पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-20

अध्याय ग्यारह का शेषांश...()

()आसपास की स्थिति- वास्तुभूमि के चयन के समय आसपास की भौगोलिक, सामाजिक,राजनैतिक,व्यावसायिक,धार्मिक आदि स्थितियों का भी गम्भीरता से विचार कर लेना चाहिए।यथा-
 (क)    धार्मिक स्थलों को प्रायः लोग सर्वाधिक शुद्ध भूमि समझने की भूल कर बैठते हैं,जब कि यह वास के लिए सर्वथा निषिद्ध है।वृहद्वास्तुमाला में स्पष्ट कहा गया है- पार्श्वे कस्य हरे रवीशपुरतो जैनानु चण्ड्या क्वचित...(वास्तुरत्नाकर, वास्तुराजवल्लभ)ब्रह्मा के मन्दिर के बगल में,शिव और विष्णु मंदिर के सामने,जैन मन्दिर के पीछे एवं देवी मन्दिर के आसपास किसी भी दिशा में वास नहीं करना चाहिए।इसी भांति किसी भी धर्मस्थल--मन्दिर,मस्जिद,गिरजाघर,तथा मकबरा,मजार,समाधि के समीप वास करना उचित नहीं है किसी गृहस्थ के लिए। कब्रगाह,श्मशान आदि भी इसी वर्जित श्रेणी में हैं। अपवाद स्वरुप तांत्रिक,अघोरी,औघड़,साधक,साधु-फकीर,औलिया आदि पर यह नियम लागू नहीं होता।
(ख)   भूस्खलन-भूकम्प प्रभावित क्षेत्र,अति उष्ण,अति शीत कटिबन्ध, स्कूल, अस्पताल,कारखाने,कोलाहल वाले क्षेत्र- सचिवालय,न्यायालय,कार्यालय,मदिरालय, धर्मशाला,सिनेमा-हॉल,वाहन पड़ाव,रेलवे स्टेशन,बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान, बहुमंजिली इमारत आदि के समीप वास करना वास्तु-विज्ञान सम्मत नहीं है।
(ग)  भूप्लवत्व के हिसाब से वासभूमि के पूर्व एवं उत्तर में स्थित अन्य भूखंड या मार्ग का तल दक्षिण,पश्चिम की तुलना में यदि नीचा हो तो शुभ है। 
(घ)   भूखण्ड के उत्तर या पूर्व में ऊँचे भवन,पहाड़,टीले या वृक्ष न हों,क्यों कि इससे शुभ ऊर्जा वाधित होती है।इससे विपरीत स्थिति शुभद है।
(ङ)   सदुग्धवृक्षाः द्रविणस्य नाशं कुर्वन्ति ते कण्टकिनोऽरिभीतिम्,प्रजाविनाशं फलिनः समीपे गृहस्य वर्ज्याः कलधौतपुष्पा।।(वृहद्वास्तुमाला १३)
दुग्ध वाले वृक्ष(महुआ,वट,पीपल,गूलर,कटहल,थूहर)से धन नाश,कांटे वाले वृक्ष से शत्रु-भय,फल वाले वृक्ष से संतान नाश(यहां आम जैसे पवित्र वृक्ष का भी निषेध है),तथा पीले फूल वाले वृक्ष से अमंगल होता है।ध्यातव्य है कि यहां वड़े आकार वाले वृक्ष की बात हो रही है।पीले रंग का गेंदाफूल निषिद्ध नहीं है,हां कनेर निषिद्ध है।
(च)  नदी,पोखर,तालाब,झील,झरना आदि जलाशय वास भूखण्ड से उत्तर, ईशान,पूर्व आदि दिशाओं में हों तो उत्तम है।इनका जलप्रवाह उत्तर या पूर्व की ओर होना अति उत्तम है।विपरीत स्थिति का प्रवाह मध्यम है,और अन्य दिशाओं में उक्त स्थिति अशुभ है।ध्यान रहे कि कुएँ के सम्बन्ध में अलग नियम है।इस सम्बन्ध में विशेष बातें जलस्रोत-खण्ड में स्पष्ट की गयी हैं।
(छ)   दो बड़े भूखण्ड के बीच छोटा सा भूखण्ड भी वास के योग्य नहीं है।ऐसे में छोटे भूखण्ड के स्वामी का विकास अवरुद्ध होता है।
(ज)   एक ही जाति के अनेक घरों के बीच दूसरी जाति को वसने से भी यथासम्भव परहेज करना चाहिए।(मुख्यतः यह समाजिक व्यवस्था की बात है) 
(झ)   चुम्बकीय एवं उच्च शक्ति वाले विद्युतीय प्रभाव क्षेत्र से भी वास्तुभूमि का मुक्त रहना अनिवार्य है।
(ञ)   मोबाइल-टावर तीब्र गति से विद्युतचुम्बकीय तरंग सम्प्रेषित करते हैं। किन्तु इनका दुष्प्रभाव ठीक नीचे(करीब 20फीट तक) अपेक्षाकृत अतिन्यून होता है,और आगे क्रमशः १२०फीट तक घातक होता जाता है।ये दूरी एक सामान्य (औसत) आकलन है।अलग-अलग टावरों की शक्ति पर उसकी घातकता निर्भर करती है।अतः टावर के विलकुल समीप घर बनाना अपेक्षाकृत सही है,न कि एकदम सही।उचित है कि यथासम्भव बचने का ही प्रयास किया जाय।नीचे के चित्र में इन्हीं बातों को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया हैः-

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