पञ्चम् परिच्छेद ग्रह-नक्षत्र-राश्यादि-वनस्पति-मन्त्र-सारणी
हमारे मनीषियों ने लोक-कल्याणार्थ अनेक
अद्भुत ज्ञान,अनुभव और जानकारियों का संग्रह किया है। ज्योतिष और तन्त्र शास्त्र
का वनस्पति-वर्णन भी उन्हीं में एक है।पिछले अध्यायों में आपने देखा कि किस प्रकार
विभिन्न वनस्पतियों का औषधीय उपयोग न करके, सिर्फ धारण-रक्षण-पूजनादि करने मात्र
से ही मानव की मनोवाछांयें पूरी होती हैं,और विभिन्न आपदाओं का निवारण होता है। स्रष्टा
ने लोककल्याण के लिए ही विभिन्न वनस्पतियों का सृजन किया है।उसी संदर्भ को आगे
बढ़ाते हुए, अब यहां कुछ विशिष्ट वनस्पतियों का ज्योतिषीय विचार पूर्वक उपयोग पर
प्रकाश डाला जा रहा है।
ज्योतिष-शास्त्र हमें बतलाता है कि आकाश
में नौ ग्रह,बारह राशियां,और सत्ताइस नक्षत्र हैं।इनके आपसी सामंजस्य से
सृष्टिमात्र का क्रियाकलाप प्रभावित होता है।जीवन में होने वाली प्रत्येक
अच्छी-बुरी घटनाओं का पूर्वानुमान और समाधान इन ग्रह-नक्षत्र-राश्यादिओं से
नियंत्रित-प्रभावित होता है। सृष्टि
का कण-कण प्रभावित है एक दूसरे से।वनस्पतियां भी इससे अछूती नहीं हैं।
प्रधानत्व की दृष्टि से ग्रहों में
चन्द्रमा को औषधीश कहा गया है- यानी सभी वनस्पतियों पर उनका आधिपत्य और नियंत्रण
है।पुनः सभी ग्रहों को एक-एक वनस्पति का स्वामी विशेष (संरक्षक) बतलाया गया
है।ग्रहों की तुष्टि हेतु(मंत्र-जपादि के पश्चात्,या बिना जप के भी) उनकी विहित
संमिधा से यथासंख्या (निर्धारित) आज्य(घृत) युक्त होम करने का निर्देश है-
मनीषियों का।इस क्रिया से अद्भुत लाभ होता है।कुछ अन्य वनस्पतियों की स्वतन्त्र
सारणी भी है- जिन्हें मात्र धारण करने से ही तत्-तत् ग्रहों की तुष्टि हो जाती है। उसी भांति बारह राशियों, और सत्ताइस नक्षत्रों
के लिए भी सुझावादेश दिया है मनीषाओं ने।जिस राशि वा नक्षत्र सम्बन्धी परेशानी हो,
उससे सम्बन्धित वनस्पति का प्रयोग- होम,धारण,एवं जलाक्षेपण स्नान आदि का विधान
बतलाया गया है। कोई भी प्रयोग करने से पहले,पूर्व अध्यायों में वर्णित विधि
से(मुहूर्त विचार करके)आमंत्रण पूर्वक सम्बन्धित वनस्पति को ग्रहण करें।जहां तक
सम्भव हो ताजी वनस्पति ही प्रयोग में लायी जाय।असम्भव की स्थिति में जड़ी-बूटी की
दुकान से क्रय करना मजबूरी है।किन्तु ध्यान रहे- गुणवत्ता की दृष्टि से ताजगी अनिवार्य
है।ग्रहण करने के पश्चात् ,यथोचित जलादि(जल-वायु-आतप) शुद्धि करें। तत्पश्चात्
पंचोपचार पूजन एवं औषधीश पंचाक्षर, शिव पंचाक्षर,तथा देवी नवार्ण मंत्रो का
यथासम्भव एकाधिक माला जप करना चाहिए।इसके बाद जिस ग्रह,राशि या नक्षत्र की वनस्पति
का प्रयोग किया जा रहा है,उससे सम्बन्धित पंचाक्षर मंत्र का भी यथोचित जप होना
चाहिए,तभी सम्यक् लाभकारी होगा।
नवग्रहों के मन्त्र, संमिधा धारणार्थ
वनस्पति
(१) सूर्य- ऊँ ह्रीं ह्रौं सूर्याय नमः – अकवन -
विल्वमूल
(२)
चन्द्रमा- ऊँ ऐं क्लीँ सोमाय नमः - पलास
- खिरनीमूल
(३)
मंगल- ऊँ हूं
श्रीं भौमाय नमः - खदिर
- अनन्तमूल
(४)
बुध - ऊँ ऐं श्रीं श्रीं बुधाय नमः - अपामार्ग -
विधारामूल
(५)
वृहस्पति-ऊँ ह्रींक्लींहूँ वृहस्पतये नमः - पीपल
- भृङराज
(६)
शुक्र - ऊँ ह्रीं
श्रीं शुक्राय नमः - उदुम्बर -
मञ्जिष्ठ
(७)
शनि - ऊँ ऐं
ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः - शमी - शमीमूल
(८)
राहु - ऊँ ऐं ह्रीं राहवे नमः -
दूर्वा - श्वेतचन्दन
(९)
केतु - ऊँ ह्रीं ऐं केतवे नमः -
कुशा - अश्वगन्धमूल
उक्त सारणी में दिये गये
ग्रह-समिधा-सूची के स्मरण हेतु एक बहुश्रुत श्लोक है- अर्कः,पलाशः,खदिरोऽह्यपामार्गोऽथ
पिप्पलः।उदुम्बरः शमी दूर्वाः कुशाश्च समिधः क्रमात्।।
बारह राशियां- स्वामी ग्रह और उनकी
वनस्पतियां-
(१) मेष राशि -- मंगल
-- रक्त चन्दन
(२)
वृष राशि -- शुक्र --- छतिवन(गुलैची
सदृश)
(३)
मिथुन राशि – बुध
-- कटहल
(४)
कर्क राशि -- चन्द्रमा
-- पलास(ढाक)
(५)
सिंह राशि -- सूर्य
-- वरगद(वट)
(६)
कन्या राशि – बुध -- आम
(७)
तुला राशि -- शुक्र
-- मौलश्री(वकुल)
(८)
वृश्चिक राशि – मंगल -- खदिर(खैर)जिससे कत्था बनता है
(९)
धनु राशि -- वृहस्पति -- पीपल(अश्वत्थ)
(१०)
मकर राशि – शनि
-- शीशम(विशेष कर काला शीशम)
(११)
कुम्भ राशि – शनि --
शमी
(१२)
मीन राशि – वृहस्पति -- वरगद(वट)
सताइस नक्षत्र- अधिदेवता
-- वनस्पतियां-
(१) अश्विनी - अश्विनीकुमार -- आंवला
(२)
भरणी - यमराज --
वरगद और पाकड़(युग्म)
(३)
कृत्तिका - अग्नि --
उदुम्बर(गूलर)
(४)
रोहिणी - ब्रह्मा --
जम्बु(जामुन)
(५)
मृगशिरा- चन्द्रमा --
खदिर(खैर)
(६)
आर्द्रा - शिव
-- प्लक्ष(पाकड़)
(७)
पुनर्वसु -
अदिति -- वंश(वांस)
(८)
पुष्य - वृहस्पति --- अश्वत्थ(पीपल)
(९)
श्लेषा - सर्प
--- नागकेसर(नागेसर)
(१०)
मघा - पितृ(पितर)- वट(वरगद)
(११)
पूर्वाफाल्गुनी- भगदेव --
पलास(ढाक)
(१२)
उत्तराफाल्गुनी- अर्यमा(सूर्य नहीं)—रूद्राक्ष
(१३)
हस्ता -- सूर्य
--- अरिष्ठा(रीठा)
(१४)
चित्रा -- त्वष्टा
--- बेल
(१५)
स्वाती --
वायु --- अर्जुन(कहुवा)
(१६)
विशाखा --
इन्द्र और अग्नि – विकंकत
(१७)
अनुराधा --
मित्र --- वकुल(मौलश्री)
(१८)
ज्येष्ठा
-- इन्द्र ---
चीड़
(१९)
मूल --- राक्षस
-- साल
(२०)
पूर्वाषाढ़ --
जल(वरुण नहीं) – सीताअशोक(रक्ताशोक)
(२१)
उत्तराषाढ़ --
विश्वेदेवा --- कटहल
(२२)
श्रवण -- विष्णु
--- अकवन(अर्क)
(२३)
धनिष्ठा
-- वसु ---
शमी
(२४)
शतभिष --
वरुण --- कदम्ब(कदम)
(२५)
पूर्वभाद्रपद--
अजैकच --- आम
(२६)
उत्तरभाद्रपद— अहिर्बुध ---
निम्ब(नीम)
(२७)
रेवती -- पूषा
--- मधूक(महुआ)
ज्ञातव्य है कि सभी नक्षत्र
दक्षप्रजापति की पुत्री एवं चन्द्रमा की पत्नियां हैं।मंत्र प्रयोग में आद्य
प्रणव-युक्त पंचाक्षर(स्त्रीलिंगी),अन्त्ये नमः युक्त- जैसे - ऊँ अश्विन्यै नमः,ऊँ
भरण्यै नमः – का यथोचित प्रयोग करना चाहिए।विशेष परिस्थिति में सबके वैदिक मंत्र
भी प्रयोग किये जा सकते हैं।
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