पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-8

                   अध्याय    ६.वास्तु मण्डल में ऊर्जा-प्रवाह-क्षेत्र

  
चूँकि पूर्व अध्याय में ऊर्जा और तत्त्वों की चर्चा की गयी है,अतः प्रसंगवश यहाँ वास्तुमंडल में इसके प्रभाव क्षेत्रों की चर्चा की जा रही है।यहां सिर्फ इतना ही समझें कि चयनित वास्तु भूमि को ऊपर-नीचे,दायें-बायें ९×९=८१  भागों में सुविधा के लिए विभाजित कर लेंगे।इन एकासी खंडों के अलग-अलग नाम, काम और कारण, इनकी उपयोगिता और महत्ता पर आगे के अध्यायों में यथा स्थान विशेष चर्चा की जायेगी।

    ऊपर के चित्र में स्पष्ट है कि ९×९=८१ वास्तुमंडल-खण्डों को मुख्य रुप से चार रंगों में दर्शाया गया है- मध्य के ९ खंड पीले रंग में दर्शाये गये हैं, जिन्हें ब्रह्मपद कहा जाता है।इस क्षेत्र में सर्वाधिक शुभ ऊर्जा का निरंतर प्रवाह होते रहता है। वास्तुमंडल का सर्वाधिक मर्म स्थान भी यही ब्रह्मपद है।इस अति संवेदनशील भाग की मर्यादा- साफ-सफाई,खुलापन का ध्यान रखना चाहिए। पुराने समय में इस भाग को सर्वथा रिक्त रखा जाता था- खुले आंगन के निर्माण का यही उद्देश्य है।जैसा कि ऊपर के तत्त्व-निरुपण-चित्रों में स्पष्ट किया गया है- आकाशतत्त्व (एवं परोक्ष रुप से पाताल भी) का नियमन यहीं से होता है।आज के समय में स्थानाभाव और ज्ञानाभाव वश इस स्थान पर भी निर्माण कार्य कर देते हैं,यहां तक कि स्तम्भ(पीलर) भी खड़ा कर देते हैं,जिसके कारण आकाश तत्त्व पूर्णतः अवरुद्ध,और वाधित हो जाता है।इस अवरोध का विकट दण्ड भवन-वासियों को अनजाने में ही भुगतना पड़ता है।अतः युगानुसार स्थानाभाव की स्थिति में भी इसका ध्यान रखना आवश्यक है।इस पूरे क्षेत्र में पीलर,बीम, दीवार कुछ भी न हो।विलकुल खुला आंगन रखना सम्भव न हो तो कम से कम रौशनी के लिये रिक्त स्थान (Ductpoint)यहां अवश्य बना दिये जायें। ताकि खुले आकाश का दर्शन हो सके।इसके अनेक लाभ हैं।पीले रंग वाले सभी नौ खण्डों की रिक्तता यदि सम्भव न हो, तो कम से कम उसके भी मध्य खंड(नौ में बीच वाला एक) को हर हाल में रिक्त रखा जाय।अन्यथा आकाश-पातल दोनों बाधित (अवरुद्ध) होकर तरह-तरह के संकट पैदा करते रहेंगे।              
दूसरे नम्बर पर नीले रंगों में- मध्य उत्तर,ईशान,मध्य पूर्व एवं अग्नि कोण पर शुभ ऊर्जा-प्रवाह-क्षेत्रों को दर्शाया गया है।इन स्थानों पर भी यथासम्भव रिक्तता और स्वच्छता आवश्यक है।रौशनी के लिए इन स्थानों को भी चुना जाना चाहिए। कोई भी पवित्र,मांगलिक कार्य यहां किया जाना अच्छा होता है।
    तीसरे नम्बर पर काले रंग में मध्य दक्षिण,वायु कोण एवं उससे सटे दूसरे,चौथे और आठवें खंडों को दर्शाया गया है।ये पांच वास्तु खंड सर्वाधिक अशुभ ऊर्जा-प्रवाह वाले क्षेत्र कहलाते हैं।इन स्थानों में भूल कर भी खुलापन- रौशनी क्षेत्र(Ductpoint)नहीं बनाना चाहिये।कूड़ादान,कबाड़ वगैरह यहां रखे जा सकते हैं- इसके कारण और औचित्य पर गत प्रसंग में ही कहा जा चुका है।वश ध्यान रहे कि इन स्थानों की नियमित सफाई होती रहे- यानी कूड़े तत्काल रखे जायें,किन्तु स्थायी रुप से छोड़े न जायें,अन्यथा विशेष हानी होगी।
    चौथे नम्बर पर सामान्य ऊर्जा-प्रवाह वाले क्षेत्र हैं,जिन्हें सफेद रंगों में दर्शाया गया है।इन सभी स्थानों का सुविधा और आवश्यकतानुसार प्रयोग करना चाहिए।
    भवन में कहां क्या रखा जाय,कौन सा निर्माण कार्य किया जाय आदि बातों की चर्चा अन्य अध्यायों में यथास्थान किया गया है,जिसे वही से समझना उचित होगा।अस्तु।
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