पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-5

                 अध्याय ४. वास्तु-विशेषज्ञ-पात्रता


वास्तुशास्त्र एक गूढ़ और रहस्यमय विद्या है।भारतीय संस्कृति से गहरा जुड़ाव है इसे।दो-चार-दस पुस्तकें पढ़ लेने भर से काम नहीं चलने को है।इसके लिए किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय की ' उपाधि मात्र ' ग्रहण कर लेना भी पर्याप्त नहीं कहा जा सकता।वास्तु के साथ ज्योतिष का तो अंगागीभाव सम्बन्ध है ही,तन्त्र और किंचित आयुर्वेद(विशेष कर वनस्पति विज्ञान-खण्ड) का भी ज्ञान होना आवश्यक है।रेखागणित,भूगोल,सामान्य भौतिकी आदि का ज्ञान भी अपेक्षित है।
भूगत वस्तु-ज्ञान हेतु अहिबलचक्र एवं धराचक्र के साथ,जल-स्रोत-ज्ञानार्थ वाराहमिहिर का उदकार्गलाध्याय भी अवश्य सेवनीय है।
उक्त पुस्तकीय ज्ञान के अतिरिक्त वास्तुशास्त्री को धर्म-कर्म का सम्यक् जानकार और अनुपालक होना चाहिए;कोरे आस्थावान नहीं,प्रत्युत क्रियावान भी। वेदमाता गायत्री का उपासक होना अति लाभदायक है- किसी वास्तु शास्त्री के लिए।चौबीस लाख मंत्र जप का पुरश्चरण न सम्भव हो तो भी कम से कम नियमित गायत्री-जापी तो होना ही चाहिए।किसी अन्य लघु मंत्र- श्री शिव पंचाक्षर,देवी नवार्ण आदि का (क्रमशः पांच और नौ लाख जप कर) पुरश्चरण कर लेना बहुत ही लाभप्रद होता है।जीवन में एक बार की यह क्रिया भविष्य के लिए शत-सहस्र विजय-द्वार खोल देती है।
एक और अति महत्त्वपूर्ण एवं अपेक्षाकृत सरल मंत्र साधना है-        "ऊँ श्री वास्तोस्पतये नमः" का मात्र सवा लाख जप,एवं तत्दशांश साकल्य (काला तिल,अरवा चावल,जौ,गूड़ और घी- क्रमशः आधा-आधा के अनुपात में,तथा गूगल,धूना आदि यथेच्छ मात्रा में) होम,तर्पण, मार्जननादि सहित सम्पन्न करलें।प्रसंगवश यहां एक और बात स्पष्ट कर दूं कि उक्त मंत्र की साधना भूपटल पर की अनुभूतियों के लिए पर्याप्त है,किन्तु भूगर्भीय ज्ञान हेतु एक अन्य मंत्र- "ऊँ श्री भूमिविदारणाय नमः स्वाहा " का एक लाख जप एवं उक्त साकल्य से तत्दशांश होमादि क्रिया सम्पन्न करना आवश्यक है।वास्तु देवता को पायस(सिर्फ दूध में पकाया हुआ चावल,जिसमें ऊपर से घी और मधु(असमान मात्रा में) मिलाकर बलि स्वरुप प्रदान किया जाता है,अति प्रिय है।दही और काला साबूत उड़द का बलि भी दिया जाना चाहिए।
इन सब क्रियाओं से वास्तुशास्त्र का अद्भुत ज्ञानार्जन हो जाता है।मंत्र-तंत्र और वनस्पति ज्ञान के वगैर कोरा वास्तुज्ञान आत्माहीन शरीर की तरह अनुपयोगी कहा जा सकता है।और आज के दौर में ऐसे वास्तु मर्मज्ञों का नितान्त अभाव है।परिणातः वास्तु-विषय का प्रचार-प्रसार तो बहुत हो रहा है,किन्तु वास्तु विद्या का अभाव झलक रहा है- यह बड़े अफसोस की बात है।
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