पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-14

नवम् अध्याय का शेषांश...2

अब आगे के चित्रों में इन्हीं दोनों मंडलों की रंग-योजना प्रस्तुत की जा रही है।रंगयोजना का उपयोग विशेष अवसरों पर वास्तुपूजनार्थ किया जाता है।






















आगे एकाशीपद वास्तुमंडल की रंग योजना दो चित्रों(क-ख) में दर्शायी गयी है। इसका मुख्य कारण अलग-अलग पुस्तकों का मतान्तर है,जिनमें चित्रांक 'क' अपेक्षाकृत अधिक व्यावहारिक और तर्कसंगत प्रतीत हो रहा है।इस सम्बन्ध में विद्वान बन्धु अपने विवेक से काम लें- यही मेरा निवेदन है।


 उक्त पदों में अंग-विन्यास और मर्म-विन्यास की विशेष चर्चा पिछले अध्यायों में की जा चुकी है।अतः प्रसंगवश यहां सिर्फ विन्यस्त चित्रों की पुनरावृत्ति की जा रही है-

       ऊपर के सभी चित्रों को देख कर  मर्मों और अंगों का विचार करते हुये कोई भी निर्माण कार्य करना चाहिए।अतिमर्मों की मर्यादा की रक्षा तो हर स्थिति में करनी ही है,सामान्य मर्मो का भी विचार आवश्यक है।स्वतन्त्रतापूर्वक सामान्य और निरापद क्षेत्रों में ही काम किया जा सकता है,वह भी वास्तु के अन्यान्य नियमों(तत्व,ऊर्जा) का ध्यान रखते हुए।सीधे अर्थों में हम कह सकते हैं कि पूरे वास्तु मंडल में तिल भर भी स्थान नहीं है, जहाँ हम मनमानी करें।          
                         ------000----

Comments