पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम्-55

                         सप्तम् परिच्छेद    
                                                    
                                       सर्वाभावे शतावरी
         जैसा कि शीर्षक से ही स्पष्ट है- सर्वाभावे शतावरी- सबके अभाव में शतावरी,यानी शतावरी कोई उत्कृष्ट वनस्पति का नाम है,जो सबके अभाव का पूरक है।जी हां,शास्त्रों का ऐसा ही आदेश है- कर्मकांडीय वनस्पति प्रयोग में यदि कुछ न मिले तो शतावरी का प्रयोग करना चाहिए,लेकिन इसका यह आशय नहीं है कि कुछ ढूढ़ा ही न जाय।ढूढ़ने का प्रयास न करना- कर्म(व्यवहार) की त्रुटि कही जायगी,अतः खोज तो करना ही है- अन्यान्य उपलब्ध वनस्पतियों का।
        शतावरी का एक नाम शतावर भी है।यह एक जंगली लता है,जिसकी पत्तियां गहरे हरे रंग की,बहुत ही महीन-महीन होती हैं- शमी से कुछ मिलती-जुलती।शमी की तरह शतावर में भी कांटे होते हैं- बल्कि उससे भी बड़े-बड़े कांटे।दूसरी ओर, शमी का पौधा होता है,और शतावर की लता।आजकल बहुत जगह अनजाने में ही शो-प्लान्ट के रुप में लोग गमले में लगाते भी हैं।नये वृन्त पर हल्के पीलें- परागकणों से भरपूर छोटे-छोटे फूल लगते हैं,जो प्रौढ़ होकर छोटी गोलमिर्च की तरह फलों में परिणत हो जाते हैं।इन्हीं वीजों से स्वतः ही आसपास नयी लतायें अंकुरित हो आती हैं।
        प्रयोग में आने वाला शतावर इसी लता का मूल है,जो बित्ते भर से लेकर हाथ भर तक के लंबे हुआ करते हैं।इन जड़ों की विशेषता है कि प्रत्येक नया जड़ सीधे मूसला जड़ के ईर्द-गिर्द से ही निकलता है- यानी जड़ों से पुनः पतली जड़ें विलकुल नहीं निकलती।इस प्रकार सभी जड़े लगभग समान आकार वाली होती है।सुविधानुसार साल में एक या दो बार आसपास की मिट्टी को करीने से खोद कर (ताकि पौधे को क्षति न पहुंचे और मुसला जड़ की भी रक्षा हो)मूसला जड़ के अतिरिक्त कुछ और जड़ों को छोड़ कर शेष को एक-एक कर तोड़ लेते हैं,और फिर मिट्टी को यथावत पाट देते हैं।इस प्रकार एक बार की लगायी हुयी लता से लम्बे समय तक आवश्यक शतावर प्राप्त किया जा सकता है।एक परिपुष्ट लता से पांच-दश किलो जड़ प्रतिवर्ष प्राप्त किया जा सकता है।धो,स्वच्छ कर इन जड़ों को हल्का उबाल देते हैं,ताकि आसानी से सूख सके,अन्यथा सूखने में बहुत समय लग सकता है।
      आयुर्वेद में वाजीकरण औषधियों की श्रेणी में इसे रखा गया है।यह बहुत ही पौष्टिक द्रव्य है।इसकी एक और विशेषता है कि दूध बढ़ाने में चमत्कारिक कार्य करता है।जिन महिलाओं की दुग्ध-ग्रन्थियां सम्यक कार्य नहीं करतीं,उन्हें इसका क्षीरपाक बनाकर दिया जाता है।जानकार ग्वाले इस जड़ी का प्रयोग अपने दुधारु पशुओं के दुग्ध-वर्धन के लिए करते हैं।किन्तु ध्यान रहे अधिक मात्रा में सेवन हानिकारक भी है।पूजापाठ में इसे सर्वश्रेष्ट औषधि की सूची में रखा गया है।

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