अध्याय सात का शेषांश...
(जिसे तकनीकी गड़बड़ी के कारण अगल से पोस्ट करना पड़ रहा है)
वास्तुमण्डल में अतिमर्म-स्थान
ईशान पूर्व आग्नेय
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वायव्य पश्चिम नैऋत्य
आशा
है अब तक की चर्चाओं से किंचित भी संशय शेष न रहा होगा कि- ऊर्जा-प्रवाह क्षेत्र और मर्मस्थान में
गहरा भेद है और गहरी समानता भी।उक्त
चक्र में तिरछी रेखायें जिन-जिन वास्तुखण्डों से होकर गुजरी हैं,वे स्थान वास्तुमण्डल में विशिष्ठ
ऊर्जाप्रवाह वाले हैं।ये वास्तुमण्डल के अतिमर्म (नाजुक) स्थान कहे गये हैं।
इक्यासी(९×९=८१)पदोंवाले वास्तु-मण्डल में
ईश,अग्नि,सोम,सूर्य एवं ब्रह्मा के (४+९=१३) कुल तेरह पद अतिशुभ ऊर्जा प्रवाह क्षेत्र हैं।इन स्थानों पर सूर्य
का प्रकाश पड़ने से घर में सुख,समृद्धि,शान्ति आती है।शुभ कार्यों के लिए इन
स्थानों का उपयोग होना चाहिए। खुले आंगन के अभाव में बड़े रौशनदान छोडे जा सकते
हैं, ताकि शुभ ऊर्जा-प्रवाह अवतरित
हो।
ठीक इसके विपरीत यम,पितर,द्वारपाल,असुर,पाप
एवं रोग-कुल पाँच पद अशुभ ऊर्जा-प्रवाह-क्षेत्र हैं।इन स्थानों पर सूर्य रश्मि से
नकाराकत्मक- अशुभ ऊर्जा की प्राप्ति होती है।अतः विशेषकर, आधुनिक घरों में रौशनी
के लिए छोड़े जाने वाले स्थान (डक्टप्वॉन्ट)
के लिए इसका अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि इन स्थानों पर न हों।वैसे इन्हीं स्थानों
पर कबाड़,डस्टविन आदि रखे जाने चाहिए। किन्तु नियमित साफ-सफाई का भी ध्यान रखना
जरूरी है।यहाँ कोई यह तर्क दे सकता है कि अशुभ ऊर्जा
प्रवाह
क्षेत्र में ही अशुभ ऊर्जा प्रवाह
वाले वस्तु को रखना क्या उचित है? इस सम्बन्ध में कुछ बातें समझने जैसी है-
१.
सेफ्टीटैंक (स्थायी गन्दगी) यहाँ भूल कर भी न बनायें,किन्तु कबाड़ रखने का उपयोग
हो सकता है;क्यों कि उसकी सफाई नियमित होगी।हाँ,कबाड़ भी
लम्बे
समय तक रह कर नुकशान देय ही होगा।
२.दूसरी
गौरतलब बात यह है कि अशुभ
ऊर्जा प्रवाह वाले वस्तु को यथास्थान ही रखेंगे।कोयले को कोई
बैठकखाने में नहीं रखता,और न गुलदस्ते को कबाड़खाने में।कूड़े को कूड़ेदान में ही
डाला जाता है,और फिर समय पर उसे यथास्थान विसर्जित किया जाता है।
३.
शुभ ऊर्जा-प्रवाह-क्षेत्र में सूर्य का प्रकाश पहुँचना जितना जरूरी है,उससे कहीं
अधिक जरूरी है- अशुभ ऊर्जा-प्रवाह-क्षेत्र
को सूर्य के प्रकाश से बचाना।सूर्य का प्रकाश योगवाही का कार्य करता है-
ऊर्जा के मामले में।जिस तरह आयुर्वेद में कहा गया है कि योगवाही मधु को आप चाहें
तो अमृत के साथ मिलादें,अथवा विष के साथ- दोनों के निजगुण को बढ़ाने का ही काम
करेगा।अस्तु।
अति शुभ और अति अशुभ के बाद तीसरा ऊर्जा-प्रकार
है- सामान्य शुभ। ध्यातव्य है कि यहां शुभत्व की तीव्रता(वेग) केन्द्रीय भाग से
अपेक्षाकृत थोड़ी कम है।किन्तु इनका भी ध्यान रखना जरुरी है।और चौथा प्रकार है-
सामान्य ऊर्जा-प्रवाह का क्षेत्र।इन स्थानों पर मिली-जुली ऊर्जा का प्रभाव रहता
है।कभी शुभ तो कभी अशुभ हावी होता है,और यह स्थिति, क्रियाकलाप, परिवेश,और वहां रखे
जाने वाले सामान आदि पर निर्भर करती है।अतः इन क्षेत्रों की मर्यादा का भी ध्यान
रखना जरुरी है।
आधुनिक घरों(फ्लैटों)में इन बातों की विशेष
कमी महसूस की जाती है- कुछ स्थानाभाव वश,तो कुछ ज्ञानाभाव वश,जिसका खामियाजा वहां
रहने वालों को भुगतना पड़ता है। -----000------
नोटः- वस्तुतः यह पोस्ट गत पोस्ट का शेषांश है।अतः इसे उसके साथ ही पढ़ना चाहिए।तकनीकी गड़बड़ी के कारण साथ में पोस्ट नहीं कर सका।
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