इस वनस्पति को दीपावली,नवरात्रि आदि विशेष अवसरों पर भी सिद्ध किया जा सकता है।मंत्र और विधान समान ही होगा।हां,विशेषकर दीपावली के अवसर पर सिद्ध किये जाने वाले लक्ष्मणा का प्रयोग काफी महत्त्वपूर्ण होता है। दीपावली की रात्रि में उक्त विधि से पूर्व साधित लक्ष्मणा को पुनः   एक अन्य मंत्र से जागृत करना चाहिए- देवी नवार्ण के तीसरे बीज से।इस मंत्र का कम से कम तीन हजार या अधिक से अधिक नौ हजार जप कर लें।इस क्रिया से उसमें अद्भुत शक्ति आजाती है।
    तान्त्रिक प्रयोग-
v साधित लक्ष्मणा का पंचाग जल में पीस कर गोलियां बना लें।इन गोलियों का प्रयोग आकर्षण और वशीकरण के लिए किया जा सकता है।प्रयोग के समय अमुकं आकर्षय आकर्षय को तीसरे बीज से सम्पुटित कर सात बार उच्चारण करते हुए एक गोली अभीष्ट व्यक्ति को खिला देना चाहिए।
v सन्तान की इच्छा वाली स्त्री मासिक स्नान के पांचवें दिन से प्रारम्भ कर इक्कीश दिन तक नित्य प्रातः-सायं दो-दो गोली उक्त लक्ष्मणा वटी को गोदुग्ध के साथ सेवन करे तो निश्चित ही सुन्दर,सुपुष्ट सन्तान की प्राप्ति होती है।हां यदि पुरुष में भी कोई कमी हो तो उसकी चिकित्सा भी अनिवार्य है।उसे भी यही गोली चौआलिस दिनों तक सेवन कराना चाहिए,साथ ही रोग-लक्षणानुसार इस पुस्तक के अन्य प्रसंग में बतलायी गई तन्त्रौषधियों का प्रयोग भी करना चाहिए।
v साधित लक्ष्मणा-पंचांग के साथ अन्य विशिष्ट वनस्पतियों के मिश्रण से घृतपाक विधान से फलघृत तैयार कर सेवन करने से विभिन्न वन्ध्यत्व दोषों का निवारण होकर सन्तान-सुख प्राप्त होता है।फलघृत की सामग्री-सूची भैषज्यसंग्रग में देखना चाहिए।बाजार में उपलब्ध फलघृत खरीद कर उसे भी नवार्ण एवं मन्मथ मंत्र से साधित कर प्रयोग किया जा सकता है।
v स्वस्थ-सामान्य स्त्री-पुरुष भी साधित लक्ष्मणा पंचांग को चूर्ण या वटी रुप में उक्त विधि से सेवन कर अत्यधिक कामानन्द की प्राप्ति कर सकते हैं।सहवास-सुख में वृद्धि(स्तम्भन,वाजीकरण)
लक्ष्मणा का विशिष्ट गुण है।


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