पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्-43

          २१.शिवलिंगी
        शिवलिंगी- एक यथा नाम तथा रुप वनस्पति है।एक समय था जब इसके लिए मुझे बहुत भटकना पड़ा था।काफी खोज के बाद कहीं से इसके कुछ बीज उपलब्ध हुए।बीज क्या,मानों साक्षात शिव ही विराजमान हों अर्घ्य में।जी हां, शिवलिंगी के सुपुष्ट बीज को गौर से देखें तो पायेंगे कि प्रत्येक अर्घ्यनुमा बीज एक छोटा सा शिवलिंग समाहित किये हुए हैं अपने अन्दर।बरसात के प्रारम्भ में इन बीजों में अंकुरण होता है,और जाड़ा आते-आते त्रिकोल सी पत्तियां और बेलें घेर लेती हैं आसपास के पौधों को।इसका विस्तार बड़ा ही तीब्र होता है।बड़े मटर की तरह हरे-हरे,किन्तु सफेद धारीदार फल काफी मात्रा में लगते हैं- गुच्छे के गुच्छे।फाल्गुन आते-आते ये फल परिपक्व होकर किंचित लालिमायुक्त हो जाते हैं,और फिर लाली इतनी गहरी हो जाती है कि कालिमा का भ्रम होता है।सफेद धारियों की सुन्दरता और निखर आती है। एक परिपक्व फल में आठ-दस बीज प्राप्त हो जाते हैं।लाल गुद्दों के बीच काले बीज बड़े ही सुन्दर लगते हैं।चुंकि इसके फल का स्वाद थोड़ा तीता होता है,इस कारण पक्षियों से फल की बरबादी भी नहीं होती।पके फलों को तोड़ कर सुखा लेते हैं- सुखाने से पहले उन्हें फोड़-मसल देना जरुरी होता है,अन्यथा पूरे फल को सूखने में काफी समय लगता है।उपरी तुष भाग को हटाकर स्वच्छ बीजों का संग्रह कर लिया जाता है।वर्तमान समय में इन बीजों का बाजार मूल्य पांच सौ से हजार रुपये प्रति किलोग्राम है।किन्तु इसकी खेती बिलकुल आसान है।कहीं भी व्यर्थ सी जमीन पर मौसम में बीज बो दें।विना श्रम के लता तैयार हो जायेगी।
       शिवलिगीं को फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि(कृष्ण त्रयोदशी-चतुर्दशी) को पूर्व संध्या के विधिवत निमंत्रण पूर्वक ग्रहण करना चाहिए।धो-पोंछ साफ करके लाल या पीले नवीन वस्त्र का आसन देकर अन्य वनस्पतियों में बतलाये गये विधान से पंचोपचार पूजन करके श्री शिवपंचाक्षर एवं देवी नवार्ण तथा कामदेव मंत्रों का कम से कम एक-एक हजार जर कर लेना चाहिए।इस प्रकार उस दिन की क्रिया पूर्ण हो गयी।आगे प्रयोग के समय पुनः संकल्प पूर्वक(जिसे उपयोग के लिए देना हो उसके नाम सहित) उक्त तीनों मंत्रों का क्रमशः एक-एक हजार जप करना चाहिए,तभी सम्यक् रुप से प्रयोग के योग्य होता है।
      शिवलिंगी का सर्वाधिक प्रयोग सन्तानेच्छु के लिए है।इसके सेवन से हर प्रकार का बन्ध्यत्त्व दोष नष्ट होकर सुन्दर-सुपुष्ट सन्तान की प्राप्ति होती है।सन्तान की कामना वाली स्त्री को उक्त प्रकार से अभिमंत्रित शिवलिंगी बीज यथेष्ट मात्रा में दे दें।ऋतु स्नान के पांचवे दिन से प्रारम्भ कर पुनः ऋतु आने तक(लगभग सताइस दिनों तक)सेवन कराना चाहिए- ताजो गोदुग्ध के साथ सात-सात दाने नित्य प्रातः-सायं।सेवन की इस क्रिया को पुनः अगले महीने भी उसी तरह जारी रखे।इस प्रकार कम से कम छः महीने यह क्रम जारी रहे।विशेष लाभ के लिए इसके साथ इसी विधि से साधित जीयापोता(जिऊत्पुत्रिका)बीज को भी चूर्ण कर
मिला लेना चाहिए।
     शिवलिंगी के बीजों को पवित्रता पूर्वक घर में रख कर नित्य पूजन भी किया जा सकता है।इससे शिव की प्रसन्नता प्राप्त होकर सर्वसुख-प्राप्ति होती है।एक बार का संग्रहित बीज दो-तीन बर्षों तक उपयोगी हो सकता है।आगे उन्हें विसर्जित कर पुनः नवीन बीज ग्रहण कर लेना चाहिए।
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