पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्- 50

               ७. हरताल
        हरताल न वानस्पतिक है, और न जांगम।यह स्थावर द्रव्यों की श्रेणी में आता है। यानी एक खनिज द्रव्य है।हरताल दो तरह का होता है- स्वेत और पीत।स्वेत को गोदन्ती हरताल भी कहते हैं,और पीत को हल्दिया हरताल के नाम से जाना जाता है।यह अभ्रक की तरह चमकीला और किंचित परतदार होता है। अपेक्षाकृत वजनी भी होता है। इसमें संखिया(Arcenic)का अंश पाया जाता है,इस कारण जहरीला भी है। सामान्य अवस्था(बिना शोधन के)में इसका भक्षण जानलेवा है।आयुर्वेद के साथ-साथ तन्त्र में इसका विशेष प्रयोग है।यन्त्र लेखन में इसे स्याही की तरह उपयोग किया जाता है।कुछ विशिष्ट होम कार्यों में भी इसका उपयोग होता है।भगवती पीताम्बरा बगला की साधना में हल्दिया हरताल के बिना तो काम ही नहीं हो सकता। तात्पर्य यह कि इनकी साधना में अत्यावश्यक है।चन्दन के रुप में और होम में भी।अन्य विभिन्न अष्टगन्धों के निर्माण में हरताल का उपयोग किया जाता है।
     जड़ी-वूटी विक्रेताओं के यहां आसानी से उपलब्ध है।वर्तमान में(सन् 2014) इसका बाजार भाव एक से डेढ़ हजार रुपये प्रति किलोग्राम है।जल में आसानी से घुलनशील है।अतः चन्दन की तरह घिस कर उपयोग किया जा सकता है।
        गुरुपुष्य योग में बाजार से खरीद कर इसे घर ले आयें,और गंगाजल से शुद्ध कर, पीले नवीन वस्त्र
का आसन देकर पीतल की कटोरी में पीठिका पर रख कर, पंचोपचार पूजन करें।पूजनोपरान्त श्री शिवपंचाक्षर मंत्र का ग्यारह माला जप करने के बाद, प्रथम दिन ही ग्यारह माला पीताम्बरा मंत्र का भी जप करें।ध्यातव्य है कि शिवपचंचाक्षर मंत्र-जप रुद्राक्ष के माला पर,और पीताम्बरा मंत्र-जप हल्दी के माला पर करना चाहिए। आगे छत्तीश दिनों तक पूर्ण अनुष्ठानिक विधि से उक्त दोनों जप होना चाहिए,यानी लगभग ढाई घंटे नित्य का कार्यक्रम रहेगा।एक बार में स्वार्थवश "बहुत अधिक मात्रा पर" प्रयोग न करें।सौ ग्राम की मात्रा पर्याप्त है- एक बार के प्रयोग के लिए।
     भगवती बगला की उपासना में विभिन्न प्रयोग बतलाये गये हैं।सभी में इसका उपयोग किया जा सकता है।हल्दी के चूर्ण के साथ दशांश मात्रा में मिलाकर हवन करने से सभी प्रकार के अभीष्ट की सिद्धि होती है।     

      इस प्रकार विधिवत साधित हल्दिया हरताल को मर्यादा पूर्वक काफी दिनों तक सुरक्षित रख कर प्रयोग में लाया जा सकता है।षटकर्म के सभी कार्य इससे बड़े ही सहज रुप में सिद्ध होते हैं।जल में थोड़ा घिसकर नित्य तिलक लगायें- इस साधित हरताल का।विश्वविमोहन का अमोघ अस्त्र है यह।किन्तु ध्यान रहे- साधना का दुरुपयोग न हो,और न व्यापार हो तान्त्रिक वस्तुओं का।दुरुपयोग का सीधा परिणाम है- गलितकुष्ट। दुरुपयोग से- साधित ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन अवरुद्ध होकर,अन्तः क्षरण का कार्य होने लगता है। परिणामतः  रस-रक्तादि सप्तधातुओं से निर्मित शरीर के सभी धातुओं का हठात् क्षरण होने लगता है,और अन्त में गलित कुष्ट के रुप में लक्षित होता है।

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