पुण्यार्कवास्तुमंजूषा-42

 गतांश से आगे...
 अध्याय १३.वास्तु मण्डल(क)अन्तःवाह्य संरचना(कहां क्या?)-दशम् भाग

९.अल्प उपयोगी वस्तु-भण्डार- प्रायः घरों में कुछ न कुछ ऐसे सामान हुआ करते हैं,जिनका उपयोग नियमित नहीं होता या बहुत कम हुआ करता है।वे कोई भी पदार्थ(धातु,काष्ठ,प्लास्टिक,विजली,इलेक्ट्रोनिक,रसायन,रंग-रोगन आदि) हो सकते हैं,जिनका अपने गुण-धर्म के अनुसार वास्तु गत और वस्तु गत प्रभाव हुआ करता है।मान लिया आपके घर में पीतल-तांबे आदि के विशेष वरतन हैं,जिन्हें विशेष अवसरों पर ही उपयोग किया जाता है,शेष समय में यूँ ही गन्दे-सन्दे घर के किसी भाग में पड़े रहते हैं;या फिर कुछ उपकरण,औजार, कॉन्टेनर,ड्राम आदि हैं,जिनका साल-छः महीने में कभी उपयोग हो जाता है;कुछ का वर्ष दो वर्ष में भी।इन्हें रखना भी जरुरी है।अतः इन सब चीजों के लिए कोई उपयुक्त स्थान होना चाहिए,जहाँ रखने से वास्तुगत दुष्प्रभाव न पड़े।
    इसके लिए सर्वोत्तम स्थान नैऋत्य कोण का दाहिना या वायां भाग,या सीधे नैऋत्य ही हो सकता है।अपेक्षाकृत यह कमरा छोटा रखें,और इसके नियमित साफ-सफाई का ध्यान रखा जाय।उस कक्ष को भी अन्तः खण्डों में विभाजित कर धातु,काष्ठ,रसायन,विजली आदि का तत्व-विचारानुसार स्थान चुनना चाहिए।पीतल-तांबे के वरतनों को साल में दो-चार बार मांज देना भी जरुरी है। उस कमरे में रौशनी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए;तथा इस बात का ध्यान रखें कि उस कमरे में कभी अस्थायी शयन भी न किया जाय।अन्यथा सोने वाला मानसिक तनाव,अनिद्रा,थकान,चिड़चिड़ापन,अवसाद आदि का शिकार हो सकता है।इस विशिष्ट कक्ष में लाल कपड़े में बांध कर सहस्र मंन्त्राभिषिक्त (वास्तुविशेषज्ञ का साधित मंत्र) कांक्षी (फिटकिरी) का बड़ा सा टुकड़ा(एक-सवा किलो)कमरे के मध्य में छत की कुण्डी से एक फीट नीचे लटका दें।साल में एक बार इसे घर से दूर कहीं जाकर विसर्जित कर दिया करें।
                       ---000--- 
क्रमशः... 

Comments