प्रिय बन्धुओं,
सस्नेह नमन।
गत महीने में आपने पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम् का अवलोकन किया।अब पुण्यार्कवास्तुमंजूषा का अवलोकन करेंगे- क्रमशः
किन्तु इससे पहले परमादर्णीय दादाजी के चित्र से साक्षात्कार रहा हूँ,जिनकी कृपास्वरुप आज इस योग्य हुआ हूँ।उनकी संगहालय(पुस्तकालय) का ही परिणाम है कि घर बैठे प्रचुर सामग्री उपलब्ध हो गयी।
यह पुस्तक उन्हीं के करकमलों में सादर समर्पित है।
कमलेश पुण्यार्क
सस्नेह नमन।
गत महीने में आपने पुण्यार्कवनस्पतितन्त्रम् का अवलोकन किया।अब पुण्यार्कवास्तुमंजूषा का अवलोकन करेंगे- क्रमशः
किन्तु इससे पहले परमादर्णीय दादाजी के चित्र से साक्षात्कार रहा हूँ,जिनकी कृपास्वरुप आज इस योग्य हुआ हूँ।उनकी संगहालय(पुस्तकालय) का ही परिणाम है कि घर बैठे प्रचुर सामग्री उपलब्ध हो गयी।
यह पुस्तक उन्हीं के करकमलों में सादर समर्पित है।
कमलेश पुण्यार्क
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