पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-34

गतांश से आगे...
अध्याय १३.वास्तु मण्डल-(क)      अन्तःवाह्य संरचना(कहां क्या?)

गृहाभ्यन्तर व्यवस्था क्रम में कुछ शास्त्रीय निर्देश इस प्रकार भी हैः-
प्राच्यां स्नानगृहं च पाकसदनं वह्नौ तु सुप्तालयो,
याम्यायामथ शस्त्रसद्मदनुजे भक्त्यालयः पश्चिमे।
वायव्यां पशुमन्दिरं शुभकरं भंडारवेश्मोत्तरे,
शैवे देवगृहं प्रशस्तमखिलं स्वस्वास्थ्य कार्यं सदा।
इन्द्राग्न्योरथ मन्थनस्य सदनं त्याज्यं यमाग्न्योर्गृहं,
दैतेयान्तकयोः पूरीषसदनं विद्यागृहं मध्यमे।
रक्षोवारुणयोश्च रोदनगृहं तोयेशवायव्ययोः,
मध्ये कामगृहं कुबेरमरुतोः कुर्याःसदा भूपति।
भण्डागारं तूत्तरे स्याद्वायव्यां पशुमन्दिरम्,
उत्तरस्यां जलस्थानं पूर्वस्यां श्रीगृहं तथा।
पुरन्दरेशयोर्मध्ये सर्ववस्तु संग्रहम्,
कौबेरीश्वरयोश्चावैद्यभवनं शाक्रशयोः सौतिकं।
ज्येष्ठभ्रातृ पितृव्य मातृभवनं स्वस्माद्यमं पश्चिमे।
शालानामुपरिस्थितेषु भवनेष्वेवं विचिन्त्यं बुधै,
अत्युच्चं न हि नातिनीचमथवा साम्यं गृहं कारयेत्।।
                        (हृषीकेशपञ्चाङ्ग पृष्ठ ३७)

इस प्रकार हम देखते हैं कि पूर्व सारणी से किंचित भिन्न सारणी का संकेत मिलता है- उक्त निर्देशों से।इसके अनुसार सोलह के वजाय अठारह खण्ड किये गये हैं,इसके अतिरिक्त खुला आँगन का मध्य भाग दर्शाया गया है।इसकी स्पष्टी हेतु निम्न सारणी और चित्रांकन सहयोगी होगाः-
क-  पूजास्थल
ख- प्रसूतिगृह
ग-  सर्ववस्तुसंग्रह
घ-   स्नानगृह
ङ-    गोरसगृह
च-  पाकशाला
छ-  घृतसंग्रह
ज-  शयनकक्ष
झ- शौचालय
ञ-  शस्त्रागार
ट-    अध्ययनकक्ष
ठ-   भोजनकक्ष
ड-    कोपभवन
ढ-    पशु,वाहन,भंडार
ण- मनोरंजनकक्ष
त-  पेय जल
पे
थ-  कोषागार
द-    औषधि,रोगी
  भवन में कक्ष-योजना के सम्बन्ध में ऊपर दो चित्रों और सारणियों को दर्शाया गया है,जिनमें क्रमशः सोलह और अठारह कक्षों की व्यवस्था है।गौरतलब है कि तत्त्वों और ग्रहों के आधार पर ये व्यवस्था दी गयी है।कहीं छोटा स्थान है तो कहीं बड़ा भी।फिर भी आज के संदर्भ में ये सामान्य जनोपयोगी प्रतीत नहीं हो रहा है।अतः सुविधा और उपयोगिता के हिसाब से इनमें यथोचित परिवर्तन किया जाना चाहिए,बस मूल सिद्धान्तों की रक्षा का निर्वहन होता रहे –इसे न भूला जाय।दूसरी बात यह है कि इस प्रकार के भवन-निर्माण हेतु अधिक स्थान की आवश्यकता होगी,जोकि आज के समय में सामान्य जन के लिए असम्भव सा है।कट्ठे-आध कट्ठे में मकान बनाना है,कहीं इससे भी कम में गुंजायश करनी है।तीसरी बात यह है कि रोदन,कोप,दधिमंथन,रति,कोष,शस्त्रादि हेतु कक्ष- व्यवस्था वर्तमान में अव्यावहारिक है।
    कुछ आधुनिक पुस्तकों में उक्त सोलह खण्डों को इस प्रकार व्यवस्थित करने का सुझाव दिया हैः-
१.ईशानकोण- इस कोणपर पूजाघर,कुआँ,बोरिंग,भूगत पानी टंकी(ओभरहेड नहीं), दरवाजा,वरामदा,बैठक या सामान्य कक्ष,शयनकक्ष(दम्पति का नहीं),पोर्टिको, लॉन,तहखाना(वेसमेन्ट) आदि बनाये जा सकते हैं।
२.ईशान-पूरब के बीच- इस भाग में पूजाघर,कुआँ,बोरिंग,भूगत पानी टंकी (ओभरहेड नहीं),दरवाजा,वरामदा,बैठक या सामान्य कक्ष,शयनकक्ष,सामान्य भण्डारण,तुलसीचौरा,वेसमेन्ट,लॉन,छोटे पुष्पवृक्ष आदि हो सकते हैं।गोबर गैस प्लांट बनाया जा सकता है।कुछ विद्वान सेफ्टीटैंक का भी सुझाव इस स्थान पर देते हैं,किन्तु मुझे उचित नहीं प्रतीत होता।सेफ्टीटैंक और गोबर गैस दोनों गड्ढे हैं,दोनों में मल-संचय है,फिर भी दोनों में अन्तर है।अतः सेफ्टीटैंक बनाना उचित नहीं हैं।
३.पूरब दिशा- स्नानघर के अलावे उक्त क्रमांक एक और दो की तरह ही।
४.पूरब और अग्निकोण के बीच- रसोई,मन्थन,सीढ़ी,शौचालय (मात्र),स्नानागार, अतिथिकक्ष,वायलर,जेनरेटर,इन्वर्टर,विजली का मेन स्विच और वोर्ड आदि ऐसे
कार्य जिनमें अग्नितत्व की प्रधानता हो-इस स्थान पर बनाये जा सकते हैं।
५.आग्नेय कोण- इस स्थान पर रसोईघर बनाना सर्वोत्तम है।इसके अतिरिक्त सामान्य द्वार(मुख्यद्वार नहीं),ऑफिस,ड्राईंगरुम,पोर्टिको,अतिथिकक्ष,वेसमेन्ट,लॉन आदि बनाये जा सकते हैं।
६.आग्नेय और दक्षिण के बीच- इस स्थान पर घी-तेल आदि सामान्य वस्तुओं का भंडारण,द्वार,शयनकक्ष,भोजनकक्ष,वैठक,सीढ़ियां,शौचालय,पेइंगगेस्टरुम आदि हो सकते हैं।
७.दक्षिण-इस दिशा में सीढ़ियाँ,ओवरहेडटैंक,भण्डार,शयनकक्ष,ऊँचे पेड़,अतिथिकक्ष आदि बनाये जा सकते हैं।
८.दक्षिण एवं नैऋत्य के बीच-शौचालय और सेफ्टीटैंक के लिए सर्वोत्तम स्थान है।इसके अतिरिक्त ऑफिस,गोदाम,अतिथिकक्ष आदि भी बनाये जा सकते हैं।
९.नैऋत्यकोण-इस कोण पर पृथ्वी तत्त्व का प्रभाव है।अतः भारी एवं कम उपयोगी सामानों का भँडारण,मशीनरुम,सीढ़ियाँ,ऑफिस,ऊँचे पेड़ आदि हो सकते हैं। नैऋत्य को भारी कहने के कारण लोग इसे गृहस्वामी के लिए सर्वोत्तम स्थान मान लेते हैं,जोकि स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित नहीं है।मानसिक अशान्ति पैदा करता है यह क्षेत्र।कच्चेमाल का भंडारण यहां किया जा सकता है,किन्तु तैयार(विक्रययोग्य)माल यहाँ कदापि न रखे,अन्यथा विक्री में विलम्ब होगा। ऊँचाई होना चाहिए- इस नियम को जानकर लोग ओवरहेड टैंक के लिए सुझाव दे देते हैं।राहु-केतु के अधीनता का क्षेत्र जल भंडारण के लिए अनिष्टकर है। पेयजल का भंडारण स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं,किन्तु फैक्ट्री आदि में अन्य कार्यों के लिए जल भंडारण किया जा सकता है।इस क्षेत्र के साफ-सफाई पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सिर्फ इस क्षेत्र को किराये के हवाले न करें,अन्यथा परेशानी हो सकती है।  
१०.नैऋत्य एवं पश्चिम के बीच- इस क्षेत्र में अध्ययन कक्ष,शयनकक्ष,सेफ्टीटैंक, शौचालय,स्टोर,ऊँचे पेड़ आदि हो सकते हैं।
११.पश्चिम- ओवरहेड टैंक के लिए इसे उचित मान लिया जाता है,किन्तु यह न भूलें कि जल के अधिष्ठाता वरुण के साथ शनि भी हैं यहां।अतः ओवरहेड टैंक के लिए सर्वोत्तम स्थान नहीं, वैकल्पिक स्थान कहना चाहिए।पूर्वाभिमुख भोजन और सीढ़ी के लिए यह सर्वोत्तम स्थान है।मुख्यद्वार भी यहाँ हो सकता है।ऊँचे पेड़,ऊँचा निर्माण इस क्षेत्र में उचित है।
१२.पश्चिम और वायव्य के बीच- ओवरहेडटैंक के लिए सर्वोत्तम स्थान इसे कहा जा सकता है- शनि का बायां कंधा और चन्द्रमा का दांया कंधा तथा वरुण का पूर्ण बल इस क्षेत्र पर मिलेगा,किन्तु टैंक का रंग काला न रखा जाय।पुराने मत में रोदनगृह,दण्डगृह आदि के लिए उपयुक्त माना गया है।शयनकक्ष,डाइनिंग रुम, ड्राइंगरुम, पोर्टिको आदि भी बनाये जा सकते हैं।रसोईघर की वैकल्पिक व्यवस्था यहां हो सकती है,किन्तु भोजन बनाते समय पूर्वाभिमुख होना चाहिए। शौचालय भी बनाया जा सकता है,सेफ्टीटैंक नहीं।
१३.वायव्यकोण-यह क्षेत्र पशुशाला,वाहन,खाद्यान्न भंडारण,सीढ़ी आदि के लिए सर्वोत्तम स्थान है।वैकल्पिक रुप से रसोई घर भी रखा जा सकता है,किन्तु भोजन बनाते समय मुंह पूरब या उत्तर की ओर रहे।हाँ, लकड़ी-कोयले आदि के चूल्हे के लिए यह स्थान यदि रखना हो तो पूर्वाभिमुख ही सिर्फ हो सकेगा,क्यों कि उत्तराभिमुख में चूल्हे का मुंह दक्षिण हो जाना अनुचित है। विवाह योग्य कन्याओं,और अतिथि के लिए यह स्थान बड़ा ही अच्छा है।
१४.वायव्य एवं उत्तर के बीच- इस क्षेत्र में प्राचीन मत से रतिगृह का निर्देश है। नव दम्पतियों और बच्चों के लिए उत्तम स्थान है।शयनकक्ष,अध्ययनकक्ष, भोजनकक्ष,भूतल पर जल-भंडारण(टंकी),सैप्टीटैंक,गोबर-गैस-प्लांट आदि यहाँ बनाये जा सकते हैं।
१५.उत्तर दिशा- बुध और कुबेर(कोषाध्यक्ष)के इस क्षेत्र में कोषागार,तिजोरी, बहुमूल्य भंडारण,स्वागतकक्ष,जलसंचयन,मुख्यद्वार,कुआँ,शयनकक्ष,ड्राईंगरुम, तहखाना,पूजाघर,लॉन,पुष्पवाटिका आदि बनाये जा सकते हैं।
१६.उत्तर एवं ईशान के बीच- आतुर(रोगी),औषधि,कन्याओं का कमरा,द्वार,कुआँ, बोरिंग,पूजाघर,शयनकक्ष,बैठक,ड्राईँगरुम,तहखाना(वेसमेंट),पोर्टिको आदि के लिए यह उपयुक्त स्थान है।यह स्थान आरोग्य दायी है।घर के रोगी सदस्यों को यहां रखना अतिलाभकारक होता है।
क्रमशः...

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