अध्याय ६.वास्तु मण्डल में ऊर्जा-प्रवाह-क्षेत्र
चूँकि
पूर्व अध्याय में ऊर्जा और तत्त्वों की चर्चा की गयी है,अतः प्रसंगवश यहाँ
वास्तुमंडल में इसके प्रभाव क्षेत्रों की चर्चा की जा रही है।यहां सिर्फ इतना ही
समझें कि चयनित वास्तु भूमि को ऊपर-नीचे,दायें-बायें ९×९=८१ भागों में सुविधा के लिए विभाजित कर लेंगे।इन एकासी खंडों के अलग-अलग
नाम, काम और कारण, इनकी उपयोगिता और महत्ता पर आगे के अध्यायों में यथा स्थान
विशेष चर्चा की जायेगी।
दूसरे
नम्बर
पर नीले रंगों में- मध्य उत्तर,ईशान,मध्य पूर्व एवं अग्नि कोण पर शुभ
ऊर्जा-प्रवाह-क्षेत्रों को दर्शाया गया है।इन स्थानों पर भी यथासम्भव रिक्तता और
स्वच्छता आवश्यक है।रौशनी के लिए इन स्थानों को भी चुना जाना चाहिए। कोई भी
पवित्र,मांगलिक कार्य यहां किया जाना अच्छा होता है।
तीसरे नम्बर पर काले रंग में मध्य
दक्षिण,वायु कोण एवं उससे सटे दूसरे,चौथे और आठवें खंडों को दर्शाया गया है।ये
पांच वास्तु खंड सर्वाधिक अशुभ ऊर्जा-प्रवाह वाले क्षेत्र कहलाते हैं।इन स्थानों
में भूल कर भी खुलापन- रौशनी क्षेत्र(Ductpoint)नहीं बनाना चाहिये।कूड़ादान,कबाड़ वगैरह यहां रखे जा सकते हैं- इसके
कारण और औचित्य पर गत प्रसंग में ही कहा जा चुका है।वश ध्यान रहे कि इन स्थानों की
नियमित सफाई होती रहे- यानी कूड़े तत्काल रखे जायें,किन्तु स्थायी रुप से छोड़े न
जायें,अन्यथा विशेष हानी होगी।
चौथे नम्बर पर सामान्य ऊर्जा-प्रवाह
वाले क्षेत्र हैं,जिन्हें सफेद रंगों में दर्शाया गया है।इन सभी स्थानों का सुविधा
और आवश्यकतानुसार प्रयोग करना चाहिए।
भवन में कहां क्या रखा जाय,कौन सा निर्माण
कार्य किया जाय आदि बातों की चर्चा अन्य अध्यायों में यथास्थान किया गया है,जिसे
वही से समझना उचित होगा।अस्तु।
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