पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-35

गतांश से आगे....
अध्याय १३.वास्तु मण्डल-(क)      अन्तःवाह्य संरचना(कहां क्या?)
इस प्रकार वास्तुमंडल को प्राकृतिक गुणधर्मो के आधार पर व्यवस्थित करने का तरीका बतलाया गया। आगे उक्त सारी बातों को ध्यान में रखते हुए, कुछ नयी योजना पर आधारित एक सारणी प्रस्तुत हैः-


क-पूजा,
ख- रसोई,
ग-भंडार,
घ-जल,
च-शौच,
छ-स्नान,
ज-शयन,
झ-सीढ़ी
ट-शौच,स्नान,
ठ-सेफ्टीटैंक,
ड-अतिथि कक्ष,
ढ-नौकर,
प-भोजन,
फ-कवाड़,
ब-छत पर पानीटंकी,
भ-वरामदा,वालकनी,
म-तहखाना,
य-गैरेज


                        भवन में कक्ष योजना-
वायु                    उत्तर                 ईशान
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   १

  २

  ३
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   ८

ब्रह्मस्थान
  ४
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  ७
  ६
  ५
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नैऋत्य           दक्षिण                  अग्नि           






















नोट—१.पानीटंकी के सम्बन्ध में प्रायः भ्रम होता है।इसे लोग जल-स्रोत मान कर ईशान कोण में रख देते हैं।वस्तुतः यह जल-भंडारण है।अतः भंडार यानी वायु कोण में होना चाहिए।किन्तु सीधे वायुकोण पर नहीं,बल्कि दूसरे खंड में।यानी चन्द्रमा के दाहिने और शनि के बांयें कंधे पर बोझ दिया जाय। इससे चन्द्रमा और वरूण दोनों का बल मिलेगा।
    २. पश्चिम (मध्य) में रसोई हो सकता है,किन्तु उत्तर मुख होकर पाक कार्य करें।
    ३. ऊपर के चक्र में मुख्य द्वार की चर्चा नहीं है।इसके लिए आगे दिये गये मुख्यद्वार विचार चक्र का प्रयोग करना चाहिए।
    ४. चक्र "ग" में ब्रह्मस्थान के चारो ओर १ से ८ तक क्रमांक देकर छोड़ा हुआ है।इन स्थानों का उपयोग सुविधानुसार कक्ष,वरामदा,लॉबी आदि के रुप में किया जा सकता है,किन्तु निर्माण करते समय पूर्व खंडों में दिये गये वास्तु-देव अंग-विन्यास और मर्म-विन्यास की अवज्ञा नहीं होनी चाहिए।

पुनश्च ध्यातव्यः- पूर्व चक्र "क" और "ख" में किंचित भिन्नता है,जो मतान्तर भिन्नता मात्र है।सुविधानुसार किसी भी चक्र का अनुसरण किया जा सकता है। दोनों ही शास्त्र-सम्मत हैं।तीसरा चक्र "ग" विभिन्न विद्वानों के मतानुसार किंचित आधुनिक रुपरेखा में प्रस्तुत किया गया है।आधुनिक लोगों के लिए चक्र "ग" एवं उसके पूर्व का विस्तृत विवरणात्मक गृहयोजना अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती है।

क्रमशः...

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