पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-25

अध्याय ग्यारह का शेषांश दस....विभिन्न भूआकृतियां

ऊपर की विस्तृत चर्चा में भूमि की विभिन्न आकृतियों पर प्रकाश डाला गया, जिनमें शुभद-अशुभद दोनों हैं।अशुभ का सीधे यह अर्थ नहीं कि वह आकृति विशेष अशुभ ही रहेगी।अशुभ(निषिद्ध) स्थान का परित्याग तो करना ही चाहिए; किन्तु अशुभ आकृति सर्वथा परित्याग के योग्य नहीं है। बुद्धिमान वास्तुकारों को अशुभ में से शुभ की तलाश करनी चाहिये-यानी किसी अशुभ आकृति में से शुभ आकृति को काट-छांट कर शुद्ध कर लेना चाहिए।आगे भूमि शोधन प्रकरण में इसकी थोड़ी और चर्चा होगी कि किस विधि से किस अशुभ को शुभ में परिवर्तित करना है।

क्रमशः...

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